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Showing posts from March, 2024

Hamlet

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हेमलेट विलियम शेक्सपियर द्वारा लिखित एक त्रासदी है जो डेनमार्क के राजकुमार हेमलेट की कहानी बताती है जो अपने पिता की हत्या करने और सिंहासन पर कब्जा करने के लिए अपने चाचा क्लॉडियस से बदला लेना चाहता है। यह नाटक बदला, पागलपन, नैतिक भ्रष्टाचार और मानवता की प्रकृति के विषयों की पड़ताल करता है। डेनमार्क के राजकुमार हेमलेट, अपने पिता, राजा हेमलेट की आकस्मिक मृत्यु पर शोक मना रहे हैं। हालाँकि, उसका दुःख गुस्से और संदेह में बदल जाता है जब उसकी माँ, रानी गर्ट्रूड, अंतिम संस्कार के कुछ ही हफ्तों बाद उसके चाचा क्लॉडियस से शादी कर लेती है। हेमलेट पर उसके पिता का भूत आता है, जो बताता है कि क्लॉडियस ने उसकी हत्या कर दी थी। अपने पिता की मौत का बदला लेने की शपथ लेते हुए, हेमलेट क्लॉडियस के अपराध को उजागर करने की साजिश रचता है। हेमलेट, पागलपन का नाटक करते हुए, गलत तरीके से कार्य करना शुरू कर देता है, जिससे उसके परिवार और दोस्तों में चिंता पैदा हो जाती है। वह क्लॉडियस के अपराध को साबित करने के लिए जुनूनी हो जाता है और हत्या को दोहराते हुए एक नाटक के माध्यम से सबूत इकट्ठा करना चाहता है। इस समय...

मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया

[Chorus] मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ा [Verse 1] बरबादियों का सोग मनाना फ़जूल था बरबादियों का सोग मनाना फ़जूल था मनाना फ़जूल था, मनाना फजूल था बरबादियों का जश्न मनाता चला गया बरबादियों का जश्न मनाता चला गया हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ा [Verse 2] जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया मुकद्दर समझ लिया, मुकद्दर समझ लिया जो खो गया में उसको भुलाता चला गया जो खो गया मैं उसको भुलाता चला गया हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ा [Verse 3] ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ ग़म और खुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ न महसूस हो जहाँ, न महसूस हो जहाँ मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया [Chorus] मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया

Manoj Kumar

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मनोज कुमार: बॉलीवुड के राष्ट्रीय गौरव और आदर्शों के ध्वजवाहक - भारतीय सिनेमा के इतिहास में, कुछ सितारे ऐसे चमके जिन्होंने केवल मनोरंजन ही नहीं दिया, बल्कि समाज का आईना दिखाया और सकारात्मक बदलाव की लहर लाने का प्रयास किया. मनोज कुमार ऐसे ही एक अभिनेता थे. उनके अभिनय की धाक, देशभक्ति की गूंज, और सामाजिक सरोकारों को उठाने का जज्बा उन्हें सिर्फ एक कलाकार नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र के आदर्श के रूप में स्थापित करता है. 24 जुलाई 1937 को पाकिस्तान के एबटाबाद में जन्मे मनोज कुमार का असली नाम हरि कृष्ण गोस्वामी था. विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आया और दिल्ली में बस गया. बचपन से ही उन्हें अभिनय का शौक था. 1954 में मुंबई आकर उन्होंने फिल्मों में किस्मत आजमाने का फैसला किया. शुरुआती दौर में उन्हें छोटे-मोटे रोल मिले. 1957 में आई फिल्म "फैशन" से उन्होंने बतौर मुख्य कलाकार डेब्यू किया. हालांकि, सफलता उनके पीछे ही चल रही थी. "हरियाली और रास्ता" (1962) और "वो कौन थी?" (1964) जैसी फिल्मों में उनकी दमदार भूमिकाओं ने उन्हें पहचान दिलाई. 1965 में आई फिल्म "शहीद...