परमवीर चक्र [1] मेजर सोमनाथ शर्मा














  • परमवीर चक्र' वीरता के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है|राष्ट्र के ज़न्बाज़ बहादुर सिपाहीयों. योद्धाओ को उनके अद्म्य  साहस  और निर्भीकता, उनका महान त्याग या उत्कृष्ट कर्यो के लिए प्रदान किया जाता है | वीरता और  आत्म त्याग या शत्रु की उपस्थिति में उल्लेखनीय बहादुरी के  लिए प्रदान किया जाता है|उन सभी महान योद्धाओ के,स्फुर्ती,निर्भिक्ता और दिलेरी की दास्तान बया कर रहा हूँ |  
                                               महाराजा हरीसिंह

कश्मीर  : 22 October 1947, को कश्मीर के मुज़फ्फरबाद में घुस्पैठियो ने आक्रमण कर दिया इन्हे पकिस्तान से प्रशिक्षण और शस्त्र की सहायता मिले थे| ऊरी और बारामूला की ओर आक्रमकारी बढ रहे थे|वे को आग लगाने और लूटने लगे, महिलाओं और बच्चों ह्त्याए करने लगे| कश्मीर के महाराजा हरी सिंह ने भारतसे निवेदन किया की उन्हे तुरंत सहायता दी जाए|भारत के तत्कालिन प्रधानमंत्री ने यह कहा की अभी आपकी सहायता नही  की जा सकती क्युंकी आप एक स्वतंत्र राष्ट्र है| इस पर कश्मीर के महाराजा ने दस्तावेज पर हस्ताक्षर करते हुए कहा की "कश्मीर आज से भारत का अभिन्न अंग है"

भारत ने शीघ्र ही सहायता प्रदान की और बहुत से सैनिक एक्त्र करके फ़ौरन ही श्रीनगर के लिए रवना कर दिया| हमारे सैनिको का पहला दल श्रीनगर हवाई अड्डे
पर,27,October,1947 की सुबह पहुँच गया|कश्मीर के लिए जंगशुरू हुआ, बड़ागांव औरशालतेन्ग में भीषण लड़ाई हुई|1 January,1948 को भारत ने संयुक्त राष्ट्र Iसंघ से अपील की कि पाकिस्तान के आक्रमण पर 'तुरंत कार्यवाही' की जाए |जम्मु और कश्मीर की इस लड़ाई में हमारे सैनिकों और वायु सैनिकों ने  साहस , संकल्प और देश-भक्ति  प्रकट हुई l  भरतीय   सैनिकों  ने आक्रमणकारियो को बारामूला से निकाल  बाहर कर  दिया l उन्हें उरी तक क्षेत्र से बाहर कर दिया l

6,900 मिटर से भी ऊंची  हिमालय की चोटियों को पार कर के, एक जोखिम भरे उड़ान के बाद , भरतीय वायु सेना का विमान  पहली बार लेह में उतरा|इस युद्ध में बहादुरी के उत्कृष्ट कार्य करने वाले :मेजर सोमनाथ  शर्मा (परमवीर चक्र - बड़गाम ,कश्मीर ) 3 November, 1947," मै एक इंच भी पीछे नही हटुन्गा, जब तक अंतिम सैनिक जीवित रहता है|"वीर अधिकारी मेजर सोमनाथ शर्मा के ये अन्तिम शौर्यपूर्ण शब्द थे | वे कुमायूरेजिमेंट की चौथी बाटालियन में तैनात थे| यह वीरता भरी घटना श्रीनगर  के दक्षिण-पश्चिम में, 15km. की दूरी पर बड़गाम में घटी|3 November,1947 को कुमायूँ रेजिमेंट की चौथी  बटालियन के एक सौ सैनिको ने बडगाम गाँव के दक्षिण मे ऊंचे स्थल पर पक्की चौकी स्थापित कर ली | चौकी पर 100 भारतीये सैनिकों  को 700 पाकिय्तानी  आक्रमणकारियो ने तीन ओर से घेर लिया और ताबड़-तोड़ हमारे सैनिकों पर गोलिया दाग रहे थे l

हमारे एक सैनिक पर उनके सात सैनिक थे l हमारे सैनिक भारी गोला-बारुद का  सामना कर रहे थे l बड़ी भीषण स्तिथी थी , ऐसी भीषण परिस्तिथी में मेजर शर्मा मृत्यु की चिंता न करते हुए बार-बार खुले मैदान मे दौड़-दौड़ कर अपने सैनिकों का निरीक्षण कर रहे थे, उन्हें
मार्गदर्शन देते और अविराम (non-stop) लड़ते रहने के लिए उत्साहित करते रहे l जैसे ही उनके सैनिक वीरगति को प्राप्त होते या घायल होते, मेजर शर्मा स्वयं मशीनगन load कर अगले सैनिक को थमा देते, यह सब काम वे अपने एक हाथ से ही कर रहे थे क्योंकि उनके बाएँ हाथ पर प्लास्टर चदा हुआ था l हड्डी टूट चुकी थी l डाक्टर ने उन्हे युद्ध में Frontier पर न जाने का परामर्श दिया था l परंतु वहाँ जाने की ज़िद्द कर रहे थे l वे अपने सैनिको के साथ रहना चाहते  थे lमेजर शर्मा ने देखा कि शत्रु तेजी से आगे बढ रहे है l उन्होने हेडक्वाटर को अंतिम संदेश भेजा : " दुश्मन हमसे केवल पचास गज दूर है l हमारी तुलना में उनकी संख्या कहीं अधिक है l हमारे ऊपर घनघोर गोला-बारुद की वर्षा हो रही है l

उन्हें अपने चौकी पर ही तब तक लड़ना था जब तक श्रीनगर को जाने वाले मार्ग के पास सेना की दुसरी टुकडी सहायता के  लिए न पहुंच जाए l परंतु हेडक्वाटर ने खतरे की गंभीरता महसूस कर लिया और पीछे हट जाने का आदेश दिया l"मैं एक इंच भी पीछे नही हटुगा , जब तक कि अंतिम सैनिक जीवित है lवे 6 घंटे तक लगातार लड़ते रहे lउनके बहुत सैनिक हताहत हुए l परंतु सैनिकों ने हिम्मत नही  हारी l जिसके फलस्वरूप लड़ाई का परिणाम उनके पक्ष में रहा l तभी एक विस्फोट हुआ ,दुश्मन के मशीनगन के यकायक निकली  गोली ने साहसी अधिकारी की निर्भीक आवाज़ को सदैव के लिए चुप कर दिया l उनके सैनिकों ने उन्हें आदर्श मानकर अगले एक घंटे तक लगातार लड़ते रहे l  अंतत: सहायक सैनिको  का  दल आ गये  और श्रीनगर को बचा लिया गया l मेजर सोमनाथ शर्मा को मरनोपरान्त  'परमवीर चक्र' से पुरस्कृत किया गया l वह अपने शौर्य और वीरता के लिए लिए इस  सर्वोच्च अलंकरन के  प्रथम विजेता थे l उनकी बहादुरी , साहस और आत्मत्याग अमर रहेगा l

Major Somnath Sharma
Born :January 31, 1923
At : Dadh, Kangra, Punjab
Died : November 3, 1947.
at- Bargaam, Jamu and
Kashmir.



UNIT : KUMAYUN REGIMENT
               परमवीर चक्र
        निज जीवन से देश बड़ा होता है , हम  जब  मिटते है तब देश खड़ा  होता है l
                                            [ जय  हिन्द ]
                                                                                   
                                                                              

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