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Showing posts from July, 2023

बड़े घर की बेटी

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बेनीमाधव सिंह गौरीपुर गांव के जमींदार और नंबर दार थे। उनके पिता महा किसी समय बड़ी धन धान्य संपन्न थे। गांव का पक्का तालाब और मंदिर जिनकी अब मरम्मत भी मुश्किल थी, उन्हीं के कीर्तिस्तंभ थे। कहते हैं इस दरवाजे पर हाथी झूमता था, अब उसकी जगह एक बूढ़ी भैस थी, जिसके शरीर में अस्थिपंजर के सिवा और कुछ शेष न था; पर दूध शायद बहुत देती थी। क्योंकि एक ना एक आदमी हार्डी लिए उसके सिर पर सवार ही रहता था। बेनी माधव सिंह अपनी आधी से अधिक संपत्ति वकीलों को भेंट कर चूके थे। बेनी माधव उनकी वर्तमान आई ₹1000 वार्षिक से अधिक न थी। ठाकुर साहब के दो बेटे थे। बड़े का नाम श्रीकंठ सिंह था। उनसे बहुत दिनों के परिश्रम और लगन के बाद बीए की डिग्री प्राप्त की थी। अब एक दफ्तर में नौकर था। छोटा लड़का लाल बिहारी सिंह दोहरे बदन का संजीला जवान था। भरा हुआ मुख और चौड़ी छाती। बहस का दो सेर ताजा दूध वह उठकर सवेरे पी जाता था। श्रीकंठ सिंह की दशा बिलकुल विपरीत थी। इन नेत्र प्रिय गुणों को उन्होंने बीए–इन्ही दो अक्षर पर निछावर कर दिया था। इससे वैदिक ग्रंथों पर उनका विशेष प्रेम था। आयुर्वेदिक औषधि पर उनका अधिक विश्वास थ

मुंशी प्रेमचंद जयंती पर विशेष

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𝑨𝒓𝒕𝒊𝒄𝒍𝒆 𝒃𝒚 :  𝑹𝒂𝒎 𝑩𝒉𝒂𝒅𝒓𝒂  (𝑫𝑰𝑹𝑬𝑪𝑻𝑶𝑹) 𝑮𝒚𝒂𝒏 𝑩𝒉𝒂𝒓𝒕𝒊 𝑷𝒖𝒃𝒍𝒊𝒄 𝑺𝒄𝒉𝒐𝒐𝒍 𝑴𝒐𝒓𝒔𝒂𝒏𝒅, 𝑹𝒖𝒏𝒏𝒊𝒔𝒂𝒊𝒅𝒑𝒖𝒓, 𝑺𝒊𝒕𝒂𝒏𝒂𝒅𝒉𝒊 मुंशी प्रेमचंद – जब भी हिंदी साहित्यकारों में लेखकों का नाम आता है तो उनमें मुंशी प्रेमचंद जी का नाम सर्वोपरि लिया जाता है। दुनिया इन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ के नाम से भी जानती है। प्रेमचंद जी को हिंदी और उर्दू साहित्य का सबसे प्रसिद्ध लेखक माना जाता है। आसमान में जो स्थान ध्रुव तारे का है, वही स्थान हिंदी साहित्य में मुंशी प्रेमचंद जी का है। जन्म – इनका जन्म 31 जुलाई 1880 उत्तर प्रदेश राज्य के बनारस जिले में स्थित लमही गांव में हुआ था। दुनिया जिन्हें मुंशी प्रेमचंद के नाम से जानती है ये उनका असली नाम नहीं था उनका असली नाम धनपत राय था। मगर लिखना शुरू करते समय इन्होंने अपना नाम ‘नवाब राय’ रखा लेकिन बाद में नाम बदलकर प्रेमचंद रखना पड़ा इसके पीछे कारण क्या था ये आपको आगे इसी लेख में  मिल जायेगा। मुंशी प्रेमचंद:जीवन और संघर्ष मुंशी प्रेमचंद जी का जीवन हमेशा अभावहीन स्थिति में व आर्थिक तंगी में ही गुज़रा। जब यह 7

पीएसएलवी C 56 लॉन्च

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एसडीएससी-एसएचएआर, श्रीहरिकोटा के पहले लॉन्च-पैड से 6 सह-यात्रियों के साथ डीएस-एसएआर उपग्रह ले जाने वाले पीएसएलवी-सी56 का प्रक्षेपण 30 जुलाई, 2023 को 06:30 बजे IST पर सफलतापूर्वक पूरा हुआ। PSLV-C56 को C55 के समान इसके कोर-अलोन मोड में कॉन्फ़िगर किया गया है। यह 360 किलोग्राम वजनी उपग्रह डीएस-एसएआर को 5 डिग्री झुकाव और 535 किमी की ऊंचाई पर निकट-भूमध्यरेखीय कक्षा (एनईओ) में लॉन्च करेगा। डीएस-एसएआर डीएस-एसएआर उपग्रह डीएसटीए (सिंगापुर सरकार का प्रतिनिधित्व) और एसटी इंजीनियरिंग के बीच साझेदारी के तहत विकसित किया गया है। एक बार तैनात और चालू होने के बाद, इसका उपयोग सिंगापुर सरकार के भीतर विभिन्न एजेंसियों की उपग्रह इमेजरी आवश्यकताओं का समर्थन करने के लिए किया जाएगा। एसटी इंजीनियरिंग अपने वाणिज्यिक ग्राहकों के लिए मल्टी-मॉडल और उच्च प्रतिक्रियाशीलता इमेजरी और भू-स्थानिक सेवाओं के लिए इसका उपयोग करेगी। डीएस-एसएआर इज़राइल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (आईएआई) द्वारा विकसित सिंथेटिक एपर्चर रडार (एसएआर) पेलोड रखता है। यह डीएस-एसएआर को हर मौसम में दिन और रात की कवरेज प्रदान करने की अनुमति देता है, और पूर

प्रेमचंद लिखित कहानी(4) कफन

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प्रेमचंद लिखित कहानी 'कफन' झोपड़े के द्वार पर बाप और बेटा दोनों एक बुझे हुए अलाव के सामने चुपचाप बैठे हुए हैं और अन्दर बेटे की जवान बीबी बुधिया प्रसव-वेदना में पछाड़ खा रही थी। रह-रहकर उसके मुँह से ऐसी दिल हिला देने वाली आवाज़ निकलती थी, कि दोनों कलेजा थाम लेते थे। जाड़ों की रात थी, प्रकृति सन्नाटे में डूबी हुई, सारा गाँव अन्धकार में लय हो गया था। घीसू ने कहा-मालूम होता है, बचेगी नहीं। सारा दिन दौड़ते हो गया, जा देख तो आ। माधव चिढक़र बोला-मरना ही तो है जल्दी मर क्यों नहीं जाती? देखकर क्या करूँ? ‘तू बड़ा बेदर्द है बे! साल-भर जिसके साथ सुख-चैन से रहा, उसी के साथ इतनी बेवफाई!’ ‘तो मुझसे तो उसका तड़पना और हाथ-पाँव पटकना नहीं देखा जाता।’ चमारों का कुनबा था और सारे गाँव में बदनाम। घीसू एक दिन काम करता तो तीन दिन आराम करता। माधव इतना काम-चोर था कि आध घण्टे काम करता तो घण्टे भर चिलम पीता। इसलिए उन्हें कहीं मजदूरी नहीं मिलती थी। घर में मुठ्ठी-भर भी अनाज मौजूद हो, तो उनके लिए काम करने की कसम थी। जब दो-चार फाके हो जाते तो घीसू पेड़ पर चढक़र लकडिय़ाँ तोड़ लाता और माधव बाज़ार से

मणिपुर समस्या की जड़ें

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लेख लम्बा है। लेकिन अगर मणिपुर समस्या की जड़ें जानने की इच्छा है तो पढ़ें 👇 वो लोग जो मणिपुर का रास्ता नहीं जानते। पूर्वोत्तर के राज्यों की राजधानी शायद जानते हो लेकिन कोई दूसरे शहर का नाम तक नहीं बता सकते उनके ज्ञान वर्धन के लिए बता दूं  " मणिपुर समस्या: एक इतिहास"  जब अंग्रेज भारत आए तो उन्होंने पूर्वोत्तर की ओर भी कदम बढ़ाए जहाँ उनको चाय के साथ तेल मिला। उनको इस पर डाका डालना था। उन्होंने वहां पाया कि यहाँ के लोग बहुत सीधे सरल हैं और ये लोग वैष्णव सनातनी हैं। परन्तु जंगल और पहाड़ों में रहने वाले ये लोग पूरे देश के अन्य भाग से अलग हैं तथा इन सीधे सादे लोगों के पास बहुमूल्य सम्पदा है।  अतः अंग्रेज़ों ने सबसे पहले यहाँ के लोगों को देश के अन्य भूभाग से पूरी तरह काटने को सोचा। इसके लिए अंग्रेज लोग ले आए इनर परमिट और आउटर परमिट की व्यवस्था। इसके अंतर्गत कोई भी इस इलाके में आने से पहले परमिट बनवाएगा और एक समय सीमा से आगे नहीं रह सकता। परन्तु इसके उलट अंग्रेजों ने अपने भवन बनवाए और अंग्रेज अफसरों को रखा जो चाय की पत्ती उगाने और उसको बेचने का काम करते थे।  इसके साथ अंग्रे

Manipur Violence Explained (2023)

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Manipur Violence Explained (2023) Violent protests and clashes erupted in Manipur as the Manipur High Court directed the State Government to grant Scheduled Tribe (ST) status to the Meitei community based on a 10-year-old recommendation. This article describes the events that are unfolding in Manipur in May 2023. This topic is relevant for the IAS exam as there are many issues such as reservations, ST status, shoot-at-sight orders, etc. related to this incident. Geographical features and the location of the State have a significant influence on the problems faced by Manipur.  There are 16 districts in Manipur and the State is said to be divided into “valley” and “hill” districts.  The Imphal Valley lies at the centre of the State and is surrounded by hills. Four highways act as the access points to the valley from the rest of the region out of which two highways are regarded as the “lifelines for the State”.  The valley accounts for about 10% of Manipur’s landmass and is do

General Relativity Theory by Einstein

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General relativity is a theory of gravitation developed by Albert Einstein between 1907 and 1915. The theory of general relativity says that the observed gravitational effect between masses results from their warping of spacetime. By the beginning of the 20th century, Newton's law of universal gravitation had been accepted for more than two hundred years as a valid description of the gravitational force between masses. In Newton's model, gravity is the result of an attractive force between massive objects. Although even Newton was troubled by the unknown nature of that force, the basic framework was extremely successful at describing motion. Experiments and observations show that Einstein's description of gravitation accounts for several effects that are unexplained by Newton's law, such as minute anomalies in the orbits of Mercury and other planets. General relativity also predicts novel effects of gravity, such as gravitational waves, gravitational lensing

CBSE CLASS 10 PHYSICS PRACTICAL, CHAPTER -12 ELECTRICITY

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CBSE CLASS 10 PHYSICS PRACTICAL       CHAPTER - 12  'ELECTRICITY'   (Experiment to Verify Ohm's Law)  ************************************ Dependence of Potential Difference Across a Resistor on the Current  Passing through it and determine its resistance.  Studying the dependence of potential difference (V) across a resistor on the current (I) passing through it and determine its resistance. Also plotting a graph between V and I Potential difference is defined as the work done to move a unit charge from one point to the other. The SI unit of potential difference is volt. Electromotive force is defined as the electric potential produced by either an electrochemical cell or by changing the magnetic field. Below is an experiment to study the dependence of the potential difference across a resistor with current-carrying I. Table of Contents: * Aim * Theory * Materials Required * Circuit Diagram * Procedure * Observation Table * Graph * Conclusion * Prec

मुंशी प्रेमचंद लिखित कहानी "गुल्ली-डंडा"

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मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित कहानी हैं।  "गुल्ली-डंडा"                           (1) हमारे अँग्रेजी दोस्त मानें या न मानें मैं तो यही कहूँगा कि गुल्ली-डंडा सब खेलों का राजा है। अब भी कभी लड़कों को गुल्ली-डंडा खेलते देखता हूँ, तो जी लोट-पोट हो जाता है कि इनके साथ जाकर खेलने लगूँ। न लान की जरूरत, न कोर्ट की, न नेट की, न थापी की। मजे से किसी पेड़ से एक टहनी काट ली, गुल्ली बना ली, और दो आदमी भी आ जाए, तो खेल शुरू हो गया। विलायती खेलों में सबसे बड़ा ऐब है कि उसके सामान महँगे होते हैं। जब तक कम-से-कम एक सैकड़ा न खर्च कीजिए, खिलाड़ियों में शुमार ही नहीं हो पाता। यहाँ गुल्ली-डंडा है कि बना हर्र-फिटकरी के चोखा रंग देता है; पर हम अँगरेजी चीजों के पीछे ऐसे दीवाने हो रहे हैं कि अपनी सभी चीजों से अरूचि हो गई। स्कूलों में हरेक लड़के से तीन-चार रूपये सालाना केवल खेलने की फीस ली जाती है। किसी को यह नहीं सूझता कि भारतीय खेल खिलाएँ, जो बिना दाम-कौड़ी के खेले जाते हैं। अँगरेजी खेल उनके लिए हैं, जिनके पास धन है। गरीब लड़कों के सिर क्यों यह व्यसन मढ़ते हो? ठीक है, गुल्ली से आँख फूट जान