Thursday, 21 September 2017

परमवीर चक्र [6] Captain गुरुबचन सिंह सालारिया [ भारतीय शांति सेना ]

अन्तर्राष्ट्रीय शांति बनाए रखने में, भारतीय सेना  विश्वस्तर पर प्रसिद्धि पाई  है l  संयुक्त राष्ट्रसंघ के निवेदन को स्वीकार करने के बाद , November 1950 में  साठ्वी  फिल्ड एम्बुलेन्स यूनिट को कोरिया भेजा गया l
भारतीय सेना का यह प्रथमअन्तर्राष्ट्रय मिशन था भारतीय सेना के लिए यह उतारदायित्व पूर्ण और कठिन कार्य था l परन्तु यह गौरव की बात है कि उन्होने परिस्तिथीयो के अनुकूल स्वयं को ढाल लियाl इन कार्यों के लिए उन्हें प्रशिक्षित किया गया l भारतीय सैनिकों ने राजनीतिक विवादो में किसी का भी पक्ष नही लिया lप्रत्येक स्थान पर उनकी ईमानदारी और निष्पक्षता के लिए उन्हें सम्मानित किया गया lतीन वर्षों बाद सशस्त्र सेना के सैनिकों और अधिकारियों ने कोरिया में  न्यूट्रल नेशन्स  रिपेट्रीयेशन कमीशन (1953 -1954) में भाग लिया l  इंडियन कस्टोडीयन फोर्स की स्थापना भी इसी वर्ष हुई l इसके साथ ही 1954 में ही भारतीय सशस्त्र सैन्य दलो ने वियतनाम, लाओस और कम्बोडीया में तीन अन्तरराष्ट्रीय नियंत्रण आयोगो की स्थापना हुई


संयुक्त राष्ट्र संघ का दूसरा निमंत्रण 1956 में प्राप्त  हुआ l भारतीय सैनिक दस राष्ट्रमंडलीय, आपात बल (संयुक्त राष्ट्र ) में सम्मिलित हो गए l संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारत से निवेदन किया कि वह  (O.N.U.C. ) कान्गो की सहायता करे l भारतीय सैनिकों का पहला दल
March 14, 1961 को कान्गो भेजा  गया l इसके बाद अन्य सैनिक भेजे गए l यहाँ शांति संबंधी कार्यों से हट कर , भारतीय सैनिकों को कान्गो में लड़ाई करनी पड़ी l भारतीय सैनिक संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से युद्ध किया l Capt.गुरुबचन सिंह सालारिया को कान्गो के इसी युद्ध में अद्भुत योगदान के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया l

Captain गुरुबचन सिंह प्रथम गोरखा राईफल्स की तीसरी बटालियन के थे l वे  कान्गो  में एलिजजाबेथविले में तैनात थे l September 1961 में करन्गा में लड़ाई हुई l December में फ़िर लड़ाई हुई l 'विद्रोही करन्गा सेनादल' संयुक्त राष्ट्रसंघ की सेनाओ का मुकाबला कर रहा था l भारतीय सैनिक संयुक्त राष्ट्रसंघ का एक अंग था l अत: भारतीय सैनिकों को कान्गो भेजा गया था ताकि वहाँ के विद्रोही सैनिकों को कान्गो से निकाल बाहर किया जाए और वहाँ शांति स्थापित हु सके l

Decrmber 5, 1961 को संयुक्त राष्ट्रसंघ के कमान्डीन्ग अधिकारी ने Capt. गुरुबचन सिंह सालारिया को आदेश दिया कि वह उस सड़क ब्लाक को हटा दें जो महत्वपूर्ण मोड़ पर करन्गा के विद्रोही सेना दल के द्वारा खड़ा किया गया है l सालारिया के साथ केवल सोलह गोरखा सैनिक थे l परन्तु वे सभी बड़े साहसी और आशा से भरे थे l वे  सभी मिशन की ओर बढ चले l वे सड़क ब्लाक से अभी 1500 गज़ दूर ही थे कि करन्गा के सैनिकों ने उन पर भीषण आक्रमण कर दिया l विद्रोहियों ने आक्रमण करने हेतु एक बहुत मज़बूत मोर्चा तैयार कर रखा था l उनके पास दो सशस्त्र यान और 90 सैनिक थे l उनकी तुलना में सालारिया का सेना दल संख्या में बहुत कम था l परन्तु उनमें हौसला बहुत था l

ऐसे समय में निर्भिक्ता  की आवश्यकता होती है l उन्होने फ़ैसला किया कि विद्रोहियो का डट कर  मुकाबला करेंगे l सालारिया एवं उनके साथी सैनिकों ने दुश्मनों पर तूफ़ान की भाँति टूट पड़े l

सालारिया और उनके गोरखा सैनिकों ने अपनी संगिनो, खुकरियो और हथगोलो से आक्रमण किया l उनके पास एक रोकेट लौंचर भी था l यह एक अप्रत्याशित और भयंकर तूफ़ान की गति जैसा आक्रमण था l सालारिया ने स्वयं अकेले ही 40 विद्रोही सैनिकों को मार चुके थे l

सालारिया और उनके सैनिकों के इस भयावह आक्रमण से विद्रोही सैनिकों ने अपना संतुलन खो दिया और वे घबराकर भागने लगे l दुश्मनों से लड़ाई करते समय, दुर्भाग्यवश Capt.सालारिया के गरदन पर एक घातक प्रहार से गहरा घाव हो गया l वे दर्द से बेहाल हो उठे , उनके शरीर में तेजी से रक्त की कमी हो रही थी l पर वे शक्ति और साहस से युद्ध जारी रखते हुए ,अपने सैनिकों का मार्गदर्शन किया l परन्तु उनका शरीर साथ न दे सका l वह बहादुर नायक युद्धभूमि में गिर पड़े l गरदन पर की गहरी घाव ,उनके निधन का कारण बन गई l वे वीरगति को प्राप्त हो गए l

कैप्टेन गुरुबचन सिंह सालारिया                                        परमवीर चक्र
Born : Novembet 29, 1935.
At: Gurdaspur, Punjab

Killed in action : 
December 5, 1935
( Congo Crisis)


Unit :
3/1 GORKHA RIFLES                  

                           


          
                                                       जय हिन्द -  वन्दे मातरम


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