परमवीर चक्र [7] मेजर धानसिंह थापा (भारत-चीन -1962)



" सर्वे भवन्तु सुखिन: , सर्वे सन्तु निरामया: " विश्व-कल्याण का समर्थन करने वाला यह मूल मंत्र, भारत ने संपूर्ण जगत को दिया l सदा निश्चल मन से मित्रता निभाई l भारत सदैव चीन का समर्थन किया था l  भारत को,  "भारत-चीन" मित्रता में अटूट विश्वास था l यह मित्रता 'पंचशील' के सिद्धांतों पर आधारित था l परन्तु  September, 1959 को भारत-चीन सीमा पर अप्रत्याशित अप्रिय घटना घटी l चीनवासियों ने तिब्बत में सैन्य शक्ति एकत्र करने लग गए थे l विश्व का उच्च्तम पठार होने के कारण , तिब्बत सैनिक कार्यवाइयों के लिए महत्वपूर्ण है l तिब्बत में ऐसे बहुत सुरक्षित स्थान थे जहाँ गोला बारुद और हथियार रखने की पुरी व्यवस्था थी l चिनी सेना आसानी से घाटीयों और मैदानो को पार करके भारत वेश कर सकते थे l वहीं भारत को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था l भारतीय सैनिकों के लिए सबसे बड़ी कठिनाई यहाँ की पर्वतीय भूस्थल थीं l और इन्ही पर्वतीय चौकियों पर भारतीय सेना को नियंत्रण करना था l उन चौकियो तक पैदल या फ़िर खच्चरों की सवारी करके पहुंच सकते थेl इस तरह उन्हें अगली चौकी तक पहुंचने में ही कई दिन लग जाते थेl भारत के अधिकांश सैनिक मैदानी क्षेत्र के थे l उन्हें बर्फिली पहाड़ीयों पर लड़ने का प्रशिक्षण नही दिया गया था l

मेजर धानसिंह थापा : आठवीं रेजीमेंट गोरखा राईफल्स की प्रथम बटालियन के एक अधिकारी थे l वह जिस चौकी की कमान सम्भाले हुए थे l वह चौकी लद्दाख में श्रिजप की सबसे अगली चौकी है l बहुत ऊबड़ खाबड़ और तिव्र वायु से प्रभावित पर्वत पर स्तिथ l मेजर थापा के पास बहुत छोटी सैनिक टुकड़ी थी l श्रीजप की यह चौकी बिलकुल अकेली थी l क्योंकि मुख्यालय से सम्पर्क सूत्र टूट चुके थे l October में जब भारतीय मैदानी भूस्थल पर सर्दी प्रारम्भ हो चुकी होती है l उस समय वहाँ कड़ी सर्दी पड़ती है l

October 20, 1962 चीन के आक्रमण का पहला दिन l चीन की फौजो ने भारी गोला बारी की l उन्होने तीन घंटे तक इतनी भयंकर गोलो की बौछार की कि, चौकी आग की
लपटो और धुए के बादलों से ढक गया l मेजर थापा ने अपने साथियोँ को प्रोत्साहित कियाl उन्होने अपने साथियोँ को निर्भय हो कर लड़ने के लिए प्रेरित किया l उनके साथियोँ ने डट कर युद्ध किया l कई अनगिनत चीनी सैनिकों को उन्होने और उनके साथियोँ ने मौत के घाट उतार दिए l आक्रमणकारियो ने युद्ध से मुख मोड़ लिया और वापस हट गये l परन्तु चीन के सैनिक और अधिक संख्या में फ़िर आक्रमण कर दिया l

इस बार उनकी  सहायता के लिए बहुत बड़ी संख्या में गोले दागने वाले फौज थे l एक फ़िर गोरखा सैनिकों के साहस, धैर्य और द्रिढ-संकल्प की अग्नि परीक्षा थी l एक बार फ़िर मेजर थापा और उनके गीने - चुने गोरखा सैनिकों ने चीनी आक्रमणकारियो को पीछे धकेल दिया l
इस बार थापा के भी कुछ सैनिक मारे गए l उनके सैनिकों की संख्या पहले से ही कम थी l अब और कम हो गए l थापा को मालुम हुआ कि, अभी सब कुछ खत्म नही हुआ है l अभी तो बहुत कुछ बाकी है l उनके सैनिक अभी जीवित है l वे सब एकत्र हुए और सतर्क हो कर तीसरे आक्रमण के लिए तैयार हो कर बैठ गए lकुछ समय के लिए युद्ध रुक गया और एक बहुत डरावनी शांति छा गई l

थापा के अपने विचार सही निकले l चीनी सैनिकों ने तीसरी बार आक्रमण किया l इस बार चीनी सैनिको की सहायता के लिए उनके लाईट (छोटी) टैंक लाए थे l भारतीय गोरखा बाहादुर  सैनिकों ने , संख्या में कम होते हुए भी तब तक घमासान युद्ध करते रहे, जब तक उनकी चौकी के एक बाद दूसरे सैनिक वीरगति को प्राप्त नही हो गए और दुश्मन के टैंक
उनके ऊपर से उन्हें कुचलते हुए भारतीय सीमा में प्रवेश न कर गए l

मेजर थापा जान गए कि उनके वीर गोरखा सैनिक अब एक भी नही है l फ़िर भी वह निराश न हो कर , उच्च आत्म त्याग के लिए आगे बढने को तैयार हो गए l वे खाई से उछल कर बाहर आ गए l वे बहुत फुर्तिले और शक्तिशाली थे l उन्हें स्वयं पर पूरा विश्वास था l  मेजर थापा कई चीनी सैनिकों को काल कवलित कर दिए l उन्होने बहूत चीनी सैनिकों को काट दिया l कुछ डरे हुए चीनी सैनिक उनके पैरों पर गिर जाते l परन्तुi अंत में उन्हें चीनीयों  ने उन्हें दबोच लिया l मेजर  धानसिंह थापा को  परमवीर चक्र से  सम्मानित किया गया l जब पुरस्कार की घोषणा की गई तब यह  विश्वास कर लिया गया था की वे वीरगति को प्राप्त हो
गए l बाद में पता लगा कि उन्हें चीन में बंदी बना लिया गया है l जब युद्ध का अंत हुआ तब उन्हें स्वागत किया गया
युद्ध के बाद , चीन के द्वारा युद्ध बंदीगृह से मुक्त कर दिये  जाने के बाद यूनिट में LT.Col. धानसिंह थापा  का स्वागत किया गया l
LT. Col.DHANDINGH THAPA
Born : April 10, 1928
At: Shimla , Himachal Pradesh
                                                                     Unit : 1/8 Gorkha Rifles
    Battle: Sino-India War 196
 Died : September 5, 2005

MEMORIAL SITE OF BATTLE FIELD
निज जीवन से देश बड़ा होता है, जब हम मिटते है तब देश खड़ा होता है.
जय हिन्द - वन्दे मातरम 



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