Friday, 29 September 2017

परमवीर चक्र [9] मेजर शैतान सिंह

November 18, 1962.Time : 0600 hour.Place : रिज़न्ग-चुशुल-लद्धाख .
Altitude: 4200 m -  5400 m (above sea level ) 
Region : Himalayan Mountain Range
Climate:  Extremely less than freezing point of water i.e( - 45°C )

मेजर शैतान सिंह :  कुमायूँ रेजिमेंट की तेरहवी बटालियन की क्म्पनी 3 की कमान सम्भाले हुए थे l वह एक मुख्य चौकी सम्भाले हुए थे l यह चौकी लद्धाख, रिजान्ग-ला में 5100 मिटर की ऊंचाई पर स्तिथ है l जहाँ बहुत कड़ाके की सर्दी पड़ती है l लगातार तीव्र
बर्फिली हवा सैनिकों के लिए कष्ट और चुनौती भरा होता है l
                                       शैतान सिंह और उनके साथी सैनिक                             

November 18, 1962 को प्रात: 6 बजे लगभग एक हजार चीनी सैनिकों ने रिजन्ग-ला चौकी पर आक्रमण कर दिया l वे दो घंटे जमकर युद्ध किया l चीनी सैनिकों के समतल मैदानी भूमि से आगे बढना आसान था lअब उनका आगे बढना रुक गया l परन्तु वे और अधिक संख्या में फौज, तोपे, राकेट और टैंक के साथ फिर युद्ध क्षेत्र में आ गए 
Chinese  Army on the way to  CHUSHUL.
(Photo source : China Times)

भारतीय सैनिक किसी ने भी अपना स्थान और स्टेनगन नही छोड़ा था l वे पुन: लड़ने को तैयार हो गए l उनपे चीनी सैनिकों का आक्रमण होने लगा l शैतान सिंह अपने सैनिकों को प्रोत्साहित किया l उन्होने जोरदार शब्दों में अविराम लड़ते रहने को उत्साहित किया l कुमायूँ सैनिकों को लगने लगा की उनके साथियोँ की संख्या कम हो रही है l उनका सैन्यबल कम हो रहा था और बाहर से कोई रिलीविंग यूनिट आने की कोई आशा नही थी l पर कोई भी सैनिक हार मानने को तैयार नही थे l प्रत्येक सैनिक घायल हो गए थे l परन्तु हिम्मत किसी ने नही हारीl उनके साथ सिर्फ एक ही इमर्जेन्सी मेडिकल नर्सिंग सहयोगी था,धर्मपाल वह अकेले ही घायलो की  प्राथमिक चिकित्सा, मरहम पट्टी कर रहे थे l
   (Chinese Army in action on Battle Field)    source: China Times

कुमायूँ सैनिकों ने बड़ा भीषण युद्ध कियाl प्रत्येक सैनिक जो वीरगति को प्राप्त हो रहे थे, उन्होने अनेक चीनी सैनिकों को धराशायी करते रहे थे l अचानक दुश्मन की गोली शैतान सिंह को लग गई l उनका पेट फटकर बहुत तीव्र गति से रक्त बहने लगा l शैतान सिंह
को उनके साथी सैनिक सुरक्षित स्थान पर ले जाने लगे l पर चीनी सैनिक उन पर भी गोलियाँ दागने लगे l शैतान सिंह ने अपने साथीयों को आदेश दिया कि , उन्हें छोड़ दिया जाए और अपनी रक्षा करें l पर उनके सैनिकों ने उन्हें छोड़ने से इंकार कर दिया l इस पर शैतान सिंह आदेशात्मक आवाज़ में उन्हें फ़िर कहा - " मुझे यहीं छोड़ दो , अपने को सुरक्षित करो, यह मेरा आदेश है " l उनके सैनिकों ने आदेश का पालन कियाl उन्होने अपने बहादुर कमान्डर को एक चट्टान के पीछे टिका दिया l
Memorial Site at Chushul Battle field where 96 martyrs were found buried under the avalanche.

मेजर शैतान सिंह का शरीर उसी स्थान से लाया गया , जहाँ उनके साथी उन्हे रखा था l
जोधपुर  पहुचाया गया और उनका अंतिम संस्कार पूरे सैन्य सम्मान के साथ किया गया l
युद्ध बंद होने के तीन महीने बाद जब लोग रिजन्ग-ला गए तो वहाँ बर्फ से ढके हुए 96 भारतीय सैनिकों के शव मिले l
Bodies of martyrs were found at the site 3 months later

बहादुर सैनिक जैसे आसन में लड़ाई लड़े थे ,उसी आसन में पाए गए l मेजर शैतान सिंह को मरणोपरान्त परमवीर चक्र से पुरस्कृत किया गया l
MAJOR SAITAN SINGH
BORN : December  01, 1924
At: JODHPUR , RAJASTHAN
UNIT : 13 KUMAON REGIMENT              
BATTLE OF REZENG - LA
SINO - INDIA WAR -1962.

                                                                             परमवीर चक्र                        
     
 निज जीवन से  देश  बड़ा होता है, जब हम मिटते है तब देश खड़ा होता है .
                            (( जय हिन्द - वन्दे मातरम ))
1962 की भारत - चीन युद्ध का परिणाम  से ही चीन का क्षेत्रफल थोड़ा बढ गया l परन्तु यह जीत उनके लिए काफ़ी महँगी साबित हुई l नीचे के इन चित्रो को देख कर आप स्वयं अनुमान लगा सकते है l
                        चीन के सैनिकों के शव 
                      चीन के सैनिकों के बंदूकें 








Tuesday, 26 September 2017

परमवीर चक्र [8] सूबेदार जोगिन्दर सिंह

सूबेदार जोगिन्दर सिंह :  सिख रेजिमेंट की प्रथम बटालियन में एक अधिकारी थे l वे अपने तीस साथियों के साथ , तवान्ग-नेफा (अरुणाचल प्रदेश) मार्ग में एक महत्वपूर्ण स्थान की सुरक्षा कर रहे थे l हरे-भरे पहाड़ी पर स्तिथ तवान्ग-नेफा में एक प्राचीन बुद्ध मन्दिर है l शायद इसी कारण चीन के सैनिक इस शहर पर अपना अधिकार करना चाहते थे l

October 23, 1962 की सुबह 5:30 बजे चीन के सैनिकों ने तवान्ग पर तीन ओर से आक्रमण कर दिया l कुछ मिनटो में ही चीनी सैनिक उस पहाड़ी पर आ गए जहाँ सूबेदार जोगिन्दर सिंह और उनके साथी युद्ध के लिए मोर्चा पर तैनात थे l वे अपने गन के रेंज में उनके आने तक रुके हुए थे l सूबेदार जोगिन्दर के आदेश मिलते ही सिख रेजिमेंट के योद्धाओ ने चीन के सैनिकों को काल कवलित करने लगे l पहली बार के 200 चीनी सैनिकों के धारासायी होते ही , दूसरी 200 चीनी सैनिकों की कतार आगे बढते चले आ रहे थे l
जोगिन्दर सिंह और उनके साथी,जितनी तेजी से मशीन गन चलाई जा सकती थी चलाए l गोलियाँ तेजी से दागी जा रही थी l दुश्मन तितर-बितर हो गए l अनेको चीनी सैनिक मारे गए l अंतत: चीन के सैनिक पीछे हट गए lजोगिन्दर सिंह और उनके साथियों ने चीन के सैनिकों का दूसरा आक्रमण भी विफल कर दिया था l इस प्रयास में जोगिन्दर सिंह के आधे सिख सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए l जोगिन्दर सिंह की जांघ में गोली लगने से गहरा घाव बन गया l चीन के सैनिक जोगिन्दर सिंह और उनके सैनिकों के हौसले को नही  तोड़ सके l

चीन के 200 सैनिकों की तीसरी टुकड़ी भारी तोपो और गोलो के साथ आगे बढते चले आ रहे थे l जोगिन्दर सिंह समझ चुके थे कि, चीन की युद्ध नीति ' तीन बार आक्रमण ' की है l परन्तु वे भी सिख सैनिक ज़िद्दी थे l वे निर्भीक थे l सबसे अहम बात कि वे झुक नही सकते थे l अत: उन्होने अपने आधे बचे सिख सैनिक साथियोँ को तीसरी बार के आक्रमण का सामना करने के लिए तैयार कर चुके थे l साथियोँ की संख्या कम होने के कारण, मशीनगन स्वयं चलाने का निर्णय कर लिया l

घमासान युद्ध होने लगा l चीनी तोपो और विध्वन्श्कारी गोलो की बौछार में ये वीर सिख योद्धा अपनी लाईट मशीनगन से चीनी सैनिको के कतारो को बिखेरने लगे l मशीनगन की
फायरिंग जितनी तेज़ी से की जा सकती थी , उन्होने उस से भी तीव्रतम की अपेक्षा करते हुए अकेले ही चीनी सैनिकों के बढते कदम को रोक देना चाहते थे l परन्तु यह संभव नही था l पर जोगिन्दर सिंह  'असंभव ' को ही नही मानते थे l वैसा उन्होने किया भी l जब तक उनके मशीनगन की आखरी गोली शेष थी l चीनी सैनिक बढ नही सके l परन्तु चीनी सैनिक रुक नही रहे थे l  जोगिन्दर सिंह और उनके साथी समझ चुके थे कि, वे जीवित नही रह पाएँगे l वे और उनके बचे हुए सैनिको ने निर्णय कर लिया कि, सामने से आ रहे अधिक-से-अधिक दुश्मन सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया जाए l

अत: उन सभी ने अपनी-अपनी बन्दूको में संगिन लगा ली l और अपने मोर्चा से बाहर आ
गए l "वाह गुरु जी का खालसा , वाह गुरु जी की फतेह " पुकार कर वे दुश्मन पर टूट पड़े l
उन्होने चीनी सैनिकों पर इस प्रकार हमला बोला कि . उनको पता लगा ही नही कि क्या हो रहा है l उन्होने जम कर लड़ाई की , जोगिन्दर सिंह इस बीच-बीच में अपने  साथियोँ का मार्ग दर्शन भी कर रहे थे l वे अपनी बन्दूक की संगिन से दुश्मनो को खत्म करते ,बढते जा रहे थे l बहुतो दुश्मन सैनिकों को मौत के घाट उतार चुके थे , कि अचानक उन्हे अनेक चीनी सैनिको ने घेर कर दबोच लिया l और उनकी आवाज रणभूमि में दब गई l वे  वीरगति को प्राप्त हो गए l
Subedar Joginder Singh

Born : September 26, 1921

At : Moga , Punjab
Battle : Tongpeng La
Nefa, Arunachal Pradesh

Sino-India war
             1962
Unit : 1 Sikh Regiment
                                        





                                         जय हिन्द - वन्दे मातरम


Sunday, 24 September 2017

परमवीर चक्र [7] मेजर धानसिंह थापा (भारत-चीन -1962)



" सर्वे भवन्तु सुखिन: , सर्वे सन्तु निरामया: " विश्व-कल्याण का समर्थन करने वाला यह मूल मंत्र, भारत ने संपूर्ण जगत को दिया l सदा निश्चल मन से मित्रता निभाई l भारत सदैव चीन का समर्थन किया था l  भारत को,  "भारत-चीन" मित्रता में अटूट विश्वास था l यह मित्रता 'पंचशील' के सिद्धांतों पर आधारित था l परन्तु  September, 1959 को भारत-चीन सीमा पर अप्रत्याशित अप्रिय घटना घटी l चीनवासियों ने तिब्बत में सैन्य शक्ति एकत्र करने लग गए थे l विश्व का उच्च्तम पठार होने के कारण , तिब्बत सैनिक कार्यवाइयों के लिए महत्वपूर्ण है l तिब्बत में ऐसे बहुत सुरक्षित स्थान थे जहाँ गोला बारुद और हथियार रखने की पुरी व्यवस्था थी l चिनी सेना आसानी से घाटीयों और मैदानो को पार करके भारत वेश कर सकते थे l वहीं भारत को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था l भारतीय सैनिकों के लिए सबसे बड़ी कठिनाई यहाँ की पर्वतीय भूस्थल थीं l और इन्ही पर्वतीय चौकियों पर भारतीय सेना को नियंत्रण करना था l उन चौकियो तक पैदल या फ़िर खच्चरों की सवारी करके पहुंच सकते थेl इस तरह उन्हें अगली चौकी तक पहुंचने में ही कई दिन लग जाते थेl भारत के अधिकांश सैनिक मैदानी क्षेत्र के थे l उन्हें बर्फिली पहाड़ीयों पर लड़ने का प्रशिक्षण नही दिया गया था l

मेजर धानसिंह थापा : आठवीं रेजीमेंट गोरखा राईफल्स की प्रथम बटालियन के एक अधिकारी थे l वह जिस चौकी की कमान सम्भाले हुए थे l वह चौकी लद्दाख में श्रिजप की सबसे अगली चौकी है l बहुत ऊबड़ खाबड़ और तिव्र वायु से प्रभावित पर्वत पर स्तिथ l मेजर थापा के पास बहुत छोटी सैनिक टुकड़ी थी l श्रीजप की यह चौकी बिलकुल अकेली थी l क्योंकि मुख्यालय से सम्पर्क सूत्र टूट चुके थे l October में जब भारतीय मैदानी भूस्थल पर सर्दी प्रारम्भ हो चुकी होती है l उस समय वहाँ कड़ी सर्दी पड़ती है l

October 20, 1962 चीन के आक्रमण का पहला दिन l चीन की फौजो ने भारी गोला बारी की l उन्होने तीन घंटे तक इतनी भयंकर गोलो की बौछार की कि, चौकी आग की
लपटो और धुए के बादलों से ढक गया l मेजर थापा ने अपने साथियोँ को प्रोत्साहित कियाl उन्होने अपने साथियोँ को निर्भय हो कर लड़ने के लिए प्रेरित किया l उनके साथियोँ ने डट कर युद्ध किया l कई अनगिनत चीनी सैनिकों को उन्होने और उनके साथियोँ ने मौत के घाट उतार दिए l आक्रमणकारियो ने युद्ध से मुख मोड़ लिया और वापस हट गये l परन्तु चीन के सैनिक और अधिक संख्या में फ़िर आक्रमण कर दिया l

इस बार उनकी  सहायता के लिए बहुत बड़ी संख्या में गोले दागने वाले फौज थे l एक फ़िर गोरखा सैनिकों के साहस, धैर्य और द्रिढ-संकल्प की अग्नि परीक्षा थी l एक बार फ़िर मेजर थापा और उनके गीने - चुने गोरखा सैनिकों ने चीनी आक्रमणकारियो को पीछे धकेल दिया l
इस बार थापा के भी कुछ सैनिक मारे गए l उनके सैनिकों की संख्या पहले से ही कम थी l अब और कम हो गए l थापा को मालुम हुआ कि, अभी सब कुछ खत्म नही हुआ है l अभी तो बहुत कुछ बाकी है l उनके सैनिक अभी जीवित है l वे सब एकत्र हुए और सतर्क हो कर तीसरे आक्रमण के लिए तैयार हो कर बैठ गए lकुछ समय के लिए युद्ध रुक गया और एक बहुत डरावनी शांति छा गई l

थापा के अपने विचार सही निकले l चीनी सैनिकों ने तीसरी बार आक्रमण किया l इस बार चीनी सैनिको की सहायता के लिए उनके लाईट (छोटी) टैंक लाए थे l भारतीय गोरखा बाहादुर  सैनिकों ने , संख्या में कम होते हुए भी तब तक घमासान युद्ध करते रहे, जब तक उनकी चौकी के एक बाद दूसरे सैनिक वीरगति को प्राप्त नही हो गए और दुश्मन के टैंक
उनके ऊपर से उन्हें कुचलते हुए भारतीय सीमा में प्रवेश न कर गए l

मेजर थापा जान गए कि उनके वीर गोरखा सैनिक अब एक भी नही है l फ़िर भी वह निराश न हो कर , उच्च आत्म त्याग के लिए आगे बढने को तैयार हो गए l वे खाई से उछल कर बाहर आ गए l वे बहुत फुर्तिले और शक्तिशाली थे l उन्हें स्वयं पर पूरा विश्वास था l  मेजर थापा कई चीनी सैनिकों को काल कवलित कर दिए l उन्होने बहूत चीनी सैनिकों को काट दिया l कुछ डरे हुए चीनी सैनिक उनके पैरों पर गिर जाते l परन्तुi अंत में उन्हें चीनीयों  ने उन्हें दबोच लिया l मेजर  धानसिंह थापा को  परमवीर चक्र से  सम्मानित किया गया l जब पुरस्कार की घोषणा की गई तब यह  विश्वास कर लिया गया था की वे वीरगति को प्राप्त हो
गए l बाद में पता लगा कि उन्हें चीन में बंदी बना लिया गया है l जब युद्ध का अंत हुआ तब उन्हें स्वागत किया गया
युद्ध के बाद , चीन के द्वारा युद्ध बंदीगृह से मुक्त कर दिये  जाने के बाद यूनिट में LT.Col. धानसिंह थापा  का स्वागत किया गया l
LT. Col.DHANDINGH THAPA
Born : April 10, 1928
At: Shimla , Himachal Pradesh
                                                                     Unit : 1/8 Gorkha Rifles
    Battle: Sino-India War 196
 Died : September 5, 2005

MEMORIAL SITE OF BATTLE FIELD
निज जीवन से देश बड़ा होता है, जब हम मिटते है तब देश खड़ा होता है.
जय हिन्द - वन्दे मातरम 



Thursday, 21 September 2017

परमवीर चक्र [6] Captain गुरुबचन सिंह सालारिया [ भारतीय शांति सेना ]

अन्तर्राष्ट्रीय शांति बनाए रखने में, भारतीय सेना  विश्वस्तर पर प्रसिद्धि पाई  है l  संयुक्त राष्ट्रसंघ के निवेदन को स्वीकार करने के बाद , November 1950 में  साठ्वी  फिल्ड एम्बुलेन्स यूनिट को कोरिया भेजा गया l
भारतीय सेना का यह प्रथमअन्तर्राष्ट्रय मिशन था भारतीय सेना के लिए यह उतारदायित्व पूर्ण और कठिन कार्य था l परन्तु यह गौरव की बात है कि उन्होने परिस्तिथीयो के अनुकूल स्वयं को ढाल लियाl इन कार्यों के लिए उन्हें प्रशिक्षित किया गया l भारतीय सैनिकों ने राजनीतिक विवादो में किसी का भी पक्ष नही लिया lप्रत्येक स्थान पर उनकी ईमानदारी और निष्पक्षता के लिए उन्हें सम्मानित किया गया lतीन वर्षों बाद सशस्त्र सेना के सैनिकों और अधिकारियों ने कोरिया में  न्यूट्रल नेशन्स  रिपेट्रीयेशन कमीशन (1953 -1954) में भाग लिया l  इंडियन कस्टोडीयन फोर्स की स्थापना भी इसी वर्ष हुई l इसके साथ ही 1954 में ही भारतीय सशस्त्र सैन्य दलो ने वियतनाम, लाओस और कम्बोडीया में तीन अन्तरराष्ट्रीय नियंत्रण आयोगो की स्थापना हुई


संयुक्त राष्ट्र संघ का दूसरा निमंत्रण 1956 में प्राप्त  हुआ l भारतीय सैनिक दस राष्ट्रमंडलीय, आपात बल (संयुक्त राष्ट्र ) में सम्मिलित हो गए l संयुक्त राष्ट्र संघ ने भारत से निवेदन किया कि वह  (O.N.U.C. ) कान्गो की सहायता करे l भारतीय सैनिकों का पहला दल
March 14, 1961 को कान्गो भेजा  गया l इसके बाद अन्य सैनिक भेजे गए l यहाँ शांति संबंधी कार्यों से हट कर , भारतीय सैनिकों को कान्गो में लड़ाई करनी पड़ी l भारतीय सैनिक संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से युद्ध किया l Capt.गुरुबचन सिंह सालारिया को कान्गो के इसी युद्ध में अद्भुत योगदान के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया l

Captain गुरुबचन सिंह प्रथम गोरखा राईफल्स की तीसरी बटालियन के थे l वे  कान्गो  में एलिजजाबेथविले में तैनात थे l September 1961 में करन्गा में लड़ाई हुई l December में फ़िर लड़ाई हुई l 'विद्रोही करन्गा सेनादल' संयुक्त राष्ट्रसंघ की सेनाओ का मुकाबला कर रहा था l भारतीय सैनिक संयुक्त राष्ट्रसंघ का एक अंग था l अत: भारतीय सैनिकों को कान्गो भेजा गया था ताकि वहाँ के विद्रोही सैनिकों को कान्गो से निकाल बाहर किया जाए और वहाँ शांति स्थापित हु सके l

Decrmber 5, 1961 को संयुक्त राष्ट्रसंघ के कमान्डीन्ग अधिकारी ने Capt. गुरुबचन सिंह सालारिया को आदेश दिया कि वह उस सड़क ब्लाक को हटा दें जो महत्वपूर्ण मोड़ पर करन्गा के विद्रोही सेना दल के द्वारा खड़ा किया गया है l सालारिया के साथ केवल सोलह गोरखा सैनिक थे l परन्तु वे सभी बड़े साहसी और आशा से भरे थे l वे  सभी मिशन की ओर बढ चले l वे सड़क ब्लाक से अभी 1500 गज़ दूर ही थे कि करन्गा के सैनिकों ने उन पर भीषण आक्रमण कर दिया l विद्रोहियों ने आक्रमण करने हेतु एक बहुत मज़बूत मोर्चा तैयार कर रखा था l उनके पास दो सशस्त्र यान और 90 सैनिक थे l उनकी तुलना में सालारिया का सेना दल संख्या में बहुत कम था l परन्तु उनमें हौसला बहुत था l

ऐसे समय में निर्भिक्ता  की आवश्यकता होती है l उन्होने फ़ैसला किया कि विद्रोहियो का डट कर  मुकाबला करेंगे l सालारिया एवं उनके साथी सैनिकों ने दुश्मनों पर तूफ़ान की भाँति टूट पड़े l

सालारिया और उनके गोरखा सैनिकों ने अपनी संगिनो, खुकरियो और हथगोलो से आक्रमण किया l उनके पास एक रोकेट लौंचर भी था l यह एक अप्रत्याशित और भयंकर तूफ़ान की गति जैसा आक्रमण था l सालारिया ने स्वयं अकेले ही 40 विद्रोही सैनिकों को मार चुके थे l

सालारिया और उनके सैनिकों के इस भयावह आक्रमण से विद्रोही सैनिकों ने अपना संतुलन खो दिया और वे घबराकर भागने लगे l दुश्मनों से लड़ाई करते समय, दुर्भाग्यवश Capt.सालारिया के गरदन पर एक घातक प्रहार से गहरा घाव हो गया l वे दर्द से बेहाल हो उठे , उनके शरीर में तेजी से रक्त की कमी हो रही थी l पर वे शक्ति और साहस से युद्ध जारी रखते हुए ,अपने सैनिकों का मार्गदर्शन किया l परन्तु उनका शरीर साथ न दे सका l वह बहादुर नायक युद्धभूमि में गिर पड़े l गरदन पर की गहरी घाव ,उनके निधन का कारण बन गई l वे वीरगति को प्राप्त हो गए l

कैप्टेन गुरुबचन सिंह सालारिया                                        परमवीर चक्र
Born : Novembet 29, 1935.
At: Gurdaspur, Punjab

Killed in action : 
December 5, 1935
( Congo Crisis)


Unit :
3/1 GORKHA RIFLES                  

                           


          
                                                       जय हिन्द -  वन्दे मातरम


Sunday, 17 September 2017

परमवीर चक्र [5] लान्स नायक करम सिंह

कश्मीर में टीथवाल पर भारतीय सैनिकों ने अपना अधिकार जमा  लिया था l इसी प्रयास में, कम्पनी हवलदार-मेजर पीरु सिंह (6th बटालियन राजपूताना राईफल्स) शाहिद हुए थे l
पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों को टीथवाल से बाहर निकालने का कई बार प्रयास कर चुके थे l

October 13, 1948 को, टीथवाल में भारतीय सैनिकों के अवस्थानो पर पश्चिम और दक्षिण से पाकिस्तानी सैनिकों ने आक्रमण किया l चार घंटे तक घमासान लड़ाई होती रही l पाकिस्तान के सैनिको की स्तिथी क्षत -विक्षत हो गई, वे यत्र-तत्र बिखर गए थे l भारतीय सैनिकों को जो भी मिला उसकी उन्होने जम कर पिटाई की l पाकिस्तान की हार हुई l उन्हें पीछे खदेड़ दिया गया l पाकिस्तानी सैनिकों ने सारे दिन बार-बार आक्रमण करते रहे परन्तु वे भारतीय सैनिकों के व्युह को नही तोड़ पाए l प्रत्येक बार उन्हें पीछे धकेल कर वापस कर दिया l

October 13, की लड़ाई में प्रमुख सेनानी थे, लान्स-नायक करम सिंह l वे सिख रेजिमेंट की पहली  बटालियन के योद्धा थे l टीथवाल क्षेत्र के बाहर की एक चौकी की बागडोर करम सिंह के हाँथो में थाl पाकिस्तानी सैनिकों ने उनकी चौकी पर आठ बार आक्रमण किया, और प्रत्येक बार उनके सैनिकोंy की संख्या कम होती गई l प्रथम बार के आक्रमण में दस पाकिस्तानी सैनिकों पर एक भारतीय सैनिक का अनुपात था l करम सिंह साथी सैनिकों को उत्साहित करते रहे l वे कहते :--"जब तक हमारे हथियार क्रियाशील रहेंगे हम लड़ेंगे l अपने हथियार निश्कृय होने तक हमें लड़ना हैl अंतिम साँस तक डट कर मुकाबला करना हैl शूरविरो को ही विजय प्राप्त होती हैl"

पाकिस्तान के सैनिक फिर लौटकर आए और इस बार पहले की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली हमला किया,कुछ चौकियों से वे मात्र दस गज़ की दूरी पर थे l प्रथम आक्रमण के  तुरंत बाद यह दूसरा आक्रमण था l इस आक्रमण का भी  मुँहतोड़ जबाब दिया गया l
पाकिस्तान का तीसरा आक्रमण बहुत विध्वन्सातम्क था l परिणाम स्वरूप भारतीय सेना     पोस्ट का एक भी बंकर ठीक-ठाक नही रहा l यह स्तिथी हताश करने वाली थी l इस तरह की चुनौती का सामना शक्ति और साहस से ही किया जा सकता था l
करम सिंह का गोला-बारुद समाप्त हो चुका था, और वे घायल हो चुके थे l उनके कुछ साथी सैनिक भी घायल हो चुके थे l उनके चौकी के चारो ओर दुश्मनों ने आग लगा दी थी, ताकि बाहर से गोला -बारुद की सहायता नही मिले lकरम सिंह एक बंकर से दूसरे बंकर तक गए और अपने सैनिकों का आत्मबल उंचा किया l वे भयंकर रूप से लड़ाई लड़े lपाकिस्तान का पांचवा आक्रमण में पाकिस्तान के दो सैनिक करम सिंह की खाई के किनारे तक आ गए, बिजली की गति से करम सिंह अपने खाई से निकले और दोनो पाकिस्तानी सैनिकों को बंदूक की संगीन से धराशायी कर दिया l

इसके बाद तीन आक्रमण और हुए परन्तु उन्हें विफल कर दिया गया lअंतत: पाकिस्तान के सैनिक पीछे हट गए l करम सिंह की वास्तव में विजय हुई l"विजय  शूरवीर को ही प्राप्त होता है " उन्होने ही कहा था lइस विरता के लिए उन्हें सैन्य-पदक से पहले ही अलंकृत किया गया था l तत्पश्चात उन्हें परमवीर चक्र से पुरस्कृत किया गया l

Lance Naik - KARAM SINGH                             परमवीर चक्र
Born : September 15, 1915
At: Barnala, Punjab
Unit: Sikh Regiment

Died : January 20, 1993.                                                                     
जय हिन्द - वन्दे मातरम 

Winners

विज्ञान कहता है कि एक वयस्क स्वस्थ पुरुष एक बार संभोग के बाद जो वीर्य स्खलित करता है, उसमें 400 मिलियन शुक्राणु होते हैं...... ये 40 करोड़ श...