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परमवीर चक्र [8] सूबेदार जोगिन्दर सिंह

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सूबेदार जोगिन्दर सिंह :  सिख रेजिमेंट की प्रथम बटालियन में एक अधिकारी थे l वे अपने तीस साथियों के साथ , तवान्ग-नेफा (अरुणाचल प्रदेश) मार्ग में एक महत्वपूर्ण स्थान की सुरक्षा कर रहे थे l हरे-भरे पहाड़ी पर स्तिथ तवान्ग-नेफा में एक प्राचीन बुद्ध मन्दिर है l शायद इसी कारण चीन के सैनिक इस शहर पर अपना अधिकार करना चाहते थे l October 23, 1962 की सुबह 5:30 बजे चीन के सैनिकों ने तवान्ग पर तीन ओर से आक्रमण कर दिया l कुछ मिनटो में ही चीनी सैनिक उस पहाड़ी पर आ गए जहाँ सूबेदार जोगिन्दर सिंह और उनके साथी युद्ध के लिए मोर्चा पर तैनात थे l वे अपने गन के रेंज में उनके आने तक रुके हुए थे l सूबेदार जोगिन्दर के आदेश मिलते ही सिख रेजिमेंट के योद्धाओ ने चीन के सैनिकों को काल कवलित करने लगे l पहली बार के 200 चीनी सैनिकों के धारासायी होते ही , दूसरी 200 चीनी सैनिकों की कतार आगे बढते चले आ रहे थे l जोगिन्दर सिंह और उनके साथी,जितनी तेजी से मशीन गन चलाई जा सकती थी चलाए l गोलियाँ तेजी से दागी जा रही थी l दुश्मन तितर-बितर हो गए l अनेको चीनी सैनिक मारे गए l अंतत: चीन के सैनिक पीछे हट गए lजो

परमवीर चक्र [7] मेजर धानसिंह थापा (भारत-चीन -1962)

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" सर्वे भवन्तु सुखिन: , सर्वे सन्तु निरामया: " विश्व-कल्याण का समर्थन करने वाला यह मूल मंत्र, भारत ने संपूर्ण जगत को दिया l सदा निश्चल मन से मित्रता निभाई l भारत सदैव चीन का समर्थन किया था l  भारत को,  "भारत-चीन" मित्रता में अटूट विश्वास था l यह मित्रता 'पंचशील' के सिद्धांतों पर आधारित था l परन्तु  September, 1959 को भारत-चीन सीमा पर अप्रत्याशित अप्रिय घटना घटी l चीनवासियों ने तिब्बत में सैन्य शक्ति एकत्र करने लग गए थे l विश्व का उच्च्तम पठार होने के कारण , तिब्बत सैनिक कार्यवाइयों के लिए महत्वपूर्ण है l तिब्बत में ऐसे बहुत सुरक्षित स्थान थे जहाँ गोला बारुद और हथियार रखने की पुरी व्यवस्था थी l चिनी सेना आसानी से घाटीयों और मैदानो को पार करके भारत वेश कर सकते थे l वहीं भारत को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था l भारतीय सैनिकों के लिए सबसे बड़ी कठिनाई यहाँ की पर्वतीय भूस्थल थीं l और इन्ही पर्वतीय चौकियों पर भारतीय सेना को नियंत्रण करना था l उन चौकियो तक पैदल या फ़िर खच्चरों की सवारी करके पहुंच सकते थेl इस तरह उन्हें अगली चौकी तक पहुंचने में

परमवीर चक्र [6] Captain गुरुबचन सिंह सालारिया [ भारतीय शांति सेना ]

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अन्तर्राष्ट्रीय शांति बनाए रखने में, भारतीय सेना  विश्वस्तर पर प्रसिद्धि पाई  है l  संयुक्त राष्ट्रसंघ के निवेदन को स्वीकार करने के बाद , November 1950 में  साठ्वी  फिल्ड एम्बुलेन्स यूनिट को कोरिया भेजा गया l भारतीय सेना का यह प्रथमअन्तर्राष्ट्रय मिशन था भारतीय सेना के लिए यह उतारदायित्व पूर्ण और कठिन कार्य था l परन्तु यह गौरव की बात है कि उन्होने परिस्तिथीयो के अनुकूल स्वयं को ढाल लियाl इन कार्यों के लिए उन्हें प्रशिक्षित किया गया l भारतीय सैनिकों ने राजनीतिक विवादो में किसी का भी पक्ष नही लिया lप्रत्येक स्थान पर उनकी ईमानदारी और निष्पक्षता के लिए उन्हें सम्मानित किया गया lतीन वर्षों बाद सशस्त्र सेना के सैनिकों और अधिकारियों ने कोरिया में  न्यूट्रल नेशन्स  रिपेट्रीयेशन कमीशन (1953 -1954) में भाग लिया l  इंडियन कस्टोडीयन फोर्स की स्थापना भी इसी वर्ष हुई l इसके साथ ही 1954 में ही भारतीय सशस्त्र सैन्य दलो ने वियतनाम, लाओस और कम्बोडीया में तीन अन्तरराष्ट्रीय नियंत्रण आयोगो की स्थापना हुई संयुक्त राष्ट्र संघ का दूसरा निमंत्रण 1956 में प्राप्त  हुआ l भारतीय सैनिक दस

परमवीर चक्र [5] लान्स नायक करम सिंह

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कश्मीर में टीथवाल पर भारतीय सैनिकों ने अपना अधिकार जमा  लिया था l इसी प्रयास में, कम्पनी हवलदार-मेजर पीरु सिंह (6th बटालियन राजपूताना राईफल्स) शाहिद हुए थे l पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सैनिकों को टीथवाल से बाहर निकालने का कई बार प्रयास कर चुके थे l October 13, 1948 को, टीथवाल में भारतीय सैनिकों के अवस्थानो पर पश्चिम और दक्षिण से पाकिस्तानी सैनिकों ने आक्रमण किया l चार घंटे तक घमासान लड़ाई होती रही l पाकिस्तान के सैनिको की स्तिथी क्षत -विक्षत हो गई, वे यत्र-तत्र बिखर गए थे l भारतीय सैनिकों को जो भी मिला उसकी उन्होने जम कर पिटाई की l पाकिस्तान की हार हुई l उन्हें पीछे खदेड़ दिया गया l पाकिस्तानी सैनिकों ने सारे दिन बार-बार आक्रमण करते रहे परन्तु वे भारतीय सैनिकों के व्युह को नही तोड़ पाए l प्रत्येक बार उन्हें पीछे धकेल कर वापस कर दिया l October 13, की लड़ाई में प्रमुख सेनानी थे, लान्स-नायक करम सिंह l वे सिख रेजिमेंट की पहली  बटालियन के योद्धा थे l टीथवाल क्षेत्र के बाहर की एक चौकी की बागडोर करम सिंह के हाँथो में थाl पाकिस्तानी सैनिकों ने उनकी चौकी पर आठ बार आक्रमण क

परमवीर चक्र [4] कम्पनी हवलदार - मेजर पीरु सिंह

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कश्मीर में  टीथवाल एक गहरी घाटी में बसा हुआ है l  इसके पश्चिम और दक्षिण -पश्चिम में उंची पर्वत श्रिंखलाए है l इस पर्वत श्रेणी पर, पाकिस्तानी सैनिकों ने कई चौकिया बनाए बैठे थे l छठी बतालीयन राजपूताना राईफ्लस के कम्पनी हवलदार -मेजर पीरु सिंह और उनके साथियोँ को आदेश मिला कि, वे  टीथवाल के दक्षिण में उस उंची पर्वत श्रेणी पर स्तिथ चौकीयों पर हमला करे l और उन  चौकीयों पर अपना l करें l इन चौकीयों तक जाने के लिए एक और  संकीर्ण मार्ग से गुज़रना था l इस मार्ग पर पाकिस्तानी सैनिक तैनात थेl इस पर्वत पर स्तिथ चौकीयों की प्रकृतिक सुरक्षा चट्टानो और पर्वतो से हो रही थी l उन्होने ' राजा रामचंद्र की जय ' का नारा बुलंद करके युद्ध का आह्वान किया और दुश्मनों पर आक्रमण करने चले l जैसे ही पीरु सिंह और उनके साथी सैनिक आगे बढे, त्यो ही पाकिस्तानी सैनिकों ने उन पर गोलियों की बौछार शुरू कर दी l भारतीय सैनिकों का इस तरह के अचानक आक्रमण से  पाकिस्तानी सैनिको को भय ग्रस्त कर गया l  वे भागने लगे , वे इतनी बुरी तरह डर गए थे कि, उन्होने किशन गंगा नदी में अपने हथियार और गोला-बारुद फेंक

परमवीर चक्र [3] सेकेण्ड लेफ्टिनेंट रामा रघुबा राणे

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युद्ध के दौरान सेना का एक यूनिट बहुत सक्रीय रहता है l यह यूनिट 'आर्मी-इंजिनियरिंग"     दुर्गम पहाड़ीयो और  द्र्राओ(passes) पर पुल और सड़क का निर्माण करता है l सेना आगे किसी भी प्रकार का आवारोध को हटाना सुरन्गो का पता लगा कर सेना को आगाह करना ही उनकी इंजिनियरिंग है l यह एक ज़ोखिम भरा काम है l परंतु सेना को सुरक्षित ढंग से आने-जाने के लिए और मार्ग  प्रसस्त   रहे  इसलिए इस कार्य को संपन्न करना अति आव्यशक है lLieutenant रघुबा राणे एक युवा इंजीनियर अधिकारी सैन्तीसवी असौल्ट्ट फिल्ड कम्पनी में कार्यरत थे l उन्हें नौशेरा से रजौरी तक भरतीय सेना का मार्ग प्रसस्त करना  था l नौशेरा और रजौरी के बीच में चिन्गास स्थित है l हमारे सैनिकों को इस चौकी पर कब्जा करना थाl हमारे पैदल सैनिको को आगे बढने का आदेश मिला, वे कमर तक पानी में पैदल चलते हुए, अनेको अवरोधो को पार करते हुए, चिन्गास की ओर बढने लगे l  घने जंगलो से गुजरते वक्त, उन्होने पाकिस्तान के सैनिको और वहाँ के जन-जातियों को परास्त किया l वे लोग जंगल में छुपे हुए थे l भारतीय सैनिकों ने उस बारवालि पर्वत श्रेणी को अपने अधिकार  म