परमवीर चक्र [14] सेकेण्ड-लेफ़्टिनेंट अरूण खेत्रपाल

दिसंबर 16, 1971स्थान- शंकरगढ़
शंकर गढ़ के उभरे स्थल पर भारत-पकिस्तान के बीच घमासान टैंकों की लड़ाई हो रही थी।इस युद्ध में पाकिस्तान की हार हुई थी। पाकिस्तान के विरुद्ध इस युद्ध में भारतीय टैंकों, थल सेना और वायुसेना के सम्मिलित आक्रमण का सकारात्मक परिणाम था। तब भारतीय सेना पाकिस्तान में 19 km. तक भीतर घुस गए थे। शंकरगढ़ का वह उभरा स्थल पाकिस्तानी टैंकों का शमशान बन गया था।

इन्हीं लड़ाइयों के दौरान भारतीय टैंकों पर जरपाल में आक्रमण हुआ और तभी अरूण खेत्रपाल को अपने वायरलेस पर वहाँ(जरपाल) से सहायता देने की पुकार सुनाई दिया। यह आवाज़ उनके साथी अधिकारी की थी, जो संकट की स्तिथि में थे और उन्हें अति सीघ्र सहायता चाहिए था। अरूण खेत्रपाल नें शीघ्र उत्तर दिया, " आपके पास ही हूँ और आपके पोस्ट पर पहुंच रहा हूँ।"  अपने साथियों समेत दो टैंकों के साथ उस पोस्ट की ओर कूच कर दिया। वे जरपाल के करीब पहुंचे ही थे कि उनपर पाकिस्तानी तोपों ने आक्रमण करना प्रारंभ कर दिया। अरूण खेत्रपाल बहादुर युवा अधिकारी थे। उनमें जोश, शक्ति और साहस की कमी न थी। अतः उन्हेंनें भी जबाबी कार्यवाई में दुश्मनों पर भीषण आक्रमण कर दिया। उन्होनें पाकिस्तान के कई पोस्ट धवस्त कर दिए। परन्तु उनके दूसरे टैंक के कमांडर वीरगति को प्राप्त हो गए। खेत्रपाल एक ही टैंक लेकर युद्ध मैदान में डटे रहे। इसी टैंक को लेकर वे दुश्मनों के बीच जाने लगे और जरपाल तक पहुंच गए। यहीं से वायरलेस कॉलिंग की गई थी।

पाकिस्तानी सैनिकों ने अपने छुपाए गए टैंकों को जैसे ही बाहर निकलना शुरू किया, त्यों ही खेत्रपाल ने एक पाकिस्तानी टैंक को उड़ा दिया। पाकिस्तान ने फिर दूसरा व्यवस्था किया और दूसरा आक्रमण किया। उस समय तीन भारतीय टैंक युद्ध स्थल में गतिमान थे। दो टैंक पहले से वहाँ क्रियाशील थे और एक टैंक खेत्रपाल स्वयं चला रहे थे। भयंकर टैंकों का युद्ध होने लगा। टैंकों की आपस में ऐसी मुठभेड़ और आमने-सामने की टक्कर हो रही थी, जैसे विशाल लोहे का घोड़ा। टैंको ने आग बरसाए, शोर किया और धूल उड़ाए। तीन भारतीय टैंकों ने दस पाकिस्तानी टैंकों को नष्ट किया। खेत्रपाल ने स्वयं चार टैंकों को नष्ट किया। तभी एक भारतीय टैंक को टक्कर लगी और बीउसका तोप काम करना बंद कर दिया। एक बार फिर अरुण खेत्रपाल के सामने भयंकर स्तिथि थी, वे अकेले रह गए। अचानक उनके टैंक को टक्कर लगी खेत्रपाल गंभीर रूप से घायल हो गए और उनके टैंक मेंआग लग गई। टैंक से आग की लपटें उठने लगी।अरुण खेत्रपाल को आदेश दिया गया कि वे अपने जलते हुए टैंक को छोड़ दें। परन्तु उन्होनें ऐसा नही किया। उन्होनें कहा, "जी नहीं। मैं अपने टैंक को नही छोडूंगा। मेरी गन अभी भी काम कर रही है। दुश्मनों को इतनी आसानी से आगे बढ़ने नही दूंगा सर।"..... वे टैंक को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। उन्होनें देखा कि पाकिस्तानी सैनिकों का दल आगे बढ़ रहे है।अतः वे अपनी ड्यूटी से पीछे हटना नहीं चाहते थे। पाकिस्तानीयों को सरलता से जीतते नही देखना चाहते थे।

आग की लपटों से घिरा हुआ टैंक से ही वे निर्भीक होकर फायर करते रहे। उन्होनें पाकिस्तान के एक टैंक को निशाना बनाया। उन्हें एक और सफलता मिली। उन्होनें पाकिस्तान के एक और टैंक को नष्ट किया। वे बहुत देर तक पाकिस्तानियों के लिए एक कठिन चुनौती बने रहे। और तभी उनके टैंक में दूसरी टक्कर लगी। उनका टैंक ध्वस्त हो चुका था। वह बहादुर अधिकारी युद्ध के मैदान में ही आँखे मूंद लीं। वे विरगति को प्राप्त हो गए। उस युद्ध स्थल में उनकी बहादुरी की छाप रह गई। सेकेण्ड लेफ्टीनेंट अरुण खेत्रपाल उस दिन विजयी हुए। उन्होनें पाकिस्तानियों को जीतने नहीं दिया। उनके देश-रक्षा के जूनून के सामने पाकिस्तान के सैनिकों का साहस मंद पर गया वे आगे नहीं बढ़ सके और अंततः वे पीछे हट गए। सेकेण्ड लेफ्टीनेंट अरुण खेत्रपाल को मरणोपरान्त परमवीर चक्र से पुरस्कृत किया गया।
सेकेण्ड-लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल
Born: October 14, 1950
At: Pune, Maharashtra
Unit: 17 Puna Horse
Battle of Basantar
India-Pakistan War 1971
Killed in action: December 16, 1971
           निज जीवन से देश बड़ा होता है, जब हम मिटते है तब देश खड़ा होता है।
                                                 जय हिन्द - वंदे मातरम

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