परमवीर चक्र [13] मेजर होशियार सिंह

पठान कोट से जम्मू तक की सड़क भारत -पाकिस्तान सीमा से 20 km. की दूरी पर है l इस सड़क की सुरक्षा के लिए भारतीय सैनिकों को काफी मुस्तैद रहने की आवश्यकता होती है l
क्योंकि जम्मू और कश्मीर के लिए यह सड़क जीवन रेखा के समान है l पाकिस्तान ने पहले ही इस क्षेत्र को घेर लिया था lउन्होंने बंकर बना लिया था और गहरी खाई खोद ली थीं ताकि
टैंक पकड़ सके l इसके अलावा भी वे अपनी टैंकों और हथियारों को सुरक्षित स्थान पर रख लिया था l पाकिस्तान पूर्ण रूपेण पठान कोट-जम्मू सड़क को काटने की कोशिश में लगा हुआ था l उनका मकसद जम्मू और कश्मीर को अलग करना था लेकिन पाकिस्तान के इस मंसूबे को नाकामयाब करने हेतु भारतीय सेना को शंकर गढ़ क्षेत्र में जाना था l यह क्षेत्र पठानकोट-जम्मू सड़क के सामने 1000 sq. Km. में फैला हुआ है l यह कार्य Dec. 5, 1971 की रात संपन्न हुआ l भारतीय सैनिकों के साथ टैंक और भारी गन थे l भारतीय सैनिकों को कई जगहों पर रुकना पड़ा l अंततः वे Dec. 12,1971 को बीन नदी पर पहुँचे और Dec. 15,1971 को बसन्तर  नदी पर पहुँच गए l गोलन्दाज सैनिकों को आदेश मिला कि वे बसन्तर नदी के उस पार पोस्ट बना लें l
                  मेजर होशियार सिंह एवं उनके साथी
मेजर होशियार सिंह : इसी बटालियन में थे l उन्हें आदेश मिला कि वे अपने साथियों के साथ पाकिस्तान के जरपाल वाली चौकी पर कब्जा करें l जरपाल का यह पाकिस्तानी चौकी  बहुत सुरक्षित स्थान पर था और इस चौकी पर पाकिस्तानी सैनिकों की संख्या अधिक थी l होशियार सिंह और उनके साथियों  पर लगातार पाकिस्तानी मीडियम मशीनगन से गोलियों की बौछार सहनी पड़ी l स्वयं को बचाते आगे बढ़ रहे थे, सहसा उन्होने अपने चारों तरफ देखा और स्तब्ध रह गए. उनके चारों ओर उनके साथियों के शव ही शव दिखाई पड़ रहा थाl एक क्षण के लिए मेजर होशियार सिंह क्रोध, दुख और भय की स्थिति में थे l परन्तु उन्होनें अपने ऊपर इन सभी का असर पड़ने नहीं दिया l चिन्ता की स्थिति से निपटने की और भय रहित होकर आक्रमण करने के लिए स्वयं को तैयार कर लिया l इतना ही नहीं बल्कि उन्होनें अपने बचे साथियों से भी ज़ोरदर शब्दों में कहा कि वे बहादुरी से लड़ते रहें l मेजर होशियार सिंह ने कहा कि "बहादुर लोग केवल एक बार मरते हैं l तुम्हें युद्ध करना ही है l तुम्हें विजय प्राप्त करनी है l" उनके सैनिकों को उनकी बातों ने प्रेरित किया l इसके बाद तो फिर घमासान युद्ध होने लगा और Dec. 15, 1971 को वे अपने लक्ष्य में सफल हो गए l
मेजर होशियार सिंह दहिया, Born: May 5,1937
At: सोनीपत, हरयाणा. Unit: 3rd Grenadiers. Battle of Basantar, Indo-Pak War 1971,Died : December 6,1971.
पाकिस्तान की फौज अपने साथ अधिक संख्या में बल लेकर वापस आ गई l पाकिस्तान की ओर से Dec. 16 को तीन बार आक्रमण हुए और पाकिस्तान के टैक दो बार आए. होशियार सिंह और उनके साथियों को फिर कठिन चुनौती से निपटना था. होशियार सिंह एक खाई से दूसरे खाई जा कर अपने सैनिकों का साहस बढ़ाया. जोरदार शब्दों उन्होनें अपने साथियों से कहा कि वे डटे रहे उन्हें अपनी पूरी शक्ति से युद्ध करना है. इस बीच कई बार उनपर दुश्मनों की गोलियों की बौछार हुई. परन्तु यह अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए बिलकुल चिंतित नहीं थे.  वे अपने सैनिकों को इस तरह हौसला बढ़ाया कि उनके सैनिक किसी भी दशा में हताश होने वाले नही थे उन्हें विजय प्राप्त करनी थी.  होशियार सिंह का नेतृत्व सफल रहा. पाकिस्तान के सभी आक्रमण विफल कर दिया गया.

उन बहादुर सैनिकों के सामने बहुत कठिन परिस्थितियाँ थी. उस से निपटना ही उनका एक मात्र लक्ष्य हो गया था. इसी बीच दुश्मन का एक गोला इनके समीप आ गिरा. होशियार सिंह और उनके एक सैनिक बुरी तरह घायल हो गया.  वह मीडियम माशीनगन चला रहा था. उस मीडियम मशीनगन का चलते रहना अति आवश्यक था. अतः होशियार सिंह अपने जख्म और दर्द की चिंता नहीं की और स्वयं मशीनगन चलाना प्रारम्भ कर दिया. उन्होंनें कई दुश्मनों को मार गिराया. उनके दृढ़ निश्चय और साहस से उस दिन उन्हें विजय प्राप्त हुई. पाकिस्तानी सेना पीछे हट गई. लेकिन वे अपने पीछे 85 पाकिस्तानी सैनिकों के शव छोड़ गए. जिनमें पाकिस्तानी सैन्य कमाडिंग अफसर तथा अन्य तीन अधिकारी थे. होशियार सिंह की विजय हुई. वे दर्द से पीड़ित थे, उनका काफी रक्त बह गया था, वे कमजोर हो गए थे फिर भी वह अपने साथियों के साथ ही रहना चाहते थे. वह अपने साथियों को छोड़कर जाने को तैयार नहीं थे. उनके जख्मों का उपचार किया जा सकता था और उन्हें दर्द से छुटकारा मिल सकता था. परन्तु वे उस समय तक डटे रहे, जब तक युद्ध बंद होने की घोषणा न की गई. मेजर होशियार सिंह को परमवीर चक्र से पुरस्कृत किया गया.



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