Saturday, 28 October 2017

परमवीर चक्र [15] फ्लाइंग-ऑफिसर निर्मल जीत सिंह सेखों



भारतीय वायुसेना ने 1971 के युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पूर्व और पश्चिम क्षेत्रों में भारतीय वायुसेना बहादुरी से अपने कर्तव्य का निर्वाहन किया। भारतीय वायुसेना 3 दिसम्बर
1971 की रात्रि 11:30 pm आकाश में उड़ान भरी और पाकिस्तानकी चुनौती का सामना किया। बिजली की गति और अदम्य साहस से भारतीय वायुसेना ने बंगलादेश में पाकिस्तान की वायुसेना को पूर्णतः नष्ट कर दीया। यह विध्वंस का कार्य युद्ध आरम्भ होने के बाद मात्र 24 घण्टे के भीतर ही कर दिया गया। इसके तुरंत बाद भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तानी पोस्ट पर बम गिराने लगे। पाकिस्तान के सैनिकों की गतिविधियों को रोकने के लिए तत्पर हो गई। पाकिस्तान की सप्लाई और पाकिस्तानी सैनिकों के भागने के रास्ते अवरुद्ध कर दिया।

उधर पश्चमी क्षेत्र में भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तानी वायुयानों को आकाश में मार भूमि पर गिरा दिए गए। पाकिस्तान के हवाई अड्डों और सैन्य अवस्थानों पर बम गिराए गए। पाकिस्तान के टैंकों और सैनिकों कोलाने वाली गाड़ियों पर बम गिरा कर नष्ट कर दिया गया।
भारत-पाकिस्तान के बीच 1971 के इस युद्ध में भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के युद्ध-तंत्र को छिन्न-भिन्न कर दिया। भारतीय वायुसेना ने थलसेना और टैंकों की सहायता की। सैनिकों को लाने-ले जाने और सप्लाई की वस्तुओ को युद्ध-स्थल तक पहुँचाने में अहम भूमिका निभाई। भारत के वायु क्षेत्र में पाकिस्तानी लड़ाकू विमान के प्रवेश होते ही भारतीय वायुसेना का विमान उस्का पीछा करते और मार गिराते। पाकिस्तानी वायुसेना को अमेरिका से प्राप्त, तीव्र गति से चलने वाला F-86(सेवरजेट) विमान आकार में विशाल और यांत्रिकी दृष्टि से आधुनिक था। इन वायुयानों से लड़ने के लिए भारतीय वायुसेना के पास नैट वायुयान थे। नैट वायुयानों का डिजाइन भारत में ही तैयार किया गया था। नैट वायुयान आकार में छोटे थे। परन्तु वे गति में तीव्र थे । अधिक उंचाई और निचले भागोँ में उड़ सकते थे तथा सभी दिशाओं में मुड़ सकते थे।

दिसंबर 14, 1971 को पाकिस्तानी वायुसेना के छः सेवरजेट लड़ाकू विमान श्रीनगर हवाई अड्डे पर आक्रमण किया। फ्लाइंग-ऑफीसर निर्मल जीत सिंह सेखो नैट वायुयान के पायलट थे। वह पाकिस्तान के सेवरजेट के आक्रमणों को विफल करने के लिए तैयार थे। उनसे पहले एक विमान उड़ चुका था और जिनके कारण रनवे धूल से ढ़क गया। जब तक रनवे साफ होता तब तक पाकिस्तान के छः विमान श्रीनगर हवाई अड्डे पर आक्रमण कर दिया। निर्मल जीत सिंह ने साहस और उम्मीद के साथ उड़ान भरा और शीघ्र ही दुश्मनों के दो वायुयानों को घेर लिया। आकाश में लड़ाई आरम्भ हो गई। सेखों ने चतुराई से उन वायुयानों पर निशाना साधा और उनको सफलता भी मिली। एक पाकिस्तानी वायुयान को टक्कर लगी और निचे की ओर लड़खड़ाते हुए गिरने लगा। दूसरे वायुयान में आग लग गई।

अब पाकिस्तान के चार वायुयानों ने सेखों पर आक्रमण करने लगे। परन्तु सेखों ने कोई भय नही दिखाया। उन्होनें उन चारों वायुयानों की आकाशीय घेराबंदी से निकलने का कोई प्रयत्न नही किया। वे बहुत ऊँचे उड़ सकते थे और उनके फायरिंग से बच सकते थे। उनका नैट वायुयान क्षण में ही बहुत ऊपर उड़ने में सक्षम था। परन्तु उन्होनें लड़ाई जारी रखी। आकाश में ही सेखों पाकिस्तानी वायुयानों के भारी दबाब में आ गए। पर उन्होंने अपनी आन नही छोड़ी। उनका वायुयान टकरा गया - जो पाकिस्तानी वायुयान बच गए, वे सीधा पाकिस्तान सीमा के भीतर ओझल हो गए। इधर सेखों विरगति को प्राप्त हो गए। पाकिस्तान की वायु सेना अपने लक्ष्य में सफल नही हुए। श्रीनगर हवाई अड्डे को बचा लिया गया। फ़्लाइंग ऑफिसर निर्मल जीत सिंह सेखों को मरणोपरान्त परमवीर चक्र से पुरस्कृत किया गया। भारतीय वायु सेना के वे पहले ऑफिसर थे जिन्हें बहादुरी के लिए राष्ट्र के सर्वोच्च पदक से पुरस्कृत किया गया।

Flying Officer
निर्मल जीत सिंह सेखों
Born: July 17, 1943 
 At: लुधियाना , पंजाब
Unit: No. 18 Squadron (IAF)
Attack on Srinagar Airfield
Indo-Pak War - 1971
Killed in action :
December 14, 1971
                                          जय हिन्द - वंदे मातरम्















Thursday, 26 October 2017

परमवीर चक्र [14] सेकेण्ड-लेफ़्टिनेंट अरूण खेत्रपाल

दिसंबर 16, 1971स्थान- शंकरगढ़
शंकर गढ़ के उभरे स्थल पर भारत-पकिस्तान के बीच घमासान टैंकों की लड़ाई हो रही थी।इस युद्ध में पाकिस्तान की हार हुई थी। पाकिस्तान के विरुद्ध इस युद्ध में भारतीय टैंकों, थल सेना और वायुसेना के सम्मिलित आक्रमण का सकारात्मक परिणाम था। तब भारतीय सेना पाकिस्तान में 19 km. तक भीतर घुस गए थे। शंकरगढ़ का वह उभरा स्थल पाकिस्तानी टैंकों का शमशान बन गया था।

इन्हीं लड़ाइयों के दौरान भारतीय टैंकों पर जरपाल में आक्रमण हुआ और तभी अरूण खेत्रपाल को अपने वायरलेस पर वहाँ(जरपाल) से सहायता देने की पुकार सुनाई दिया। यह आवाज़ उनके साथी अधिकारी की थी, जो संकट की स्तिथि में थे और उन्हें अति सीघ्र सहायता चाहिए था। अरूण खेत्रपाल नें शीघ्र उत्तर दिया, " आपके पास ही हूँ और आपके पोस्ट पर पहुंच रहा हूँ।"  अपने साथियों समेत दो टैंकों के साथ उस पोस्ट की ओर कूच कर दिया। वे जरपाल के करीब पहुंचे ही थे कि उनपर पाकिस्तानी तोपों ने आक्रमण करना प्रारंभ कर दिया। अरूण खेत्रपाल बहादुर युवा अधिकारी थे। उनमें जोश, शक्ति और साहस की कमी न थी। अतः उन्हेंनें भी जबाबी कार्यवाई में दुश्मनों पर भीषण आक्रमण कर दिया। उन्होनें पाकिस्तान के कई पोस्ट धवस्त कर दिए। परन्तु उनके दूसरे टैंक के कमांडर वीरगति को प्राप्त हो गए। खेत्रपाल एक ही टैंक लेकर युद्ध मैदान में डटे रहे। इसी टैंक को लेकर वे दुश्मनों के बीच जाने लगे और जरपाल तक पहुंच गए। यहीं से वायरलेस कॉलिंग की गई थी।

पाकिस्तानी सैनिकों ने अपने छुपाए गए टैंकों को जैसे ही बाहर निकलना शुरू किया, त्यों ही खेत्रपाल ने एक पाकिस्तानी टैंक को उड़ा दिया। पाकिस्तान ने फिर दूसरा व्यवस्था किया और दूसरा आक्रमण किया। उस समय तीन भारतीय टैंक युद्ध स्थल में गतिमान थे। दो टैंक पहले से वहाँ क्रियाशील थे और एक टैंक खेत्रपाल स्वयं चला रहे थे। भयंकर टैंकों का युद्ध होने लगा। टैंकों की आपस में ऐसी मुठभेड़ और आमने-सामने की टक्कर हो रही थी, जैसे विशाल लोहे का घोड़ा। टैंको ने आग बरसाए, शोर किया और धूल उड़ाए। तीन भारतीय टैंकों ने दस पाकिस्तानी टैंकों को नष्ट किया। खेत्रपाल ने स्वयं चार टैंकों को नष्ट किया। तभी एक भारतीय टैंक को टक्कर लगी और बीउसका तोप काम करना बंद कर दिया। एक बार फिर अरुण खेत्रपाल के सामने भयंकर स्तिथि थी, वे अकेले रह गए। अचानक उनके टैंक को टक्कर लगी खेत्रपाल गंभीर रूप से घायल हो गए और उनके टैंक मेंआग लग गई। टैंक से आग की लपटें उठने लगी।अरुण खेत्रपाल को आदेश दिया गया कि वे अपने जलते हुए टैंक को छोड़ दें। परन्तु उन्होनें ऐसा नही किया। उन्होनें कहा, "जी नहीं। मैं अपने टैंक को नही छोडूंगा। मेरी गन अभी भी काम कर रही है। दुश्मनों को इतनी आसानी से आगे बढ़ने नही दूंगा सर।"..... वे टैंक को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। उन्होनें देखा कि पाकिस्तानी सैनिकों का दल आगे बढ़ रहे है।अतः वे अपनी ड्यूटी से पीछे हटना नहीं चाहते थे। पाकिस्तानीयों को सरलता से जीतते नही देखना चाहते थे।

आग की लपटों से घिरा हुआ टैंक से ही वे निर्भीक होकर फायर करते रहे। उन्होनें पाकिस्तान के एक टैंक को निशाना बनाया। उन्हें एक और सफलता मिली। उन्होनें पाकिस्तान के एक और टैंक को नष्ट किया। वे बहुत देर तक पाकिस्तानियों के लिए एक कठिन चुनौती बने रहे। और तभी उनके टैंक में दूसरी टक्कर लगी। उनका टैंक ध्वस्त हो चुका था। वह बहादुर अधिकारी युद्ध के मैदान में ही आँखे मूंद लीं। वे विरगति को प्राप्त हो गए। उस युद्ध स्थल में उनकी बहादुरी की छाप रह गई। सेकेण्ड लेफ्टीनेंट अरुण खेत्रपाल उस दिन विजयी हुए। उन्होनें पाकिस्तानियों को जीतने नहीं दिया। उनके देश-रक्षा के जूनून के सामने पाकिस्तान के सैनिकों का साहस मंद पर गया वे आगे नहीं बढ़ सके और अंततः वे पीछे हट गए। सेकेण्ड लेफ्टीनेंट अरुण खेत्रपाल को मरणोपरान्त परमवीर चक्र से पुरस्कृत किया गया।
सेकेण्ड-लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल
Born: October 14, 1950
At: Pune, Maharashtra
Unit: 17 Puna Horse
Battle of Basantar
India-Pakistan War 1971
Killed in action: December 16, 1971
           निज जीवन से देश बड़ा होता है, जब हम मिटते है तब देश खड़ा होता है।
                                                 जय हिन्द - वंदे मातरम

Monday, 23 October 2017

परमवीर चक्र [13] मेजर होशियार सिंह

पठान कोट से जम्मू तक की सड़क भारत -पाकिस्तान सीमा से 20 km. की दूरी पर है l इस सड़क की सुरक्षा के लिए भारतीय सैनिकों को काफी मुस्तैद रहने की आवश्यकता होती है l
क्योंकि जम्मू और कश्मीर के लिए यह सड़क जीवन रेखा के समान है l पाकिस्तान ने पहले ही इस क्षेत्र को घेर लिया था lउन्होंने बंकर बना लिया था और गहरी खाई खोद ली थीं ताकि
टैंक पकड़ सके l इसके अलावा भी वे अपनी टैंकों और हथियारों को सुरक्षित स्थान पर रख लिया था l पाकिस्तान पूर्ण रूपेण पठान कोट-जम्मू सड़क को काटने की कोशिश में लगा हुआ था l उनका मकसद जम्मू और कश्मीर को अलग करना था लेकिन पाकिस्तान के इस मंसूबे को नाकामयाब करने हेतु भारतीय सेना को शंकर गढ़ क्षेत्र में जाना था l यह क्षेत्र पठानकोट-जम्मू सड़क के सामने 1000 sq. Km. में फैला हुआ है l यह कार्य Dec. 5, 1971 की रात संपन्न हुआ l भारतीय सैनिकों के साथ टैंक और भारी गन थे l भारतीय सैनिकों को कई जगहों पर रुकना पड़ा l अंततः वे Dec. 12,1971 को बीन नदी पर पहुँचे और Dec. 15,1971 को बसन्तर  नदी पर पहुँच गए l गोलन्दाज सैनिकों को आदेश मिला कि वे बसन्तर नदी के उस पार पोस्ट बना लें l
                  मेजर होशियार सिंह एवं उनके साथी
मेजर होशियार सिंह : इसी बटालियन में थे l उन्हें आदेश मिला कि वे अपने साथियों के साथ पाकिस्तान के जरपाल वाली चौकी पर कब्जा करें l जरपाल का यह पाकिस्तानी चौकी  बहुत सुरक्षित स्थान पर था और इस चौकी पर पाकिस्तानी सैनिकों की संख्या अधिक थी l होशियार सिंह और उनके साथियों  पर लगातार पाकिस्तानी मीडियम मशीनगन से गोलियों की बौछार सहनी पड़ी l स्वयं को बचाते आगे बढ़ रहे थे, सहसा उन्होने अपने चारों तरफ देखा और स्तब्ध रह गए. उनके चारों ओर उनके साथियों के शव ही शव दिखाई पड़ रहा थाl एक क्षण के लिए मेजर होशियार सिंह क्रोध, दुख और भय की स्थिति में थे l परन्तु उन्होनें अपने ऊपर इन सभी का असर पड़ने नहीं दिया l चिन्ता की स्थिति से निपटने की और भय रहित होकर आक्रमण करने के लिए स्वयं को तैयार कर लिया l इतना ही नहीं बल्कि उन्होनें अपने बचे साथियों से भी ज़ोरदर शब्दों में कहा कि वे बहादुरी से लड़ते रहें l मेजर होशियार सिंह ने कहा कि "बहादुर लोग केवल एक बार मरते हैं l तुम्हें युद्ध करना ही है l तुम्हें विजय प्राप्त करनी है l" उनके सैनिकों को उनकी बातों ने प्रेरित किया l इसके बाद तो फिर घमासान युद्ध होने लगा और Dec. 15, 1971 को वे अपने लक्ष्य में सफल हो गए l
मेजर होशियार सिंह दहिया, Born: May 5,1937
At: सोनीपत, हरयाणा. Unit: 3rd Grenadiers. Battle of Basantar, Indo-Pak War 1971,Died : December 6,1971.
पाकिस्तान की फौज अपने साथ अधिक संख्या में बल लेकर वापस आ गई l पाकिस्तान की ओर से Dec. 16 को तीन बार आक्रमण हुए और पाकिस्तान के टैक दो बार आए. होशियार सिंह और उनके साथियों को फिर कठिन चुनौती से निपटना था. होशियार सिंह एक खाई से दूसरे खाई जा कर अपने सैनिकों का साहस बढ़ाया. जोरदार शब्दों उन्होनें अपने साथियों से कहा कि वे डटे रहे उन्हें अपनी पूरी शक्ति से युद्ध करना है. इस बीच कई बार उनपर दुश्मनों की गोलियों की बौछार हुई. परन्तु यह अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए बिलकुल चिंतित नहीं थे.  वे अपने सैनिकों को इस तरह हौसला बढ़ाया कि उनके सैनिक किसी भी दशा में हताश होने वाले नही थे उन्हें विजय प्राप्त करनी थी.  होशियार सिंह का नेतृत्व सफल रहा. पाकिस्तान के सभी आक्रमण विफल कर दिया गया.

उन बहादुर सैनिकों के सामने बहुत कठिन परिस्थितियाँ थी. उस से निपटना ही उनका एक मात्र लक्ष्य हो गया था. इसी बीच दुश्मन का एक गोला इनके समीप आ गिरा. होशियार सिंह और उनके एक सैनिक बुरी तरह घायल हो गया.  वह मीडियम माशीनगन चला रहा था. उस मीडियम मशीनगन का चलते रहना अति आवश्यक था. अतः होशियार सिंह अपने जख्म और दर्द की चिंता नहीं की और स्वयं मशीनगन चलाना प्रारम्भ कर दिया. उन्होंनें कई दुश्मनों को मार गिराया. उनके दृढ़ निश्चय और साहस से उस दिन उन्हें विजय प्राप्त हुई. पाकिस्तानी सेना पीछे हट गई. लेकिन वे अपने पीछे 85 पाकिस्तानी सैनिकों के शव छोड़ गए. जिनमें पाकिस्तानी सैन्य कमाडिंग अफसर तथा अन्य तीन अधिकारी थे. होशियार सिंह की विजय हुई. वे दर्द से पीड़ित थे, उनका काफी रक्त बह गया था, वे कमजोर हो गए थे फिर भी वह अपने साथियों के साथ ही रहना चाहते थे. वह अपने साथियों को छोड़कर जाने को तैयार नहीं थे. उनके जख्मों का उपचार किया जा सकता था और उन्हें दर्द से छुटकारा मिल सकता था. परन्तु वे उस समय तक डटे रहे, जब तक युद्ध बंद होने की घोषणा न की गई. मेजर होशियार सिंह को परमवीर चक्र से पुरस्कृत किया गया.



Tuesday, 17 October 2017

परमवीर चक्र [12] लांस नायक एलबर्ट एक्का

पाकिस्तान में अंदरूनी अशान्ती थी, वहाँ की जनता इस  राजनीतिक अशान्ती से ऊबरने हेतु Dec.1970 में चुनाव करवायाl इस चुनाव के परिणामों से पूर्वी-पाकिस्तान(बंगलादेश) और पश्चमी-पाकिस्तान(वर्तमान) संघर्ष छिड़ गया l पाकिस्तानी फ़ौज को आदेश दिया गया कि , बंगलादेश के इस विद्रोह को खत्म कर दिया जाए l March 25, 1971: पाकिस्तानी फ़ौज के द्वारा बंगलादेश में हजारों बंगालीयों को मौत के घाट उतार दिया गयाl पूर्वी पाकिस्तान (बंगलादेश) के बंगाली डर कर वहाँ से भागने लगे l वे सब वहाँ से भाग कर भारत में शरण के लिए आ गएl इन शरणार्थीयों की संख्या बढती गईlदस लाख शरणार्थी भारत के लिए एक गंभीर समस्या बन गई।

पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा बंगालियों का कत्लेआम - 1971                                

इसी बीच पूर्वी-पाकिस्तान में चुनाव जीतने वाले जन प्रतिनिधीयों ने April 17, 1971 को बंगलादेश गणतंत्र के निर्माण की घोषणा कर दी। बंगलादेश की स्वतंत्र प्रान्तीय सरकार बन गई और मुक्ति-वाहिनी नाम से एक सैन्य बल तैयार कर लियाl पाकिस्तान की सेना और अधिक अक्रामक आक्रमणकारी होते गए। बंगलादेश के कई स्थानों पर पकिस्तानी फ़ौज से उनका भारी संघर्ष हुआ।
                पाकिस्तानी सेना के द्वारा महिलाओं और बच्चों पर अत्याचार। 
1971 तक पाकिस्तान ने अपनी सैन्य शक्ति बढ़ा ली। November 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच पूर्वी सीमा पर भीषण संघर्ष हुआ। December 3, 1971 को संध्या 5:45 बजे पाकिस्तान के वायुयानों ने भारत के पश्चमी भागों के हवााई अड्डो और सामरिक स्थलों पर आक्रमण किया। प्रधानमंत्री (Smt. Indra Gandhi) उस दिन राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए कहा था कि,"आज बंगलादेश का युद्ध भारत का युद्ध हो गया है - हमारे सामने अब युद्ध के अतिरिक्त कोई दूसरा विकल्प नही है,हमारे देश को युुध्द करना ही होगा। भारत-पाााकिस्तान के बीच यह युद्ध 14 दिनों तक चला।
बांग्लादेश के युवा नागरिकों द्वारा 'मुक्ति वाहिनी सेना' का गठन और सैन्य प्रशिक्षण ताकि वे पाकिस्तानीयों को ख़त्म कर सके। मुक्ति वाहिनी सेना को भारतीय सैनिकों के द्वारा प्रशिक्षण दिया गया।
लॉस-नायक एल्बर्ट एक्का :चौदहवें गार्ड के लांस नायक एल्बर्ट एक्का अपने साथी सैनिकों के साथ पाकिस्तान के गंगा सागर पोस्ट पर आक्रमण किया l यह स्थान अगरतला से पश्चिम की ओर छ: किलोमीटर दूर है l यह स्थान अधिक सुरक्षित किया गया था l भारतीय सेना के आगे बढ़ते ही, पाकिस्तान की सेना गोला बारूद की बौछार करने लगे l पर वे आगे की ओर बढ़े जा रहे थे l कुछ दूर तक बिलकुल सन्नाटा पसरा रहा l बहुत चौकन्ने आगे बढ़ रहे थे l सहसा उन्हे मशीन गन की चलने की आवाज सुनाई दी l वे रुक गए l एल्बर्ट एक्का ने देखा कि पाकिस्तानी सैनिक लाइट मशीन गन की बौछार कर रही है l अब उन्हें निर्णय लेने की परिस्थिति आ गई l एल्बर्ट एक्का ने इरादा कर लिया lDecember 6, 1971 को भारत ने 'गणतंत्र बंगलादेश' को मान्यता  प्रदान की l पूर्वी क्षेत्र में भारत और बंगलादेश की संयुक्त कमान स्थापित की गई l December 16,1971 को संध्या 5 बजे पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी क्षेत्र में बिना शर्त आत्मसमर्पण कर दिया l पाकिस्तान के 75 हजार सैनिकों और अधिकारियों ने अपने हथियार डाल दिए l उन सभी को बन्दी बना लिया l एक दिन बाद भारत अपनी ओर से पश्चमी क्षेत्र मे युद्ध बन्दी की घोषणा कर दी। भारत अपनी ओर से युद्ध को बढाना नहीं चाहता था। अतः दिसम्बर 17, 1971 को चौदह दिनों से चल रहा यह युद्ध समाप्त हो गया।इस युद्ध में भारतीय सशस्त्र सेना बड़ी बहादुरी से लडे। इस युद्ध में चार भारतीय सैनिकों को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।  
अपने अन्य साथियों को वहीं पर अपनी- अपनी  पोजिशन संभालने को कहा और स्वयं अकेले ही दुश्मन के बंकर पर पीछे की ओर से पहुंच गया और धावा बोल दिया l उन्होंने संगीनों से दो पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया l उस ओर से मशीन गन की आवाज़ आनी बंद हो गई l एल्बर्ट एक्का अपने साथियों के साथ आगे बढ़ने लगे l एल्बर्ट और उनके साथियो ने एक के बाद दूसरे बंकर हटाते और उनके पोस्ट को ध्वस्त करते हुए आगे बढ़ रहे थे l भारतीय सैनिकों की टुकड़ी अपने निर्धारित लक्ष्य के अनुसार उत्तरी किनारे पर पहुँचे ही थे कि दुश्मनों ने एक भवन के दूसरी मंजिल से मीडियम मशीन गन से गोलियों की बौछार आरम्भ कर दिया lएल्बर्ट के कुछ साथी वीरगति को प्राप्त हो गए अत: वे आगे बढ़ नहीं पाए l एक बार फिर एल्बर्ट ने गति और साहस से कार्रवाई करने का निर्णय किया l वह ज़ख़्मी हो चुके थे l परन्तु उन्होने अपनी घावों और दर्द की चिंता न करते हुए एल्बर्ट एक्का अपने हाथ में बम लेकर घुटनों के बल रेंगते हुए और कभी-कभी सांप की तरह लेट कर रेंगते हुए बढ़ते गए और उस भवन तक पहुँच गए, जहाँ से मशीनगन की गोलियों की बौछारआय रही थी l एल्बर्ट एक्का अपने लक्ष्य तक पहुंच गए थे, उन्होने पाकिस्तानी बंकर में एक हथगोला फेंक दिया, जिससे एक पाकिस्तानी सैनिक मारा गया और दूसरा गंभीर रूप से घायल हो गया l परन्तु दुश्मन की मीडियम मशीन गन की गोलियों की बौछार चलती रही lएल्बर्ट एक्का घायल हो गए थे और उनके शरीर से रक्त बह रहा था फिर भी वह आगे खिसकते हुए बढ़ते गए l वह एक दीवार पर चढ़ कर बंकर में कूद पड़े l बंकर में घुसते ही उन्होनें अपनी संगीन से पाकिस्तानी तोपची को मार डाला l वह चौकी अब शांत हो गया था l भारतीय सेना का वह बहादुर सैनिक एल्बर्ट एक्का गंभीर रूप से घायल हो गए थे और उनका शरीर अब और अधिक चोटें सहने योग्य नहीं था l वह गिर गए और वीरगति को प्राप्त हो गए।


लांस-नायक एल्बर्ट एक्का. Born: December  27, 1942. At: Gumla , Jharkhand. Unit: 14 Guards. Battle of Gangasgar. Killed in action: December 3, 1971. भारतीय सेना को अनेक समस्याओं का सामना करना था, क्योंकि बंगाल की भूमि में कई स्थलों पर पानी भरा हुआ था और यहां बहुत नदियां भी थी l इन नदियों पर कमजोर पुल बने हुए थे l अधिकांश पुल पाकिस्तानी सेना ने उड़ा दिया था l पाकिस्तान की सेना सुरक्षित स्थानों पर मोर्चा संभाले बैठे हुए थे l पाकिस्तानी सेना सीमा पर फैल गए थे और आने-जाने के मुख्य मार्ग पर तैनात थे l इसके अलावा पाकिस्तान के सैनिकों नें भूमिगत बंकर बना लिए थे और सुरंगे भी बिछा दी गई थी l यह सभी कार्यवाइयां भारतीय सेना के टैंकों गाड़ियों और सैनिकों की गतिविधियों को रोकने के उद्देश्य से किया गया था l इन सभी कठिनाईयों के बीच भारतीय सेना अपनी युद्ध नीति के साथ आगे बढ़ रही थी,प्रथम चरण में दुश्मनों के संचार - साधनों लाइनें काट दी गई जिससे कि वह सामने के आक्रमण से बचा जा सके l उनकी युद्ध नीति थी कि वे पीछे की ओर से आक्रमण किया जाए और सड़कों से अलग हट कर गलियों में आना जाना शुरू किया जाए l जल धाराओं को उन्होंने वायुयान, हेलिकॉप्टर और नौकाओं से पार किया गया l टूटे हुए पुलों को कूद-कूद कर पार करते आगे बढ़ते गएl पाकिस्तानी सेना के साथ कई बार आमने-सामने की मुठभेड़ हुई l

                                   सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयः






Sunday, 8 October 2017

परमवीर चक्र [11] Lt. Col.A.B. Tarapore

      Lt. Col  Ardeshir Barjorji Tarapore
September 8,1965. Time: 0600 hrs. Place: फिल्लौरा, सियालकोट सेक्टर, पाकिस्तान में भारतीय टैंक भारत-पाकिस्तान सीमा को पार कर आगे बढ रहे थे l भारतीय टैंको ने पाकिस्तान पर उत्तर की ओर से आक्रमण कर दिया थाlपाकिस्तानीयों ने यह कदापी नही सोचा था कि भारतीय टैंक धान के खेतों और गन्ने की फसलो को पार करके भारतीय टैंक पाकिस्तान में घुस आएँगे l

September 8, 1965 की प्रात: 9 बजे फिल्लौरा से 15 km. दूर पाकिस्तानी टैंको से पहली बार मुठभेड़ हुई l दिनभर लड़ाई चलती रही l उस दिन भारतीय सैनिकों ने बीस पाकिस्तानी टैंक नष्ट किए l यह युद्ध टैंको की सबसे बड़ी लड़ाई थीl लेफ्टीनेन्ट ए. बी . तारापोर पूना होर्स के एक अधिकारी थेl उन्होने 11 Sep. से 16 September 1965 तक पाकिस्तान के विरुद्ध टैंको की लड़ाईयां जीती थीl Lt.Col. ए .बी . तारापोर ने पाकिस्तन के क्षेत्र में फिल्लौरा,वज़िरवाली,जस्सोरान और बुतूर डोगरेन्दी पर अधिकार करने में सहायता किया थाl इन स्थानो में टैंको का भीषण युद्ध हुआ था,जिसमें भारत की महत्वपूर्ण विजय हुई थी l

तीसरे दिन September 11,1965 को तारापोर फिल्लौरा पर पीछे की ओर से आक्रमण करने का निर्णय किया l वे फिल्लौरा की ओर बढने लगे l चविन्दा और फल्लौरा के बीच दुश्मनो को अलग - अलग करने के लिए जैसे ही उन्होने टैंक आगे बढाया वैसे ही वजीरवाली से आए दुश्मन के टैंक ने उन पर आक्रमण कर दियाl तारापोर को एक बहुत तेज टक्कर लगा और वे घायल हो गए l परन्तु वे रुके नही क्योंकि पाकिस्तानी टैंको और तोपो का लक्ष्य एक ही दिशा में था l अत: तारापोर फिल्लौर पर आक्रमण किया और विजयी भी हुए l

Lt.Col.ए.बी.तारापोर वजीरवाली पर आक्रमण करने के दौरान टैंक एवं सैनिकों का मार्ग - दर्शन स्वयं किया l जब कि वे घायल थे और दर्द के कारण वे कमजोर पड़ते जा रहे थे l भारतीय टैंको को आगे बढने में बहुत कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा था l खेतों के आर-पार कई नाले थे,ऊंची-ऊंची फसलें खड़ी थी और पाकिस्तानी टैंक लगातार गोले बरसा
रही थी l भारतीय टैंको को बहूत धिमी गति और सावधानी से आगे बढना था l September 14,1965 को वजीरवाली पर विजय प्राप्त कर ली गई l उन्होने अपना मिशन पुरा कर लिया था l

छ:दिनों तक विकट टैंक युद्ध करते हुए September 16,1965 को Lt.Col.ए.बी. तारापोर घायल हो गए थे, उनके शरीर से रक्त बह रहा था और दर्द से कराह रहे थे, परन्तु वह युद्धभूमि को छोड़ने से इंकार कर दिया क्योंकि वह अपने सैनिकों के साथ रहना चाहते थेl उन्होने उसी युद्धस्थली में अंतिम साँस ली जहाँ पर उनकी विजय पताका लहरा रही थीl
Lt.Col.ए.बी.तारापोर और उनके रेजिमेंट को 60 पाकिस्तानी टैंको को नष्ट किया था, जो कि भारतीय सेना को साहस,निर्भिक्ता और बहादुरी की प्रेरणा देता रहेगा l
प्रधानमंत्री लाल बहादुर शाश्त्री सैनिकों को जीत की शाबाशी देते हुए

                                 जय हिन्द - वन्दे मातरम



Friday, 6 October 2017

परमवीर चक्र [10] कम्पनी क्वार्टर-मास्टर-हवलदार अब्दुल हमीद

भारत का एक छोटा टुकड़ा पाकिस्तान 1947 में बना l उसके दो वर्ष बाद भारत के प्रथम   प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने पाकिस्तान को 'युद्ध नही' के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने का सुझाव दिया l पाकिस्तान ने इस प्रस्ताव को स्वीकार नही किया lबल्कि उसने इसके विपरीत हथियार एकत्र करने हेतु,अमेरिका से मित्रता कर ली l निश्चित रूप से ये हथियार भारत के विरुद्ध प्रयोग किया जाना था l

पाकिस्तान में 1958 में सैन्य शासन स्थापित हो गया l 1962 में भारत-चीन सीमा विवाद के बाद, पाकिस्तान ने चीन को मित्र बना लिया l पाकिस्तान का ईरादा भारत को हानि पहुंचाना
था l हुआ भी वही 1965 में पाकिस्तान ने अमेरिका से प्राप्त टैंकों और हथियारों के साथ भारत के कच्छ-रन पर आक्रमण कर दिया l

जब कच्छ रन का युद्ध समाप्त हुआ तो पाकिस्तान कश्मीर में गड़बड़ी शुरु कर दी l पाकिस्तानी एजेन्ट नागरिको के वेश में गुप्त रूप से कश्मीर भेजे गए l उनका मिशन कश्मीर में उत्पात मचाना , पुल एवं सड़क को ध्वस्त करना था l भारतीय सेना की त्परता से ,ये सभी एजेंट गिरफ़्तार कर लिए गए l September 1965 जम्मू क्षेत्र में  छम्ब पर आक्रमण किया l और चार दिन बाद फ़िर पाकिस्तान के वायु सेना ने अमृतसर के पास भारतीय सैनिक अड्डो पर बमबारी की lपाकिस्तान के आक्रमण की आशंका पहले से ही थी l

September 10,1965 की प्रात: 8 बजे पाकिस्तानी गने पंजाब के खेमकर क्षेत्र मेंबौछारें करने लगी l पाकिस्तान के टैंक खेमकरन क्षेत्र में घुसने लगे l पाकिस्तान अपनी ओर से भुमिगत गहरी खाइयां बनाए हुए थे l उन खाइयों से उनके टैंक सीमा तक आ रहे थे l खेमकरन के सपाट खेतों में पाकिस्तानी टैंक आसानी से चल सकते थे l पाकिस्तानी सैनिकों का दबाब बढता जा रहा था l स्तिथी जटील और गंभीर हो गई थी l अब्दुल हमीद इस गंभीर स्तिथी को समझ गए l कम्पनी क्वार्टर-मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद, ग्रेनडियर्स की चौथी बटालियन में नियुक्त थेl उस समय उनकी यूनिट खेमकरन सड़क पर मुख्य पोस्ट की सुरक्षा कर रही थी l उन्हें किसी भी हाल में उस पोस्ट की रक्षा करनी ही थी l पाकिस्तान की अक्रमक स्तिथी को भंग करना था l

अत: अब्दुल हमीद ने सैन्य टुकड़ी को अपने साथ किया और एक जीप में सवार हो एक ओर चल दिये l पाकिस्तानी गने एवं टैंक लगातार गोले बरसा रहे थे l परन्तु वे भयभीत नही हुए l एक ओर जा कर उपयोगी पोस्ट बना लिया l वहाँ से वे प्रभावी ढंग से कार्रवाई करने लगे l वह स्थान दुश्मन की नीगाहों से छिपा हुआ था l अब्दुल हमीद सुरक्षित स्थान में थे परंतु दुश्मन उनके चारों ओर थे l वहीं से उन्होने पाकिस्तान का एक प्रमुख टैंक तोड़ दिया l

उन्होने ठान लिया था कि जितना संभव होगा उतना पाकिस्तानी टैंको को नष्ट कर दिया जाए पाकिस्तानी सैनिकों की तुलना में इनकी संख्या बहुत कम थी l फ़िर भी उन्होने पक्का निश्चय कर लिया था कि वे अकेले ही पाकिस्तानी टैंको से लड़ते रहेंगे lअब्दुल हमीद को एक और सफलता मिली, उन्होने पाकिस्तान के एक टैंक पर गोली दागी गोली टैंक की इन्धन टंकी में लगी और टैंक अग्नि की ज्वाला में परिवर्तित हो गया l जो पाकिस्तान के सैनिक टैंक चला रहे थे, टैंक में आग लगते ही भागने लगे और कुछ आग की चपेट में आकर जल गए l

अब्दुल हमीद आगे बढते गए l काफ़ी आगे बढने के कारण पाकिस्तानी सैनिकों ने उनकी स्तिथी(position) जान गए और उनकी जीप पर आक्रमण करने लगें l अब्दुल हमीद ने अपना हौसला कायम रखा l उन्होने दुश्मन का तीसरा टैंक भी तोड़ दिया l जब वे तीसरे टैंक को ध्वस्त करने में व्यस्त थे, तभी उनके जीप को बहुत ज़ोर टक्कर लगी और अब्दुल हमीद उसी स्थान पर वीरगति को प्राप्त हो गए l वास्तव में यही उनकी गौरवशाली विजय थी l उन्होने एक एसा आदर्श प्रस्तुत किया जो उनके साथियोँ के लिए सर्वाधिक प्रेरणादायक था l कम्पनी क्वार्टर-मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद को मरणोपरान्त परमवीर चक्र से पुरस्कृत किया गया l

पाकिस्तान का इस प्रकार बार-बार आक्रमण करना भारत की सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती देना, प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को कठोर निर्णय लेने बाध्य कर दिया l अंतत: उन्होने भारतीय सेना को आदेश दिया कि भारत-पाकिस्तान की सीमा को लांघा जाए l राष्ट्र की सुरक्षा के लिए ऐसा करना आवश्यक हो गया है l फ़िर भारत के सैनिकों ने सीमा के पार कई पाकिस्तानी चौकियों और पोस्ट को ध्वस्त करते हुए भितरी पाकिस्तान की ओर बढने लगे l भारतीय सेना लाहौर तक पहुंच चुके थे l तभी उनको रुक जाने का दूसरा आदेश मिला l पाकिस्तान की करारी हार हुईl यह युद्ध September23,1965 की प्रात: 4 बजे समाप्त हो गया l इस युद्ध में दो परमवीर चक्र प्राप्त किए l



                   कम्पनी क्वाटर-मास्टर-हवलदार अब्दुल हमीद                                   
BORN : July 1 ,1933
At : GHAZIPUR , उत्तर प्रदेश 
UNIT : 4 Grenadiers 
Battle of  Asal Rttar
Indo-Pak war 1965
Killed in action September 10,1965 
                             जय हिन्द - वन्दे मातरम                                                         

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