Saturday, 16 September 2017

परमवीर चक्र [4] कम्पनी हवलदार - मेजर पीरु सिंह

कश्मीर में  टीथवाल एक गहरी घाटी में बसा हुआ है l  इसके पश्चिम और दक्षिण -पश्चिम में उंची पर्वत श्रिंखलाए है l इस पर्वत श्रेणी पर, पाकिस्तानी सैनिकों ने कई चौकिया बनाए बैठे थे l

छठी बतालीयन राजपूताना राईफ्लस के कम्पनी हवलदार -मेजर पीरु सिंह और उनके साथियोँ को आदेश मिला कि, वे  टीथवाल के दक्षिण में उस उंची पर्वत श्रेणी पर स्तिथ चौकीयों पर हमला करे l और उन  चौकीयों पर अपना l करें l इन चौकीयों तक जाने के लिए एक और  संकीर्ण मार्ग से गुज़रना था l इस मार्ग पर पाकिस्तानी सैनिक तैनात थेl
इस पर्वत पर स्तिथ चौकीयों की प्रकृतिक सुरक्षा चट्टानो और पर्वतो से हो रही थी l
उन्होने ' राजा रामचंद्र की जय ' का नारा बुलंद करके युद्ध का आह्वान किया और दुश्मनों पर आक्रमण करने चले l जैसे ही पीरु सिंह और उनके साथी सैनिक आगे बढे, त्यो ही पाकिस्तानी सैनिकों ने उन पर गोलियों की बौछार शुरू कर दी l


भारतीय सैनिकों का इस तरह के अचानक आक्रमण से  पाकिस्तानी सैनिको को भय ग्रस्त कर गया l  वे भागने लगे , वे इतनी बुरी तरह डर गए थे कि, उन्होने किशन गंगा नदी में अपने हथियार और गोला-बारुद फेंक दिए l पीरु सिंह के साथ चल रहे अगली पंकती के आधे से अधिक सैनिक वीरगति को प्राप्त हो गए और कुछ साथी घायल हो गए l परंतु   पीरु सिंह थोड़ा भी हतोत्साहित नही हुए l वह आगे बढते गए l हथगोलो और बंदूक की गोलियों से पीरु सिंह ज़ख्मी हो गए थे l परंतु हथगोले और बंदूक की गोलियाँ भी उन्हें
आगे बढने से नही रोक सकी l वह आगे बढते रहे आखिरकार वे एक उंची पर्वत चोटी पर
पहुंच गए, जहाँ से वह दुश्मन की बन्दूको स्तिथी को देख सकते थे l अब तक उनके सभी साथी सैनिक वीरगति को प्राप्त हो चुके थे और कुछ सैनिक गंभीर रूप से घायल थे l पीरु सिंह अब अकेले थे l परंतु उन्होन परिस्तिथी को अपने पर  हावी होने नही दिया l वे बिना अधिक सोचे , पाकिस्तानी सैनिकों के खाई  मोर्चा में कूद पड़े l उन्होने पाकिस्तानी बन्दुकधारियो को अपनी बंदूक की संगीन से पीटाई की l  तभी अचानक पाकिस्तान के
एक हथगोले से पीरु सिंह के चेहरे पर गंभीर आघात लगा  l उनके शरीर से रक्त बहने लगा l
दर्द से संघर्ष करते हुए ,खीसक कर खाई से बाहर आने में सफल हो गए l

पीरु सिंह का ध्यान अब दुश्मन की दूसरी स्तिथी पर था l  उन्होने अपने स्टेनगन की जांच की, दुर्भाग्यवश स्टेनगन के कारतूस समाप्त हो चुके थे l  अत: आगे बढने के लिए उन्होने हथगोले फेंके l एक बार फ़िर वे दुश्मन की खाई में कूद पड़े और दो  पाकिस्तानी सैनिकों
को अपनी बंदूक की संगीन से मार-मार कर अधमरा कर दिया l

पाकिस्तान का एक बंकर था, जिसे पीरु सिंह नष्ट करना चाहते थे l उस वक्त उनमें असीम    शक्ति और साहस, उन्हें आगे बढने के लिए प्रेरित कर रही थी l जब वे पाकिस्तान के तीसरे बंकर पर आक्रमण के लिए हथगोला दुश्मनों के बंकर में फेंका, उधर हथगोला फूटा और उसी क्षण उनके सिर में एक गोली लग गई l पीरु सिभ धराशायी हो गए, दुश्मनो ने उन्हें
धकेल कर उसी बंकर में गिरा कर मार डाला l वे वीरगति को प्राप्त हो गए l वह अमर हो गए l कम्पनी हवलदार - मेजर पीरु सिंह को  मरणोपरान्त  परमवीर चक्र से  पुरस्कृत किया गया l
Company Hawaldar-Major

PIRU SINGH SHEKHAWAT

Born on : May 18, 1918

at : Jhunjhunu , Rajasthan.

Unit : 6th Battalion
           Rajputana Rifles
                     परमवीर चक्र
                                                  जय हिन्द - वन्दे मातरम 

Thursday, 14 September 2017

परमवीर चक्र [3] सेकेण्ड लेफ्टिनेंट रामा रघुबा राणे

युद्ध के दौरान सेना का एक यूनिट बहुत सक्रीय रहता है l यह यूनिट 'आर्मी-इंजिनियरिंग"     दुर्गम पहाड़ीयो और  द्र्राओ(passes) पर पुल और सड़क का निर्माण करता है l सेना आगे किसी भी प्रकार का आवारोध को हटाना सुरन्गो का पता लगा कर सेना को आगाह करना ही उनकी इंजिनियरिंग है l यह एक ज़ोखिम भरा काम है l परंतु सेना को सुरक्षित ढंग से आने-जाने के लिए और मार्ग  प्रसस्त   रहे  इसलिए इस कार्य को संपन्न करना अति आव्यशक है lLieutenant रघुबा राणे एक युवा इंजीनियर अधिकारी सैन्तीसवी असौल्ट्ट फिल्ड कम्पनी में कार्यरत थे l उन्हें नौशेरा से रजौरी तक भरतीय सेना का मार्ग प्रसस्त करना  था l नौशेरा और रजौरी के बीच में चिन्गास स्थित है l हमारे सैनिकों को इस चौकी पर कब्जा करना थाl

हमारे पैदल सैनिको को आगे बढने का आदेश मिला, वे कमर तक पानी में पैदल चलते हुए, अनेको अवरोधो को पार करते हुए, चिन्गास की ओर बढने लगे l  घने जंगलो से गुजरते वक्त, उन्होने पाकिस्तान के सैनिको और वहाँ के जन-जातियों को परास्त किया l वे लोग जंगल में छुपे हुए थे l भारतीय सैनिकों ने उस बारवालि पर्वत श्रेणी को अपने अधिकार  में   कर लिया l यह स्थान नौशेरा से  11 Km. उत्तर में स्थित है l  हमारे सैनिको को अब चिन्गास पर अधिकार करना था l आगे बढने पर पता चला की, मार्ग में सुरंग बिछाए गए   थे, सड़क पर अनेक अवरोध थे और दुश्मन घात लगाए प्रतीक्षा कर रहे थे lराणे और उनके साथियोँ को आदेश मिला कि वो वहाँ जा कiर सड़क पर पड़े अवरोधो को   हटाए l


April 8, 1948 को वे वहाँ पहुंच कर, उन्होने जैसे ही अपना कार्य आरंभ किया- पाकिस्तान के सैनिकों ने उन पर गोलियाँ दागने लगे l राणे के दो साथी वीर गति को प्राप्त हो गए l राणे और उनके पांच साथी घायल हो गए  l राणे जरा भी  विचलित नही हुए l बल्कि उन्होने अपने सैनिकों को पुन: दिशा निर्देश दिया l वे एक बा  फ़िर अपने कार्य में जुट गए, पहले के अपेक्षा और अधिक तिव्रता और दक्षता से वे मार्ग के अवरोधो को साफ़ करते  रहे l दुश्मनो की गोलियाँ उन्हें डरा नही पाई l

उन्होने April 9, 1948  की सुबह तक सुरंगो को हटा दिया गया l  वह अपने काम को पुरा करने के लिए रातभर काम में लगे रहे l परन्तू सड़क पर जो बड़े-बड़े ब्लाको को हटाना रह गया था l उनके साथियोँ ने April 9, 1948 की प्रात: सड़क पर से ब्लाको को हटाना प्रारंभ कर दिया l सारे दिन उन्होने काम किया l संध्या काल तक उन्होने अपना  कार्य  पूरा कर लिया l  अंतत: वे अपने  कार्य में सफल हो गए  l


हमारे टैंक अब आगे बढ रहे थे l सड़क साफ़ कर दिया गया था l उनकी कार्य क्षमता उत्कृष्ट थी l वह अपने उतर्दायित्व को भली-भाँति समझते थे l यही कारण था कि वे दो दिनो तक अबाध गति कार्य करते रहे थे l परन्तू दुश्मन वहाँ मौजूद थे l पाकिस्तानी सैनिक घने जंगलो में छुपे बैठे थे l मुख्य सड़क के किनारे झार्रियो में वे छिपे हुए थे lApril 10, 1948 को राणे ने अद्भुत कार्य  किया  l चूंकी वे थके हुए थे फ़िर भी उन्होने अकेले ही सड़क का एक बहूत बड़ा और भारी ब्लाक हटाया जब दुश्मन उन पर लगातार गोलियो की बौछार कर रहे थे lतीन दिनो तक मार्ग साफ़ करने और सुरंग को हटाने में राणे ने अथक  परिश्रम  किया lइसके बाद ही हमारे सैनिक चीन्गास में प्रवेश कर पाए l और उस पर अधिकार कर लिया l

2bd Lieutenant  रामा राघब राणे कोसाहसिक कार्य के लिए परमवीर चक्र
से पुरस्कृत किया गया l

Second  Lieutenant
Rama Raghuba Rane

Born : June 26, 1918
at Cendla.
Died : July , 1994

                    परमवीर चक्र
                                    जय हिन्द - वन्दे मातरम 

Sunday, 10 September 2017

परमवीर चक्र [2] नायक यदुनाथ सिंह

यह वीर गाथा 6 February, 1948 की है l उस दीन प्रात: घना कोहरा के कारण घोर अंधकार और ठंड भी थी l पाकिस्तानी  सैनिकसैन्धार गाँव के आसपास के घने जंगलों में से अन्धाधुन्ध गोलियो की बौछार करते हुए हमारी ओर रेंग रहे थे l उनकी मशीन-गन लगातार गोलियाँ दाग रहे थे l लगातार अन्धाधुन्ध गोलियाँ चलते रहने के कारण हमारे सैनिक चौकी के भीतर ही घीर गये थे l मोर्चा से बाहर वे सिर उठा कर स्थिति का आंकलन भी नही कर सकते थे l

नौशेरा की रक्षा के लिए, दुश्मनों को यहाँ  सैन्धार गाँव में ही रोकना अत्यावश्यक था l         इस भारतीय चौकी को भीषण आक्रमण का सामना करना था l क्योंकी यह सबसे अगली चौकी थी, और सिर्फ नौ सैनिकों को ही इसकी सुरक्षा करनी थी l इस चौकी की कमान यदुनाथ सिंह के हाँथो में थी l पांच सौ पाकिस्तानी सैनिकों और जन-जातियों ने कई बार


भारतीय मोर्चाबंदी को तोड़ने का प्रयत्न कर चुके थे l इस बार वो आगे बद रहे थे,
यदुनाथ सिंह ने अपने साथियोँ को चतुरता से व्यवस्तिथ किया l सैनिको को उत्साहित किया और कहा " हम अपनी अंतिम साँस तक लड़ेंगे l उनके चार सैनिक पहले ही घायल हो चुके थे l फ़िर भी उनके सैनिकों ने, पाकिस्तान के इस आक्रमण को विफल कर दिया l दुश्मन लौट गए l परंतु पाकिस्तान के सैनिको और जन-जातियों  लोग फ़िर लौट आए इस बार उनमे अधिक शक्ति से आक्र्माण किया l पाकिस्तानी सैनिक समझ चुके थे कि, उनका सामना सैनिक से नही बल्कि भारतीय सैनिक से होगा, जिनके अदम्य साहस और द्रिढ-संकल्प के सामने उनकी  अधिक संख्या पर भारी पड़ती है l


हुआ भी वही, एक बार फ़िर , उन्होने दुश्मन के आक्रमण को  विफल कर दिया l इस युद्ध के दौरान नायक यदुनाथ सिंह के साहस और संकल्प शक्ति ने उनके साथियोँ का उत्साहित किया l जज़्बा ऐसा की घायल  सैनिकों ने भी सहायता की l उस समय तक उनके सभी सहयोगी सैनिक या तो घायल हो चुके थे या वीरगति को प्राप्त हो गए थे lपाकिस्तान का तीसरा और अंतिम आक्रमण जब हुआ , उस समय तक  नायक यदुनाथसिंह के पास कोई नही बचा था, जो उनकी सहायता उन्होने धैर्य नही छोड़ा  उनके घाव और दर्द भी उनके  देश भक्ति और द्रीढ-इच्छा शक्ति को नही डीगा सकी l वे अपना स्टेन-गन ले कर अपनी चौकी के बाहर  निकल आए l उस समय पाकिस्तान के


सैनिक हमारी चौकी से मात्र 15 गज़ की दूरी पर थे l  खुले मैदान मे शेर की तरह दहाड़ाते हुए दुश्मनो पर अन्धाधुन्ध गोलियो की बौछार करते हुए बढने लगे l पाकिस्तान के सैनिक,
यदुनाथ सिंह की भयानाक गोली-बारी का सामना नही कर सके l  पीछे लौट गए l यदुनाथ सिंह पुरी तरह जख्मी हो चुके थे l उनके  सिर और सीने में दो गोलियाँ लग चुकी थी l
वे युद्धस्थल पर ही गिर पड़े और उन्होने अंतिम साँस ली l वे  वीरगति को प्राप्त हुए l
नायक यदुनाथ सिंह
परमवीर चक्र
नौशेरा ( कश्मीर )
February 6, 1948
राज्पूत रेजिमेंट ( प्रथम  बटालियन


         निज  जीवन से देश बड़ा होता है , हम जब मिटते है तब देश खड़ा होता  है  l

                                                       [ जय हिन्द ]

Saturday, 9 September 2017

परमवीर चक्र [1] मेजर सोमनाथ शर्मा














  • परमवीर चक्र' वीरता के लिए दिया जाने वाला सर्वोच्च पुरस्कार है|राष्ट्र के ज़न्बाज़ बहादुर सिपाहीयों. योद्धाओ को उनके अद्म्य  साहस  और निर्भीकता, उनका महान त्याग या उत्कृष्ट कर्यो के लिए प्रदान किया जाता है | वीरता और  आत्म त्याग या शत्रु की उपस्थिति में उल्लेखनीय बहादुरी के  लिए प्रदान किया जाता है|उन सभी महान योद्धाओ के,स्फुर्ती,निर्भिक्ता और दिलेरी की दास्तान बया कर रहा हूँ |  
                                               महाराजा हरीसिंह

कश्मीर  : 22 October 1947, को कश्मीर के मुज़फ्फरबाद में घुस्पैठियो ने आक्रमण कर दिया इन्हे पकिस्तान से प्रशिक्षण और शस्त्र की सहायता मिले थे| ऊरी और बारामूला की ओर आक्रमकारी बढ रहे थे|वे को आग लगाने और लूटने लगे, महिलाओं और बच्चों ह्त्याए करने लगे| कश्मीर के महाराजा हरी सिंह ने भारतसे निवेदन किया की उन्हे तुरंत सहायता दी जाए|भारत के तत्कालिन प्रधानमंत्री ने यह कहा की अभी आपकी सहायता नही  की जा सकती क्युंकी आप एक स्वतंत्र राष्ट्र है| इस पर कश्मीर के महाराजा ने दस्तावेज पर हस्ताक्षर करते हुए कहा की "कश्मीर आज से भारत का अभिन्न अंग है"

भारत ने शीघ्र ही सहायता प्रदान की और बहुत से सैनिक एक्त्र करके फ़ौरन ही श्रीनगर के लिए रवना कर दिया| हमारे सैनिको का पहला दल श्रीनगर हवाई अड्डे
पर,27,October,1947 की सुबह पहुँच गया|कश्मीर के लिए जंगशुरू हुआ, बड़ागांव औरशालतेन्ग में भीषण लड़ाई हुई|1 January,1948 को भारत ने संयुक्त राष्ट्र Iसंघ से अपील की कि पाकिस्तान के आक्रमण पर 'तुरंत कार्यवाही' की जाए |जम्मु और कश्मीर की इस लड़ाई में हमारे सैनिकों और वायु सैनिकों ने  साहस , संकल्प और देश-भक्ति  प्रकट हुई l  भरतीय   सैनिकों  ने आक्रमणकारियो को बारामूला से निकाल  बाहर कर  दिया l उन्हें उरी तक क्षेत्र से बाहर कर दिया l

6,900 मिटर से भी ऊंची  हिमालय की चोटियों को पार कर के, एक जोखिम भरे उड़ान के बाद , भरतीय वायु सेना का विमान  पहली बार लेह में उतरा|इस युद्ध में बहादुरी के उत्कृष्ट कार्य करने वाले :मेजर सोमनाथ  शर्मा (परमवीर चक्र - बड़गाम ,कश्मीर ) 3 November, 1947," मै एक इंच भी पीछे नही हटुन्गा, जब तक अंतिम सैनिक जीवित रहता है|"वीर अधिकारी मेजर सोमनाथ शर्मा के ये अन्तिम शौर्यपूर्ण शब्द थे | वे कुमायूरेजिमेंट की चौथी बाटालियन में तैनात थे| यह वीरता भरी घटना श्रीनगर  के दक्षिण-पश्चिम में, 15km. की दूरी पर बड़गाम में घटी|3 November,1947 को कुमायूँ रेजिमेंट की चौथी  बटालियन के एक सौ सैनिको ने बडगाम गाँव के दक्षिण मे ऊंचे स्थल पर पक्की चौकी स्थापित कर ली | चौकी पर 100 भारतीये सैनिकों  को 700 पाकिय्तानी  आक्रमणकारियो ने तीन ओर से घेर लिया और ताबड़-तोड़ हमारे सैनिकों पर गोलिया दाग रहे थे l

हमारे एक सैनिक पर उनके सात सैनिक थे l हमारे सैनिक भारी गोला-बारुद का  सामना कर रहे थे l बड़ी भीषण स्तिथी थी , ऐसी भीषण परिस्तिथी में मेजर शर्मा मृत्यु की चिंता न करते हुए बार-बार खुले मैदान मे दौड़-दौड़ कर अपने सैनिकों का निरीक्षण कर रहे थे, उन्हें
मार्गदर्शन देते और अविराम (non-stop) लड़ते रहने के लिए उत्साहित करते रहे l जैसे ही उनके सैनिक वीरगति को प्राप्त होते या घायल होते, मेजर शर्मा स्वयं मशीनगन load कर अगले सैनिक को थमा देते, यह सब काम वे अपने एक हाथ से ही कर रहे थे क्योंकि उनके बाएँ हाथ पर प्लास्टर चदा हुआ था l हड्डी टूट चुकी थी l डाक्टर ने उन्हे युद्ध में Frontier पर न जाने का परामर्श दिया था l परंतु वहाँ जाने की ज़िद्द कर रहे थे l वे अपने सैनिको के साथ रहना चाहते  थे lमेजर शर्मा ने देखा कि शत्रु तेजी से आगे बढ रहे है l उन्होने हेडक्वाटर को अंतिम संदेश भेजा : " दुश्मन हमसे केवल पचास गज दूर है l हमारी तुलना में उनकी संख्या कहीं अधिक है l हमारे ऊपर घनघोर गोला-बारुद की वर्षा हो रही है l

उन्हें अपने चौकी पर ही तब तक लड़ना था जब तक श्रीनगर को जाने वाले मार्ग के पास सेना की दुसरी टुकडी सहायता के  लिए न पहुंच जाए l परंतु हेडक्वाटर ने खतरे की गंभीरता महसूस कर लिया और पीछे हट जाने का आदेश दिया l"मैं एक इंच भी पीछे नही हटुगा , जब तक कि अंतिम सैनिक जीवित है lवे 6 घंटे तक लगातार लड़ते रहे lउनके बहुत सैनिक हताहत हुए l परंतु सैनिकों ने हिम्मत नही  हारी l जिसके फलस्वरूप लड़ाई का परिणाम उनके पक्ष में रहा l तभी एक विस्फोट हुआ ,दुश्मन के मशीनगन के यकायक निकली  गोली ने साहसी अधिकारी की निर्भीक आवाज़ को सदैव के लिए चुप कर दिया l उनके सैनिकों ने उन्हें आदर्श मानकर अगले एक घंटे तक लगातार लड़ते रहे l  अंतत: सहायक सैनिको  का  दल आ गये  और श्रीनगर को बचा लिया गया l मेजर सोमनाथ शर्मा को मरनोपरान्त  'परमवीर चक्र' से पुरस्कृत किया गया l वह अपने शौर्य और वीरता के लिए लिए इस  सर्वोच्च अलंकरन के  प्रथम विजेता थे l उनकी बहादुरी , साहस और आत्मत्याग अमर रहेगा l

Major Somnath Sharma
Born :January 31, 1923
At : Dadh, Kangra, Punjab
Died : November 3, 1947.
at- Bargaam, Jamu and
Kashmir.



UNIT : KUMAYUN REGIMENT
               परमवीर चक्र
        निज जीवन से देश बड़ा होता है , हम  जब  मिटते है तब देश खड़ा  होता है l
                                            [ जय  हिन्द ]
                                                                                   
                                                                              

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