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प्रकृति वास्तव में अच्छी औषधि है

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प्रकृति वास्तव में अच्छी औषधि है। विज्ञान इसका कारण बता सकता है। रक्तचाप में कमी और बेहतर अनुभूति और मानसिक स्वास्थ्य "हरे" और "नीले" स्थानों में समय बिताने के कुछ प्रलेखित लाभ हैं। डॉक्टर आमतौर पर अपने मरीज़ों को प्रकृति में समय बिताने की सलाह नहीं देते हैं, लेकिन शायद उन्हें ऐसा करना चाहिए। शोध के एक मजबूत समूह से पता चलता है कि हरे स्थानों - जैसे कि पार्क, जंगल, जंगल, पहाड़ और इसी तरह - में रहना लोगों के शारीरिक और मानसिक कल्याण के लिए फायदेमंद है। महासागरों, झीलों और नदियों के आसपास घूमने के फायदे कम प्रसिद्ध हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी ग्रीन एंड ब्लू स्पेसेस एंड मेंटल हेल्थ नामक एक रिपोर्ट से पता चलता है कि शहरी और उप-शहरी क्षेत्रों सहित प्रकृति में समय बिताने से मूड, मानसिकता और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है। शोध से पता चलता है कि जंगलों, पार्कों, बगीचों या समुद्र तटों के संपर्क में आने से जलवायु परिवर्तन के मनोवैज्ञानिक प्रभाव को भी कम किया जा सकता है, शारीरिक गतिविधि का समर्थन किया जा सकता है, और सामाजिक संपर्क और स्थानों के लिए &

Cycle

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#साइकिल की सवारी किसी भी देश की अर्थव्यवस्था (GDP) के लिए बेहद हानिकारक है....!  सुनने में ये हास्यास्पद लग सकता है , परन्तु सत्य है.... एक साइकिल चलाने वाला देश के लिए बहुत बड़ी आपदा है, क्योंकि....... वो गाड़ी नहीं खरीदता, वो लोन नहीं लेता, वो गाड़ी का बीमा नहीं करवाता, वो तेल नहीं खरीदता, वो गाड़ी की सर्विसिंग नहीं करवाता, वो पैसे देकर गाड़ी पार्किंग नहीं करता, वो ट्रैफ़िक फाइन नहीं देता , और तो और वो मोटा (मोटापा) नहीं होता। जी हां .....यह सत्य है कि एक स्वस्थ व्यक्ति अर्थव्यवस्था के लिए सही नहीं है, क्योंकि... वो दवाईयां नहीं खरीदता, वो अस्पताल व चिकित्सक के पास नहीं जाता वो राष्ट्र की GDP में कोई योगदान नहीं देता। ठीक इसके विपरित एक फ़ास्ट फूड की दुकान 30 नौकरी पैदा करती है........ 10 हृदय चिकित्सक, 10 दंत चिकित्सक, 10 वजन घटाने वाले...!    नोट :-पैदल चलना इससे भी अधिक ख़तरनाक होता है, क्योंकि पैदल चलने वाला व्यक्ति तो साइकिल भी नहीं खरीदता...................!! #cycle #bicycle

Aarambh hai prachand

आरम्भ है प्रचण्ड बोल मस्तकों के झुण्ड आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो, आन बान शान या की जान का हो दान आज एक धनुष के बाण पे उतार दो !!! वो दया का भाव या की शौर्य का चुनाव या की हार को वो घाव तुम ये सोच लो, या की पूरे भाल पर जला रहे वे जय का लाल, लाल ये गुलाल तुम ये सोच लो, रंग केसरी हो या मृदंग केसरी हो या की केसरी हो लाल तुम ये सोच लो !! जिस कवि की कल्पना में ज़िन्दगी हो प्रेम गीत उस कवि को आज तुम नकार दो, भीगती नसों में आज फूलती रगों में आज आग की लपट तुम बखार दो !!! आरम्भ है प्रचण्ड बोल मस्तकों के झुण्ड आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो, आन बान शान या की जान का हो दान आज एक धनुष के बाण पे उतार दो !!!

START) -2024

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START-2024: Soliciting Expression of Interest to host the online programme in Space Science and Technology Awareness Training (START) -2024 ISRO encourages greater participation from academia, for generating human resources in space science and technology, expanding the user base of the space exploration mission data, and fostering an ecosystem to facilitate active participation of the students in space science and technology research. Given this, ISRO initiated the online training programme “Space Science and Technology Awareness Training (START)” in 2023. The START-2024 programme will be conducted during 15 April- 3 May 2024 with 1-2 hours per day. START is an introductory-level online training in space science and technology for post-graduate and undergraduate students of science and technology.  The main objective of the training programme is to attract youngsters to the fields of space science and technology. The training modules will comprise introductory-level topic

Hamlet

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हेमलेट विलियम शेक्सपियर द्वारा लिखित एक त्रासदी है जो डेनमार्क के राजकुमार हेमलेट की कहानी बताती है जो अपने पिता की हत्या करने और सिंहासन पर कब्जा करने के लिए अपने चाचा क्लॉडियस से बदला लेना चाहता है। यह नाटक बदला, पागलपन, नैतिक भ्रष्टाचार और मानवता की प्रकृति के विषयों की पड़ताल करता है। डेनमार्क के राजकुमार हेमलेट, अपने पिता, राजा हेमलेट की आकस्मिक मृत्यु पर शोक मना रहे हैं। हालाँकि, उसका दुःख गुस्से और संदेह में बदल जाता है जब उसकी माँ, रानी गर्ट्रूड, अंतिम संस्कार के कुछ ही हफ्तों बाद उसके चाचा क्लॉडियस से शादी कर लेती है। हेमलेट पर उसके पिता का भूत आता है, जो बताता है कि क्लॉडियस ने उसकी हत्या कर दी थी। अपने पिता की मौत का बदला लेने की शपथ लेते हुए, हेमलेट क्लॉडियस के अपराध को उजागर करने की साजिश रचता है। हेमलेट, पागलपन का नाटक करते हुए, गलत तरीके से कार्य करना शुरू कर देता है, जिससे उसके परिवार और दोस्तों में चिंता पैदा हो जाती है। वह क्लॉडियस के अपराध को साबित करने के लिए जुनूनी हो जाता है और हत्या को दोहराते हुए एक नाटक के माध्यम से सबूत इकट्ठा करना चाहता है। इस समय

मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया

[Chorus] मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ा [Verse 1] बरबादियों का सोग मनाना फ़जूल था बरबादियों का सोग मनाना फ़जूल था मनाना फ़जूल था, मनाना फजूल था बरबादियों का जश्न मनाता चला गया बरबादियों का जश्न मनाता चला गया हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ा [Verse 2] जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया मुकद्दर समझ लिया, मुकद्दर समझ लिया जो खो गया में उसको भुलाता चला गया जो खो गया मैं उसको भुलाता चला गया हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ा [Verse 3] ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ ग़म और खुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ न महसूस हो जहाँ, न महसूस हो जहाँ मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया [Chorus] मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया

Manoj Kumar

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मनोज कुमार: बॉलीवुड के राष्ट्रीय गौरव और आदर्शों के ध्वजवाहक - भारतीय सिनेमा के इतिहास में, कुछ सितारे ऐसे चमके जिन्होंने केवल मनोरंजन ही नहीं दिया, बल्कि समाज का आईना दिखाया और सकारात्मक बदलाव की लहर लाने का प्रयास किया. मनोज कुमार ऐसे ही एक अभिनेता थे. उनके अभिनय की धाक, देशभक्ति की गूंज, और सामाजिक सरोकारों को उठाने का जज्बा उन्हें सिर्फ एक कलाकार नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र के आदर्श के रूप में स्थापित करता है. 24 जुलाई 1937 को पाकिस्तान के एबटाबाद में जन्मे मनोज कुमार का असली नाम हरि कृष्ण गोस्वामी था. विभाजन के बाद उनका परिवार भारत आया और दिल्ली में बस गया. बचपन से ही उन्हें अभिनय का शौक था. 1954 में मुंबई आकर उन्होंने फिल्मों में किस्मत आजमाने का फैसला किया. शुरुआती दौर में उन्हें छोटे-मोटे रोल मिले. 1957 में आई फिल्म "फैशन" से उन्होंने बतौर मुख्य कलाकार डेब्यू किया. हालांकि, सफलता उनके पीछे ही चल रही थी. "हरियाली और रास्ता" (1962) और "वो कौन थी?" (1964) जैसी फिल्मों में उनकी दमदार भूमिकाओं ने उन्हें पहचान दिलाई. 1965 में आई फिल्म "शहीद