Aarambh hai prachand
आरम्भ है प्रचण्ड बोल मस्तकों के झुण्ड
आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो,
आन बान शान या की जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो !!!
वो दया का भाव या की शौर्य का चुनाव
या की हार को वो घाव तुम ये सोच लो,
या की पूरे भाल पर जला रहे वे जय का लाल,
लाल ये गुलाल तुम ये सोच लो,
रंग केसरी हो या मृदंग केसरी हो
या की केसरी हो लाल तुम ये सोच लो !!
जिस कवि की कल्पना में ज़िन्दगी हो
प्रेम गीत उस कवि को आज तुम नकार दो,
भीगती नसों में आज फूलती रगों में
आज आग की लपट तुम बखार दो !!!
आरम्भ है प्रचण्ड बोल मस्तकों के झुण्ड
आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो,
आन बान शान या की जान का हो दान
आज एक धनुष के बाण पे उतार दो !!!
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