Friday, 31 March 2023

वास्तविक शिक्षा

K P Singh Saroha जी की पोस्ट :
"वास्तविक शिक्षा"
टी एन शेषन मुख्य चुनाव आयुक्त थे तब एक बार वे उत्तर प्रदेश की यात्रा पर गए। उनके साथ उनकी पत्नी भी थीं।

रास्ते में एक बाग के पास वे लोग रुके। बाग के पेड़ पर बया पक्षियों के घोसले थे। उनकी पत्नी ने कहा दो घोसले मँगवा दीजिए मैं इन्हें घर की सज्जा के लिए ले चलूँगी। उन्होंने साथ चल रहे पुलिस वालों से घोसला लाने के लिए कहा।

पुलिस वाले वहीं पास में गाय चरा रहे एक बालक से पेड़ पर चढ़कर घोसला लाने के बदले दस रुपये देने की बात कहे, लेकिन वह लड़का घोसला तोड़ कर लाने के लिए तैयार नहीं हुआ।
टी एन शेषन उसे दस की जगह पचास रुपए देने की बात कहे फिर भी वह लड़का तैयार नहीं हुआ। उसने शेषन से कहा साहब जी! घोसले में चिड़िया के बच्चे हैं शाम को जब वह भोजन लेकर आएगी तब अपने बच्चों को न देख कर बहुत दु:खी होगी, इसलिए आप चाहे जितना पैसा दें मैं घोसला नहीं तोड़ सकता।

इस घटना के बाद टी.एन. शेषन को आजीवन यह ग्लानि रही कि जो एक चरवाहा बालक सोच सका और उसके अन्दर जैसी संवेदनशीलता थी, इतने पढ़े-लिखे और आईएएस होने के बाद भी वे वह बात क्यों नहीं सोच सके, उनके अन्दर वह संवेदना क्यों नहीं उत्पन्न हुई? उन्होंने कहा उस छोटे बालक के सामने मेरा पद और मेरा आईएएस होना गायब हो गया। मैं उसके सामने एक सरसों के बीज के समान हो गया। शिक्षा, पद और सामाजिक स्थिति मानवता के मापदण्ड नहीं हैं।

प्रकृति को जानना ही ज्ञान है। बहुत सी सूचनाओं के संग्रह से कुछ नहीं प्राप्त होता। जीवन तभी आनंददायक होता है जब ज्ञान,संवेदना और बुद्धिमत्ता हो।

बिहार में उजड़े उद्योग की दास्तां

"हम लोगों का फ़ैक्ट्री कबाड़े-कबाड़ रह गया, बाल-बच्चा सब भटक रहा है, दिल्ली, पंजाब यूपी-हरियाणा. होटल में काम करता है, प्लेट धोता है, कोई 3 हज़ार देता है, कोई 5 हज़ार देता है. ये फ़ैक्ट्री खुल जाए तो हमारा बच्चा सब नेता लोगों को इतना गेंदा का माला पहना देगा कि उनसे संभलेगा नहीं."
दरभंगा ज़िले के हायाघाट में एक पीपल के पेड़ के नीचे बैठे उपेंद्र यादव अशोक पेपर मिल के सामने अपनी भैंसों को चराते हुए ये बात कहते हैं.

उनके पीछे सफ़ेद गेट पर ताला लगा है जिस पर हरे पेंट से अंग्रेजी में अशोक पेपर मिल लिखा है.

उपेंद्र इस पेपर मिल की कहानियां बताते हुए कहते हैं, "हमारा भी 18 बिगहा ज़मीन दरभंगा महाराज को दे दिया गया ताकि ये फ़ैक्ट्री बैठेगी तो रोज़गार आएगा. आज वो ज़मीन होती तो हमारे पास पैसा होता."

अपनी बेहतरीन पेपर क्वॉलिटी के लिए पहचाने जाने वाली अशोक पेपर मिल नवंबर 2003 से बंद पड़ी है.

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पेपर मिल की तरह ही बिहार के चीनी मिल, जूट मिल सहित राज्य की पूरी इंडस्ट्री जिसका एक सुनहरा अतीत था, उसका वर्तमान आज अंधेरे में डूबा हुआ है.

बिहार चुनाव में रोज़गार सबसे बड़ा मुद्दा था, सभी पार्टियों के घोषणापत्रों में एक वादा जो कॉमन था, वह है रोज़गार देने का वादा. लेकिन बिहार में इन पार्टियों की ही सरकारों में राज्य के उद्योग-धंधे तिल-तिल कर ख़त्म हुए.

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अशोक पेपर मिल की शुरुआत 1958 में दरभंगा महाराज ने की थी, इसके लिए किसानों से ज़मीन मांगी गई और बदले में उन्हें फ़ैक्ट्री लगाने के फ़ायदे बताए गए.

साल 1989 में इस मिल का मालिकाना हक़ बिहार सरकार को मिला लेकिन 1990 तक बिहार सरकार ने चीज़ें अपने हाथ में नहीं लीं.

इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा और कोर्ट ने इंडस्ट्रियल पॉलिसी और प्रमोशन विभाग के सचिव से अशोक पेपर मिल का रिवाइवल प्लान कोर्ट में पेश करने को कहा. साल 1996 में कोर्ट में एक ड्राफ्ट पेश किया गया और मिल के निजीकरण की सिफ़ारिश हुई, जिसे कोर्ट ने सहमति दे दी.

साल 1997 में आईडीबीआई बैंक मर्चेंट बैंकर बना और अशोक पेपर मिल का सौदा मुंबई की कंपनी नुवो कैपिटल एंड फ़ाइनैंस लिमिटेड के मालिक धरम गोधा को मिल गया.

इसके बाद भी मिल लगभग 6 महीने ही चल सकी और नवंबर 2003 में इसका ऑपरेशन पूरी तरह से बंद हो गया. लगभग 400 एकड़ में फैली इस फ़ैक्ट्री में आज जंगल जैसी घास फैली हुई है और ये ज़हरीले सापों का डेरा बनकर रह गया है.

पास के गांव में रहने वाले महावीर यादव कहते हैं, "इतने नेता आए, देखे और चले गए लेकिन कुछ ना हुआ. अब ये मिल बंद ही है. यही हमारा दुर्भाग्य है, कोई नेता ऐसा हो जो कुछ कर सके."

"बिहार का आदमी तो भूखों मर रहा है, दूर देश जा रहा है. नीतीश कुमार ने तो जो किया, हम क्या बताएं. नल-जल में जितना पैसा ख़र्च किया है अगर उतना कारखाने में खर्च होता 50 गो कारखाना खुल जाता."

न्यूज़क्लिक की एक रिपोर्ट कहती है कि जो समझौता गोधा और सरकार के बीच हुआ उसके तहत 504 करोड़ रुपये का निवेश अशोक पेपर मिल में करना था. लेकिन ये हुआ ही नहीं.

38 बिंदुओं वाले इस समझौते के हिसाब से 18 महीने के भीतर मिल को चालू करना था. कर्मचारियों के बकाया वेतन देने थे. इसके अनुसार मिल की संपत्ति को बाहर ले जाना मना था. सिर्फ़ वही मशीनें बाहर लाई जा सकती थीं जिन्हें रिपेयरिंग की ज़रूरत थी.

लेकिन उपेंद्र यादव बताते हैं, "यहां से ट्रक में सारा फ़ैक्ट्री का सामान भर-भर कर जाता रहा. साल 2012 की बात है जब ट्रक में मशीन भर कर ले जाया जा रहा था तो सब कर्मचारी प्रदर्शन करने लगे."

"इतने में मिल के एक गार्ड ने गोली चलाई और गांव का लड़का सुशील शाह जो मिल में मज़दूर था मारा गया. आज तक उसके मां-बाप उसके बकाया पैसे का इंतज़ार कर रहे हैं, कोई आसरा तो नहीं है. इस मिल से हमको अब."

हालांकि बीबीसी इन आरोपों की पुष्टि नहीं करता है.

वीडियो कैप्शन,
बिहार चुनावः मनरेगा मज़दूर किस हाल में हैं?

मीठी चीनी मिलों की कड़वी दास्तां
बिहार चीनी के उत्पादन के लिए जाना जाता था. देश के कुल चीनी उत्पादन का 40 फ़ीसदी हिस्सा बिहार में होता था.

देश की आज़ादी से पहले बिहार में 33 चीनी मिलें हुआ करती थीं लेकिन आज 28 चीनी मिलें हैं इनमें से भी सिर्फ़ 11 मिलें ऐसी हैं जो इस वक्त चालू हालत में हैं. और इनमें से भी 10 मिलों का मालिकाना हक़ प्राइवेट कंपनियों के पास है.

साल 1933 से लेकर 1940 तक बिहार में चीनी मिलों की संख्या बढ़ती गई और उत्पादन भी ख़ूब बढ़ा लेकिन इसके बाद चीनी मिलों की हालत बिगड़ने लगी.

इसके बाद साल 1977 से लेकर 1985 तक बिहार सरकार ने इन चीनी मिलों का अधिग्रहण शुरू किया.

इस दौरान दरभंगा की सकरी चीनी मिल, रयाम मिल, लोहट मिल, पुर्णिया की बनमनखी चीनी मिल, पूर्वी चंपारण और समस्तीपुर की मिलें सरकार के पास आ गईं.

साल 1997-98 के दौर में ये मिलें संभाली नहीं जा सकीं और एक के बाद एक मिलें बंद होने लगीं.

दरभंगा की सकरी मिल बिहार में बंद होने वाली सबसे पहली चीनी मिल मानी जाती है. साल 1977 में जब राज्य की कर्पूरी ठाकुर सरकार ने इस मिल का अधिग्रहण किया था तो लोगों में उम्मीद जगी कि सबकुछ ठीक हो जाएगा.

इस मिल में काम करने वाले अघनू यादव कहते हैं, "1945-1947 में बिहार में 33 मिल थीं आज 10 मिल चल रही हैं वो भी प्राइवेट में चलती हैं. हमारी ज़मीन गन्ना के लिए सबसे उपयुक्त है लेकिन हम गन्ना नहीं उगा सकते. इतनी लड़ाई लड़ी अब तो लगता है, बस पैसा मिल जाए हमारा."

सकरी मिल नौजवानों के लिए बस एक खंडहर भर है, उन्होंने बस इसके क़िस्से अपने बड़े-बुज़ुर्गों से सुने हैं.

विश्वजीत झा को नौकरी नहीं मिली तो वो पिता के साथ किसानी का काम करने लगे.

सकरी को लेकर अपनी याद साझा करते हुए वह कहते हैं, "हमारे बाबा कहते थे कि हमारा गुजर बसर इस मिल से चलता था. नीतीश जी के शासन में जो हमको याद है, वो ये कि इस मिल का शाम में गेट खुलता था और यहां की सारी मशीनें-पुर्जे ट्रकों में लाद कर ले जाई जाती थी."

"आज इस मिल का ताला खुलेगा तो इसमें कुछ भी नहीं मिलेगा. इस मिल का निजीकरण कर दिया गया. सरकार कहती है कि मिल चलाने में घाटा होता है. तो सरकार को ही घाटा है तो आम लोग क्या कर सकेंगे. अगर सरकार सारे संसाधन लेकर चीनी नहीं बनवा सकती तो किसान क्या करेगा."

"लालू जी ने क्या किया? नीतीश जी ने क्या किया? नीतीश जी ने रोड बनवा दिया लेकिन क्या हम रोड पर बैठ कर खाना खाएं? हम तो इस लायक भी नहीं हैं कि अपने बच्चे को ठीक से पढ़ा सकें कि वो कहीं नौकरी पा जाए. लेकिन जब पढ़ेगा नहीं तो यहां तो कोई काम है नहीं तो, बाहर जा कर मज़दूरी ही करेगा."

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बंद पड़ी एक चीनी मिल

'सभी कलपुर्ज़े निकाले और बेच दिए'
बात करते हैं साल 2005 की. बिहार स्टेट शुगर डेवेलपमेंट कॉरपोरेशन के तहत तमाम चीनी मिलों को रिवाइव करने का काम सौंपा गया.

इसके बाद राज्य सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी गई जिसमें दरभंगा की रयाम मिल, लोहट मिल और मोतीपुर मिल को छोड़ कर अन्य सभी मिल को कृषि पर आधारित अन्य फ़ैक्ट्री में तब्दील करने का प्रस्ताव पेश किया गया. इस रिपोर्ट में सकरी मिल को डिस्टलरी (शराब कारखाना) बनाने का भी प्रस्ताव दिया गया.

साल 2008 में मिल की नीलामी हुई और इनमें से ज़्यादातर मिलों को प्राइवेट कंपनियों ने ख़रीदा. रयाम और सकरी मिल को श्री तिरहुत इंडस्ट्री ने ख़रीदा है.

लेकिन ये मिल कभी नहीं खुल पाईं. जिन कंपनियों को इन प्लांट में निवेश करके इन्हें चलाना था उन्होंने कभी इसमें निवेश ही नहीं किया.

रामेश्वर झा इस मिल के कर्मचारी रहे हैं. वह कहते हैं, "इन प्राइवेट कंपनियों को ये मिल चलानी ही नहीं थी, उन्होंने इसके सभी कलपुर्ज़े निकाले और बेच दिए."

वो ये भी मानते हैं कि "बिहार में इन प्राइवेट कंपनियों को चीनी मिल नहीं चलानी थी बल्कि इथनॉल का उत्पादन करना था."

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बंद पड़ी एक चीनी मिल

मौजूदा वक़्त में लोहट चीनी मिल, जिसके मुनाफ़े से 1933 में सकरी मिल खोली गई थी, वहां अब जंग लगी और खोखली हो चुकी लोहे की मशीनें निवेश के इंतज़ार में बर्बाद हो चुकी हैं.

रयाम मिल का हाल तो और भी बुरा है. वहां अब सिर्फ़ ज़मीन का टुकड़ा बचा हुआ है.

यहां काम करने वाले अपने बक़ाया वेतन का इंतज़ार करते हैं. सकरी मिल बंद हुई 1997 में लेकिन राज्य की नीतीश कुमार सरकार ने यहां के मज़दूरों को 2015 तक का वेतन देने की बात की है. और मुख्यमंत्री के इस आश्वासन में कई लोगों ने उन पैसों का हिसाब अभी ही लगा लिया है जो उन्हें मिलेंगे. लेकिन ये पैसे उन्हें कब मिलेंगे इसका जवाब उनके पास नहीं है.

मधुबनी की लोहट मिल में बतौर गार्ड काम करने वाले मति-उर-रहमान रोज़ चार किलोमीटर साइकिल चलाकर लोहट मिल आते हैं और इस जंगलनुमां कारख़ाने की देख-रेख करते हैं.

वह कहते हैं, "नीतीश कुमार ने कोशिश की थी कि कोई इसको लीज़ पर ले ले लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. अब तो सरकार भी छोड़ दी है और कोई पार्टी भी नहीं आ रही है."

"ये मिल चलता तो गन्ना किसान को फ़ायदा होता और लोगों को काम मिलता लेकिन मिल बंद हो गया तो किसान बिलकुल ख़त्म हो गया. इतने लोग हैं जिनका पैसा बिहार सरकार ने नहीं दिया, कई लोग को वेतन के इंतज़ार में ही रह गए. बीवी बच्चा पैसे के लिए रो रहा है. सरकार पैसा दे नहीं रही है."

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लोहट मिल के गार्ड

बंद जूट मिल खुलवाना क्या चुनावी पैंतरा?
समस्तीपुर के मुक्तापुर में रामेश्वर जूट मिल 6 जून 2017 से बंद थी, लेकिन 13 सितंबर 2020 को राज्य के उद्योग मंत्री महेश्वर हज़ारी जो समस्तीपुर के ही कल्याणपुर से विधायक हैं, उनकी मौजूदगी में मिल दोबारा खुली.

जब हम मिल पर पहुंचे तो ऐसा लगा ही नहीं कि मिल में काम चल रहा है. वहां मौजूद लोगों से बात करने पर हमें पता चला कि मिल तो खुल गई लेकिन मिल खुलने की जो सबसे बड़ी निशानी होती है- हूटर बजना, वो अब तक मिल में नहीं बज रहा है.

फ़ैक्ट्री में बेहद कम संख्या में मज़दूर आ रहे हैं और लगभग 80 फ़ीसदी तक मिल बंद ही पड़ी हुई है. यहां काम करने वाले लोगों का मानना है कि इस मिल को चुनाव में लोगों की नाराज़गी कम करने के इरादे से खोला गया.

यहां सब-स्टाफ़ गार्ड के तौर पर तैनात संजय कुमार सिंह कहते हैं, "उद्योग मंत्री ने हमारे फ़ैक्ट्री मालिक से बात किया, बोला कि फ़ैक्ट्री का सारा बक़ाया दिया जाएगा. फ़ैक्ट्री का हूटर भी बजा. हम लोगों को लगा कि अब तो सब ठीक हो जाएगा, लेकिन आज इतने दिन हो गए. 11 करोड़ 65 लाख का बक़ाया जो बिहार सरकार के पास है वो नहीं मिला."

"मिल खुल गया है लेकिन हूटर नहीं बजता. उद्योग मंत्री ने मालिक से कहा था कि तीन दिन में ही पैसा मिल जाएगा, अब कहते हैं कि चुनाव संहिता लग गया, अभी नहीं मिलेगा."

राजू इस मिल में काम करने वाले मज़दूरों में से एक हैं. वह बताते हैं, "तीन साल का पैसा मिला नहीं है लेकिन मालिक क्या करेगा जो सरकार उसको पैसा नहीं देगी तो. वो तो अपने दम पर चला ही रहा है."

2017 में बंद होने से पहले इस मिल में 5000 लोग काम किया करते थे.

80 एकड़ में फैले इस मिल की शुरुआत 1926 में दरभंगा महाराज ने की थी, 1986 में इसे विन्सम इंडस्ट्रीज़ को बेच दिया गया लेकिन बाद में विन्सम ने इस कंपनी को पश्चिम बंगाल के एक व्यापारी बिनोद झा को बेच दिया.

इस मिल के बंद होने का कारण इसका लगातार आर्थिक संकट में फंसते जाना है.

मिल में साल 2012, 2014 और 2019 में आग लगी जिससे प्लांट का बड़ा नुक़सान हुआ. जूट मिल का बिजली बिल बकाया था और बिहार सरकार पर जूट मिल का 18 करोड़ रुपये बक़ाया था. पैसों के लेन-देन का मामला गहराता गया और ये मामला पटना हाईकोर्ट जा पहुंचा.

आख़िरकार मिल को बिजली बिल का भुगतान करने को कहा गया और सरकार को कंपनी के 18 करोड़ रुपये देने को कहा गया.

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जूट मिल में काम करने वाले एक मज़दूर

अभी भी जूट मिल का 11 करोड़ 65 लाख रुपये बिहार सरकार पर बक़ाया है. जूट मिल के मालिक ने उद्योग मंत्री के वादे पर मिल तो खोल दी लेकिन अब मिल के पास नया कच्चा माल लाने के पैसे नहीं हैं. लिहाज़ा मिल का हूटर बजाकर मिल नहीं खोली जा रही है.

मिल के कर्मचारी हरिया बताते हैं, "ये सब नेता लोग आता है और पागल बना कर जाता है. प्रिंस राज (समस्तीपुर से सांसद) भी आए थे चुनाव से पहले तो मिल का हूटर बजा था, बोले कि जब संसद में जाएंगे तो मिल का मुद्दा रखेंगे. बस उस दिन हूटर बज गया लेकिन एक दिन भी फ़ैक्ट्री नहीं खुला. ये भी (उद्योग मंत्री) यही करने आए हैं."

बिहार के सीमांचल का (कटिहार, किशनगंज, पूर्णिया और अररिया) इलाक़ा जूट के उत्पादन के लिए जाना जाता है. लेकिन सरकार की ओर से बढ़ावा ना मिलने और किसी भी तरह का निवेश ना होने के कारण यहां का जूट उत्पादन 10 क्विंटल सालाना पर आ चुका है.

कटिहार को 'जूट कैपिटल' तक कहा जाता है. यहां दो मिलें थीं, एक नेशनल जूट मैन्युफ़ैक्चरिंग कॉर्पोरेशन मिल (एनजेएमसी) और दूसरी सनबायो मैन्युफ़ैक्चरिंग लिमिटेड जिसे पुराना मिल भी कहते हैं.

50 एकड़ से ज़्यादा के क्षेत्रफल में फैले एनजेएमसी को साल 2008 में ही बंद कर दिया गया. अब ज़िले में सनबायो मिल ही है. ये मिल काम तो कर रही है लेकिन इसकी हालत भी बुरी है.

जानकार मानते हैं कि बिहार का सीमांचल इलाक़ा देश भर में जूट के उत्पादन का केंद्र हो सकता था लेकिन सरकार ने कटिहार, किशनगंज, पूर्णिया, अररिया में एक भी नई मिल नहीं लगवाई. जो थीं वो भी इन डेढ़ से दो दशकों में बर्बादी की ओर ही बढ़ीं.

एक वक़्त था जब इन मिलों में 4000 से 5000 लोग काम किया करते थे. आज बस दो सौ से ढाई सौ लोग मिल में काम करते हैं.

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रेशम का काम

सिल्क सिटी भागलपुर को सरकार कितना बचा पाई?
भागलपुर में एक चुनावी रैली के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंच से कहा, "त्योहारों का समय है, इसलिए पर्व पर जो भी ख़रीदारी करें, वह स्थानीय हो, भागलपुरी सिल्क के कपड़े ख़रीदें, साड़ियां ख़रीदें. मंजूषा पेंटिंग को बढ़ावा दें."

भागलपुर ज़िला प्रशासन की वेबसाइट खोलें तो मोटे अक्षरों में 'सिल्क सिटी' चमकता दिख जाएगा लेकिन इस सिल्क को बनाने वालों की क्या हालत है, इसकी चर्चा कहीं नहीं मिलती.

यहां की स्पन सिल्क फ़ैक्ट्री 1993-94 के दौर में ही बंद हो गई और इसके बंद होने का कोई औपचारिक ऐलान नहीं हुआ बल्कि इसमें काम करने वाले कामगारों के वेतन का भुगतान कंपनी नहीं कर सकी और इसका संचालन रोक दिया गया.

17 सालों से ये फ़ैक्ट्री ऐसे ही बंद पड़ी है. इस मिल का मैदान जंगली घासों से भरा पड़ा है और लोग इसे डंपिंग यार्ड की तरह इस्तेमाल करते हैं.

भागलपुर के पुरैनी गांव में 95 फ़ीसदी लोग बुनकर हैं. अंसारी बाहुल्य इस गांव में लोग पीढ़ी दर पीढ़ी सिल्क की बुनाई का ही काम करते आए हैं.

यहां रहने वाले 55 साल के सफ़ी अंसारी ख़ुद बुनकर हैं और उनका जवान बेटा भी बुनाई का ही काम करता है.

वह कहते हैं, "हमारा पूरा घर सिल्क का कपड़ा बनाता है और साड़ी बुनता है. मेरे बेटे को मैंने काम सिखाया है लेकिन काम आने से क्या होगा? स्किल इंडिया से नहीं होता, आपने (सरकार) हमको क्या दिया."

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रेशम के कीड़े के कोकून

सफ़ी पास में पड़े हैंडलूम की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, "देखिए वो साड़ी आधे पर बुनकर छोड़ दी गई है क्योंकि तागा (धागा) ख़त्म है और तागा बनाने का पैसा नहीं है."

"हम अपना बुनकर का कार्ड लेकर जाएंगे तो भी हमको साहेब यहां-वहां दौड़ाएंगे. कौन बेटा हमको देखने के बाद बुनकर बनना चाहेगा. बाल सफ़ेद हो गया लेकिन घिसते ही रहे, खाने और बच्चों को पढ़ाने के लिए ही पैसे पूरे नहीं हुए. किससे कहें कि हमसे काम सीख के बुनकर बनो. आप तो पहली बार आईं हैं वरना हमसे बात करने भी कौन आता है."

इस गांव के पिछड़ेपन का आलम ये है कि सरकार की नल-जल योजना तो दूर यहां पूरे गांव में दो से तीन घरों में ही नल है, बाकी सभी घरों में आज भी कुएं का पानी ही पिया जाता है.

आख़िर बीते डेढ़ दशकों में क्यों बिहार के उद्योग धंधों की तस्वीर नहीं बदल सकी. ये समझने के लिए हमने सत्तारुढ़ जनता दल यूनाइटेड और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से संपर्क किया लेकिन नेताओं की चुनावी व्यस्तता के कारण हमें वक़्त नहीं मिल सका.

रेशम का धागा निकालती एक महिला

नेताओं के गोल-मोल जवाब
12 अक्टूबर को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक चुनावी रैली में कहा था, "ज़्यादा बड़ा उद्योग कहां लगता है, समुद्र के किनारे जो राज्य पड़ता है वहां लगता है. हम लोगों ने तो बहुत कोशिश की."

हालांकि लोगों ने सीएम के इस बयान की ख़ूब आलोचना की. दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, यूपी जैसे कई राज्य जो लैंडलॉक्ड हैं वहां फैंक्ट्रियों की संख्या बिहार के मुक़ाबले बहुत ज़्यादा हैं.

हालांकि छह ज़िलों में फैले बिहार के खस्ता औद्योगिक मिलों का हाल जानने के बाद हमने राजनीतिक पार्टियों से ये जानना चाहा कि आख़िरकार डेढ़-दो दशकों में राज्य के तमामा उद्योगों की हालत क्यों सुधारी नहीं जा सकी?

इस सवाल के जवाब में जनता दल यूनाइटेड के नेता संजय सिंह कहते हैं, "हमें 2005 में 1947 की हालत वाला बिहार मिला था. सड़कें, बिजली लोगों के पास नहीं थी हमने 15 साल में बिहार की सूरत बदली है. हमने साढ़े छह लाख लोगों को रोज़गार दिया है."

लेकिन 15 साल में उद्योग को लेकर क्या किया गया मेरे इस सवाल को दोहराने पर वह कहते हैं 'इसका जवाब तो आप उद्योग मंत्री जी से लीजिए.'

सत्ता में जेडीयू की सहयोगी भारतीय जनता पार्टी के नेता भी इस सवाल का सीधा जवाब नहीं देते.

बिहार बीजेपी के अध्यक्ष संजय जायसवाल भी इस सवाल का सीधा जवाब देने की बजाय कहते हैं कि "उद्योग की हालत 90 के दशक के आख़िर से ही बिगड़नी शुरू हुई. फ़ैक्ट्री के मालिकों से वसूली की जाती थी, उस जंगल राज से लोग इतना डरे की अपने ही फ़ैक्ट्री छोड़ कर भाग गए. नए व्यापारियों ने इस डर से ही प्लांट नहीं लगाया. अगर ये लोग सत्ता में आए तो फिर वही होगा."

इस पूरी बातचीत में उनकी सरकार के प्रयासों का ज़िक्र नहीं मिला लेकिन हमारे बार-बार सवाल दोहराने पर वह कहते हैं, "हमने ख़ूब काम किया है हमारे इलाक़े (बेतिया) में सुगौली और लौरिया चीनी मिल आज काम कर रही हैं."

दरअसल, मोतिहारी की सुगौली और लौरिया चीनी मिल का 2012 में दोबारा संचालन शुरू किया गया.

एचपीसीएल ने इस मिल को चालू किया. लेकिन अप्रैल 2020 को ख़बरें सामने आईं कि लौरिया मिल पर किसानों का 80.36 करोड़ और सुगौली पर किसानों का 58 करोड़ रुपये बक़ाया है. उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने मिल मालिक से ये भुगतान करने को कहा था.

इन दो मिलों के सामने बिहार में औद्योगिकरण का स्याह चेहरा चमकता हुआ मानना थोड़ा बेमानी-सा लगता है.

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Hindustan Times

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार

इसके बाद जब हम राज्य के उद्योग मंत्री महेश्वर हज़ारी से मिले तो उन्होंने हमें सबसे पहले ये बताया कि आज वो बाइक पर सवार होकर अपने इलाक़े में निकले थे.

बिहार के उद्योग मंत्री होने के नाते उन्होंने क्या क़दम उठाए? इस सवाल पर वह कहते हैं, "हमको मंत्री पद ही दो महीने पहले मिला है."

लेकिन जूट मिल को लेकर वह अपना पक्ष रखते हुए कहते हैं, "देखिए बक़ाया तो मिल के मालिक का बिजली बिल है. हां, बिहार सरकार पर देनदारी है लेकिन पहले उन्हें सूद के साथ चाहिए था, फिर बोले मूलधन ही दे दीजिए. हमने मिल खुलवा दी है लेकिन अब आचार संहिता लग गई तो क्या करें. लेकिन चुनाव नतीजे आते ही पैसा दे दिया जाएगा."

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उद्योग मंत्री महेश्वर हज़ारी

बिहार में बंद पड़ी मिलों पर वह कहते हैं अगर वो जीत कर सत्ता में आए तो इस बार उद्योगों का विकास होगा.

हालांकि नेता जी का ये बयान बिहार की जनता दशकों से सुन रही है, क्योंकि बिहार की इंडस्ट्री की ये बदहाली किसी एक पार्टी की सरकार की देन नहीं है, ऐसा लगता है कि इसे तमाम सरकारों ने कभी मुद्दा माना ही नहीं. लेकिन अब इन पार्टियों के लिए रोजग़ार मुद्दा है लेकिन जिन फ़ैक्ट्रियों से रोज़गार मिल रहा था वो किसी की ज़ुबां पर नहीं हैं.

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Thursday, 30 March 2023

World’s First ‘WARP BUBBLE’

DARPA Funded Scientists Accidently Discover World’s First ‘WARP BUBBLE’ And Open The Door To Travel Faster Than Light
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Even though mathematicians have recently said it is possible, Warp Drive, which lets you travel faster than light, is still science fiction at the moment.

Or at least it was science fiction until DARPA-funded researchers accidentally found the world’s first warp bubble, the scientists report. It was found by a team from the Limitless Space Institute (LS) led by Dr. Harold G. “Sonny” White, who used to work at NASA and was an expert on warp drives.

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“To be clear, our finding is not a warp bubble analog; it is a real, if small and humble, warp bubble,” White said in a statement, quickly putting to rest the idea that this is anything other than the creation of a real warp bubble in the real world. “…which is why it’s important,” he added.

The discovery was made during a project that had nothing to do with warp drives or Miguel Alcubierre’s theories from 1994, which were the first to show how warp technology might work. Instead, it happened while they were working on a project to study Casimir cavities and how they can be used to make energy.

Because of a huge coincidence, it took an engineer doing the research at the right time who was familiar with warp technology research and knew what he was looking at to realize that this totally unrelated research had created a warp bubble.

The effect that was seen wasn’t an analog or something similar to a warp bubble. Instead, it was a very small, very humble, real-life structure that fit Alcubierre’s research perfectly. In other words, it was a real-life warp bubble.


The first real warp bubble in the world…
Now, for the first time, we know what physical tools are needed to make a real warp bubble. This means that warp field theory has moved from being crazy science fiction to something we can build in the real world with tools and technology we already have. That’s really cool!

Most people know what warp drive is because they’ve seen it on Star Trek, but right now our spaceships can only go as fast as the laws of Einsteinian physics allow. To make your ship move faster, you have to throw something in the opposite direction of the way you want to go. In the history of aviation and aeronautics, this meant burning fuel and sending a strong physical reaction out the back of the ship. The problem with this method is that you will run out of things to throw at some point.

Einstein’s equation about special relativity still applies to your ship. It says that as you get closer to the speed of light, more and more of the energy you use goes into increasing your own mass, until you reach a point where you can’t go any faster no matter how much energy you put in, and you never quite reach the speed of light. By the rules of physics, you can’t speed up faster than light because the more energy you put into your ship, the heavier it gets, and when it gets too heavy, you can’t do anything else with it.

The Alcubierre warp bubble is a cool idea that makes things interesting. Einsten’s equation can be avoided by putting a warp bubble around the local Euclidean space your ship is in and pushing the bubble instead of the ship. It still works inside the warp bubble, but in theory, the bubble can move faster than light without breaking any physical laws.

“While doing analysis for a DARPA-funded project to look at how the dynamic vacuum model predicts the structure of the energy density in a Casimir cavity, a micro/nano-scale structure was found that predicts a negative energy density distribution that closely matches the Alcubierre metric.” And that, in turn, gives us a chance to learn more about warp fields and how they might be used in the future. Now that warp drive is on the table, scientists can start to look into what it could do.

The warp bubble seen is, however, very small. We’re talking about things on the nanoscale, and they were made by studying negative energy with Casamir cavities and taking advantage of some of the strange quantum physics effects of these odd structures. Even though this is just the beginning, it gives us the chance to learn more about warp bubbles and Alcubierre’s equations.

Sunday, 26 March 2023

ISRO receives the crew module structure simulated assembly

ISRO receives the crew module structure simulated assembly
Today, ISRO received the Crew Module structure simulated assembly for the Integrated Air-Drop Test (IADT) meant for validating the sequence and performance of parachute systems in the Gaganyaan mission. The module was designed by Human Space Flight Centre (HSFC), ISRO and the hardware has been realized by Shri Venkateswara Aerospace Pvt. Ltd., Hyderabad. Shri S. Somanath, Chairman, ISRO/ Secretary, DoS, and senior officials of ISRO graced the occasion. 

This un-pressurized single wall Crew Module structure simulates the shape and size of the actual Gaganyaan crew module. Its structure accommodates major subsystems like parachute system, pyros, avionics, and buoyance augmentation system for IADT. The IADT will be performed, at SDSC-SHAR, using an Indian Air Force helicopter by taking the Crew module to an altitude of 3.6 to 4 km to validate the deceleration system (parachute & Pyro’s) performance.

Saturday, 25 March 2023

KOTHARI BROTHERS

Kothari brothers hoisted saffron on Babri, died in firing after 3 days
About 30,000 UP PAC personnel were deployed around the disputed site and in Ayodhya city. On this day, brothers named Sharad (20 years) and Ramkumar Kothari (23 years) hoisted the saffron flag on the dome of Babri Masjid.
It's been 29 years since the Ayodhya shootout, 5 people were killed on the first day of Karseva.

From 21 to 30 October 1990, lakhs of kar sevaks had gathered in Ayodhya. Everyone was preparing to go towards the disputed site. There was heavy security around the disputed site. Amidst the curfew in Ayodhya, at around 10 am, kar sevaks started moving towards the Babri Masjid from all four directions. Leaders like Ashok Singhal, Uma Bharti, Vinay Katiyar were leading them. About 30,000 UP PAC personnel were deployed around the disputed site and in Ayodhya city. On this day, brothers named Sharad (20 years) and Ramkumar Kothari (23 years) hoisted the saffron flag on the dome of Babri Masjid.

Kar sevaks had reached the disputed site by breaking the barricading by bus
Sadhus-saints and kar sevaks overpowered the bus of the security forces at 11 o'clock in which the police had kept the kar sevaks in custody to drop them outside the city. These buses were parked near the Hanuman Garhi temple. Meanwhile, a monk pushed the bus driver down. After that he himself sat on the steering wheel of the bus. Breaking the barricades, the bus moved rapidly towards the disputed premises. When the way opened due to breaking of barricading, more than 5000 kar sevaks reached the disputed site.

Had to fire bullets to handle the situation
Mulayam Singh Yadav was the Chief Minister of UP at that time. His clear instructions were that no harm should be done to the mosque. The police were earlier given clear instructions to use only tear gas shells to disperse the people. But, after the barricading was broken, the kar sevaks climbed the dome of the disputed structure. There, the Kothari brothers hoisted the saffron flag. After this the police fired on the kar sevaks. According to government figures, 5 kar sevaks lost their lives in the firing that took place in Ayodhya on 30 October 1990. CRPF jawans beat up both the Kothari brothers and chased them away.

कोठारी बंधुओं ने फहराया था बाबरी पर भगवा, 3 दिन बाद फायरिंग में गई थी जान
विवादित स्थल के चारों तरफ और अयोध्या शहर में यूपी पीएसी के करीब 30 हजार जवान तैनात किए गए थे. इसी दिन बाबरी मस्जिद के गुंबद पर शरद (20 साल) और रामकुमार कोठारी (23 साल) नाम के भाइयों ने भगवा झंडा फहराया.

29 साल हो चुके हैं अयोध्या गोलीकांड को
कारसेवा के पहले दिन मारे गए थे 5 लोग
21 से 30 अक्टूबर 1990 तक अयोध्या में लाखों की संख्या में कारसेवक जुट चुके थे. सब विवादित स्थल की ओर जाने की तैयारी में थे. विवादित स्थल के चारों तरफ भारी सुरक्षा थी. अयोध्या में लगे कर्फ्यू के बीच सुबह करीब 10 बजे चारों दिशाओं से बाबरी मस्जिद की ओर कारसेवक बढ़ने लगे. इनका नेतृत्व कर रहे थे अशोक सिंघल, उमा भारती, विनय कटियार जैसे नेता. विवादित स्थल के चारों तरफ और अयोध्या शहर में यूपी पीएसी के करीब 30 हजार जवान तैनात किए गए थे. इसी दिन बाबरी मस्जिद के गुंबद पर शरद (20 साल) और रामकुमार कोठारी (23 साल) नाम के भाइयों ने भगवा झंडा फहराया.

बस से बैरिकेडिंग तोड़कर विवादित स्थल तक पहुंचे थे कारसेवक
साधु-संतों और कारसेवकों ने 11 बजे सुरक्षाबलों की उस बस को काबू कर लिया जिसमें पुलिस ने कारसेवकों को हिरासत में लेकर शहर के बाहर छोड़ने के लिए रखा था. इन बसों को हनुमान गढ़ी मंदिर के पास खड़ा किया गया था. इसी बीच, एक साधु ने बस ड्राइवर को धक्का देकर नीचे गिरा दिया. इसके बाद वो खुद ही बस की स्टीयरिंग पर बैठ गया. बैरिकेडिंग तोड़ते हुए बस विवादित परिसर की ओर तेजी से बढ़ी. बैरिकेडिंग टूटने से रास्ता खुला तो 5000 हजार से ज्यादा कारसेवक विवादित स्थल तक पहुंच गए।

हालात को संभालने के लिए चलानी पड़ीं गोलियां
मुलायम सिंह यादव उस वक्त यूपी के मुख्यमंत्री थे, उनका साफ निर्देश था कि मस्जिद को कोई नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए. पुलिस को पहले स्पष्ट निर्देश दिया गया था कि लोगों को तितर-बितर करने के लिए केवल आंसू गैस के गोले छोड़े जाएं. लेकिन, बैरिकेडिंग टूटने के बाद कारसेवक विवादित ढांचे के गुंबद पर चढ़ गए. वहां, कोठारी बंधुओं ने भगवा झंडा फहरा दिया. इसके बाद पुलिस ने कारसेवकों पर फायरिंग की. सरकारी आंकड़ों के अनुसार 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में हुई फायरिंग में 5 कारसेवकों की जान चली गई. सीआरपीएफ के जवानों ने दोनों कोठारी भाइयों को पीटकर खदेड़ दिया.

Thursday, 16 March 2023

Parsees in India is decreasing

For stable population growth, a fertility rate of 2.1 is required. That means, every couple should have 2 children. So, 2 people will give birth to two children, which will keep the population stable. 
The fertility rate for Parsi community is 0.8, much less than the required 2. That means, 2 people from Parsi community will produce 1 child, which is a natural reason of decrease. For every 9 Parsi families, there in only 1 child below 10years of age.
Late marriage may be the reason as well. Minimum age at which Parsis get married is 27 for girls and 32 for boys. This is another reason for low fertility rates.

According to a legend, when parsis arrived in India, they promised the local king that they will not try to propogate their religion. Parsis in India are so exclusive as a community, that until recently, they did not accept marriages of Parsis with non-Parsis. Their children were not regarded as Parsis, even if the Father was a Parsi. Due to these reasons, relative marriages - Uncle with neice or between close cousins became common. And as it is biologically not viable to produce children by two people sharing a common genepool, naturally, their numbers dwindled.

GOI started an Initiative, JIYO PARSI, where the Govt encourages early marriage, having children early, having a second as well as a third child, as also medical support upto 5 lakhs against difficulty in child bearing.

नन्ही बालिका की कहानी

बहुत समय पहले की बात है, एक गाँव में एक गरीब औरत अपनी चार छोटी लड़कियाँ के साथ रहती थी। सबसे छोटी लड़की का नाम नन्ही परी था। चारो छोटी लड़कियां अपनी माता से खाने के लिए ब्रेड और नई फ्रॉक और टोपी और जूते-मोजे मांगती थी, लेकिन उनकी माँ केवल उनके रोज के खाने का ही बड़ी मुश्किल से प्रबंध कर पाती थी ।
गरीब औरत हर साल बसंत के महीने में कुछ उन खरीद कर सबसे बड़ी लड़की जलपरी के लिए एक फ्रॉक बनाती थी और जलपरी की पुरानी फ्रॉक उससे छोटी बेटी रतन परी को दे देती और रतन परी की पुरानी फ्रॉक दीपपरी को दे देती और दीपपरी की पुरानी फ्रॉक नन्ही परी को मिल जाती थी चारों बहने उन फ्रॉक को पहन कर बड़ी खुश होती थी ।

एक दिन चारों बहने जंगल में खेलने के लिए गईं, और दिन भर जंगल में खेलती रही, धीरे धीरे अँधेरा होने लगा तीनों बड़ी बहने घर जाने के लिए रवाना हो गयी लेकिन नन्ही परी फूलों को लेने के लिए पेड़ों के बीच अकेली रह गयी, नन्ही परी अकेली जंगल में डर रही थी, नन्ही परी इधर उधर दौड़ी और अपनी बहनों को खोजा लेकिन वो जा चुकी थी ।

जब नन्ही परी जंगल में अपनी बहनों को खोजने के लिए दौड़ी तो उसकी फ्रॉक एक कांटे की झाड़ी में फंस गई और सारी फट गई।

नन्ही परी ने अपनी फटी फ्रॉक को देखा और जोर जोर से रोना शुरू कर दिया, क्योंकि नन्ही परी जानती थी कि अगले साल तक उसे दूसरी फ्रॉक नहीं मिल सकती है।

सफ़ेद मेमने ने कहा, "नन्ही परी, नन्ही परी"। "मैं तुम्हें एक नई फ्रॉक बनाने के लिए कुछ ऊन दे सकता हूँ।"

और सफेद मेमने ने उसे कुछ नरम सफेद ऊन दे दिया।

नन्ही परी को रोता देख एक सफ़ेद भेड़ का मेमना वंहा आया और उसने नन्ही परी से पूछा, "नन्ही परी, तुम क्यों रो रही हो ?"

नन्ही परी ने कहा, "मैं रो रही हूं क्योंकि मैंने अपनी फ्रॉक फाड़ ली है और अगले साल के बसंत तक मेरे पास पहनने के लिए फ्रॉक नहीं है।"

नन्ही परी अपने घर जाने के लिए रवाना हो गयी, तभी रास्ते में नन्ही परी को एक जंगली झाड़ी मिली । जंगली झाड़ी ने नन्ही परी से पूछा "तुम्हारे पास क्या है ?

नन्ही परी ने कहा, "सफ़ेद भेड़ के मेमने ने मुझे नई फ्रॉक बनाने के लिए कुछ ऊन दी है।"

जंगली झाड़ी ने नन्ही परी से कहा की उन से फ्रॉक बनाने के लिए इस उन को कंघी करनी पड़ेगी ये उन मुझे दो, में इसे कंघी कर देती हूँ ।

नन्ही परी ने जंगली झाड़ी को सफेद ऊन दे दिया, और जंगली झाड़ी ने इसे अपने मजबूत कांटों से कंघी कर दिया ।

नन्ही परी अपने घर जाने के लिए रवाना हो गयी, तभी आगे रास्ते में नन्ही परी को एक पेड़ पर मकड़ी मिली । मकड़ी ने नन्ही परी से पूछा "तुम्हारे पास क्या है ?

नन्ही परी ने कहा, "सफ़ेद भेड़ के मेमने ने मुझे नया फ्रॉक बनाने के लिए कुछ ऊन दिया और जंगली झाड़ी ने उसे कंघी कर दिया ।"

मकड़ी ने नन्ही परी से कहा की उन से फ्रॉक बनाने के लिए इस उन को कात कर धागा बनाना पड़ेगा ये उन मुझे दो में इसे कात कर धागा बना देती हूँ ।

नन्ही परी ने मकड़ी को सफेद ऊन दे दिया, और मकड़ी ने इसे कात कर धागा बना दिया ।

नन्ही परी अपने घर जाने के लिए रवाना हो गयी, तभी आगे रास्ते में नन्ही परी को एक पेड़ पर पिचा मिला। पिचा ने नन्ही परी से पूछा "तुम्हारे पास क्या है ?

नन्ही परी ने कहा, "सफ़ेद भेड़ के मेमने ने मुझे नया फ्रॉक बनाने के लिए कुछ ऊन दिया और जंगली झाड़ी ने उसे कंघी कर दिया और मकड़ी ने कात कर धागा बना दिया।"

पिचा ने नन्ही परी से कहा की उन से फ्रॉक बनाने के लिए इस उन के धागे से कपडा बनाना पड़ेगा ये उन मुझे दो में इसे कपडा बना देता हूँ।

नन्ही परी ने पिचा को सफेद ऊन का धागा दे दिया, और पिचा ने इसे बुनकर कपडा बना दिया ।

नन्ही परी अपने घर जाने के लिए रवाना हो गयी, तभी आगे रास्ते में नन्ही परी को एक केकड़ा मिला। केकड़े ने नन्ही परी से पूछा "तुम्हारे पास क्या है ?

नन्ही परी ने कहा, "सफ़ेद भेड़ के मेमने ने मुझे नया फ्रॉक बनाने के लिए कुछ ऊन दिया और जंगली झाड़ी ने उसे कंघी कर दिया और मकड़ी ने कात कर धागा बना दिया और पिचा ने इसे बुनकर कर कपडा बना दिया।"

केकड़े ने नन्ही परी से कहा की उन से फ्रॉक बनाने के लिए इस उन के कपडे की कटिंग करनी पड़ेगी ये उन का कपडा मुझे दो में इसे कटिंग कर देता हूँ ।

नन्ही परी ने केकड़े को सफेद ऊन के धागे का कपडा दे दिया, और केकड़े ने अपने तीखे दांतों से इसे फ्रॉक के लिए कटिंग कर दिया ।

नन्ही परी अपने घर जाने के लिए रवाना हो गयी, तभी आगे रास्ते में नन्ही परी को एक पेड़ पर टिकटिक मिला। टिकटिक ने नन्ही परी से पूछा "तुम्हारे पास क्या है ?

नन्ही परी ने कहा, "सफ़ेद भेड़ के मेमने ने मुझे नया फ्रॉक बनाने के लिए कुछ ऊन दिया और जंगली झाड़ी ने उसे कंघी कर दिया और मकड़ी ने कात कर धागा बना दिया और पिचा ने बुनकर कपडा बना दिया और केकड़े ने इसे फ्रॉक के लिए कटिंग कर दिया।"

टिकटिक ने नन्ही परी से कहा की उन से बने इस कपडे से फ्रॉक बनाने के लिए इस उन के कटिंग हुए कपडे को सिलना पड़ेगा, ये ऊन का कपडा मुझे दो, में इसे सिलकर फ्रॉक बना देता हूँ ।

नन्ही परी ने टिकटिक को सफेद ऊन से बना कटा हुआ कपडा दे दिया, और टिकटिक ने इसे अपनी तीखी चोंच से सिलाई कर एक सुन्दर फ्रॉक बना दी ।

नन्ही परी अपनी एकदम नई सफ़ेद फ्रॉक देखकर बहुत खुश हो रही थी, ये उसके जीवन की पहली नई फ्रॉक थी, नन्ही परी ने उस फ्रॉक को पहना और ख़ुशी ख़ुशी गाने गाती हुई अपने घर चली गयी ।

Tuesday, 14 March 2023

पाकिस्तान पूर्ण तबाही पर उतर आया है; इमरान खान पर अब विदेशी फंडिंग का आरोप लगा है

पाकिस्तान पूर्ण तबाही पर उतर आया है; इमरान खान पर अब विदेशी फंडिंग का आरोप लगा है 
पाकिस्तान के योजना, विकास और विशेष पहल मंत्री अहसान इकबाल ने भ्रष्टाचार के आरोप में इमरान खान की गिरफ्तारी को विफल करने के लिए मंगलवार को उनके लाहौर स्थित आवास के बाहर पुलिस के साथ झड़प के बाद पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री अहसान इकबाल पर पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री पर विदेशी फंडिंग का आरोप लगाया है।

अहसान ने ट्विटर पर उर्दू में एक पोस्ट डाला, जिसका अनुवाद किया गया, जिसमें लिखा था: "पूरी दुनिया देख रही है कि कैसे एक अधर्मी इमरान नियाज़ी ने न्यायिक व्यवस्था को बंधक बना लिया है, अदालत के आदेश का उल्लंघन कर रहा है, कार्यकर्ताओं को मजबूर कर रहा है।" ढाल है, और अपने घर में छिपा है। क्या विदेशी फंडिंग इमरान के जरिए अराजकता फैलाकर अपना रंग दिखा रही है?"

देश भर के कई शहरों में इमरान की पार्टी के कार्यकर्ताओं के विरोध प्रदर्शन में कई पुलिसकर्मी घायल हो गए। टीवी फुटेज में दिखाया गया कि पुलिस एक बख्तरबंद गाड़ी के पीछे खान के जमान पार्क आवास की ओर धीरे-धीरे आ रही है, जो उनके समर्थकों को वाटर कैनन से तितर-बितर कर रही थी। चेहरे को कपड़े से ढके खान के समर्थकों ने पुलिसकर्मियों पर पथराव किया।

इस्लामाबाद पुलिस ने ट्विटर पर कहा, "पथराव के बावजूद, पुलिस ने अत्यधिक उपाय करने से परहेज किया।"

इस्लामाबाद पुलिस ने कहा कि ज़मान पार्क की छत से पथराव के बाद पुलिस दल का नेतृत्व कर रहे उप महानिरीक्षक (अभियान) शहजाद बुखारी सहित उसके पांच अधिकारी घायल हो गए।

डॉन अखबार ने बताया कि जमान पार्क में रुक-रुक कर आंसू गैस के गोले दागे जा रहे हैं, क्योंकि पुलिस फिलहाल पड़ोस के बाहर एक सुरक्षा बैरियर पर डेरा डाले हुए है। हालांकि, खान के समर्थकों ने उनके आवास की ओर जाने वाले रास्ते को घेर लिया है।
पीटीआई नेता शिरीन मजारी ने एक वीडियो साझा किया जिसमें आंसू गैस के गोले खान के आवास में घुसते देखे जा सकते हैं। "वे इमरान खान के घर पर भी गोलाबारी कर रहे हैं, एक ऐसा नेता जिसने सभी से शांतिपूर्ण और धैर्य से रहने का अनुरोध किया। देश में लोकतंत्र निलंबित लगता है, नहीं?" पार्टी के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया गया।

पीटीआई के उप नेता शाह महमूद कुरैशी ने पहले कहा था कि पार्टी नेतृत्व रक्तपात को रोकने के लिए "संभावित समाधान" खोजने के लिए तैयार है। उसने पुलिस से कहा, "मुझे वारंट दिखाइए। मैं पहले इसे पढ़ूंगा और समझूंगा। इसके बाद मैं इमरान खान और अपने वकीलों से बात करूंगा।"

तोशखाना मामले में जारी गिरफ्तारी वारंट के खिलाफ खान की पार्टी ने इस्लामाबाद उच्च न्यायालय का रुख किया।
इस्लामाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आमिर फारूक ने सुनवाई आज करने के पार्टी के अनुरोध को खारिज करते हुए बुधवार को सुनवाई तय की।

आंतरिक मंत्री राणा सनाउल्लाह ने, हालांकि, कहा कि अधिकारी अदालत के निर्देशों के अनुसार खान को गिरफ्तार करेंगे और उसे अदालत में पेश करेंगे।

'अगर मुझे कुछ हो गया...'

खान ने एक वीडियो संदेश में अपने समर्थकों से वास्तविक आजादी के लिए लड़ने के लिए ''बाहर आने'' और संघर्ष जारी रखने को कहा था, भले ही वह मारा गया हो या गिरफ्तार किया गया हो।

खान का वीडियो संदेश पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) द्वारा सोशल मीडिया पर जारी किया गया था क्योंकि पुलिस उन्हें तोशखाना मामले में गिरफ्तार करने के लिए उनके ज़मान पार्क आवास पर पहुंची थी। इमरान खान के ज़मान पार्क लाहौर आवास के बाहर आठ घंटे से अधिक लंबे पुलिस ऑपरेशन के बावजूद, पीटीआई कार्यकर्ताओं के कड़े प्रतिरोध के कारण पुलिस उन्हें गिरफ्तार नहीं कर सकी।

हिंसक झड़पों में पीटीआई के सैकड़ों कार्यकर्ताओं और पुलिसकर्मियों को चोटें आईं। अभी तक किसी के हताहत होने की सूचना नहीं है। पुलिस ने पीटीआई के कई कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया है। बड़ी संख्या में पीटीआई कार्यकर्ता भारी गोलाबारी का सामना कर रहे हैं। जमान पार्क जंग का मैदान बन गया।

लाहौर पुलिस प्रमुख बिलाल सादिक कामयान ने कहा कि लाहौर पुलिस खान की गिरफ्तारी में इस्लामाबाद पुलिस की मदद कर रही है। उन्होंने कहा कि हम यह सुनिश्चित करेंगे कि अदालत के गिरफ्तारी वारंट पर अमल हो। खान के आवास के बाहर पुलिस की तीन वैन मौजूद थीं।

पुलिस ने खान के समर्थकों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे और पानी की बौछारों का इस्तेमाल किया, जिन्होंने कथित तौर पर पुलिसकर्मियों पर पथराव किया, जिससे उन्हें चोटें आईं।

वीडियो संदेश में 70 वर्षीय खान ने कहा, "वे (सरकार) सोचते हैं कि मेरी गिरफ्तारी के बाद देश सो जाएगा। आपको उन्हें गलत साबित करना होगा," 70 वर्षीय खान ने वीडियो में कहा। भगवान ने मुझे सब कुछ दिया है और मैं आपके लिए यह लड़ाई लड़ रहा हूं। मैं जीवन भर इस लड़ाई को लड़ता रहा हूं और आगे भी लड़ता रहूंगा। अगर मुझे कुछ हो जाता है और मुझे जेल भेज दिया जाता है या मुझे मार दिया जाता है, तो आपको यह साबित करना होगा कि आप इमरान खान के बिना संघर्ष करेंगे और इन चोरों की और देश के लिए निर्णय लेने वाले एक व्यक्ति की गुलामी स्वीकार नहीं करेंगे। "


क्या है तोशखाना मामला?

खान उपहार खरीदने के लिए क्रॉसहेयर में रहा है, जिसमें एक महंगी ग्रैफ कलाई घड़ी भी शामिल है, जिसे उसने तोशखाना नामक राज्य डिपॉजिटरी से रियायती मूल्य पर प्रीमियर के रूप में प्राप्त किया था और उन्हें लाभ के लिए बेच दिया था।

अविश्वास मत हारने के बाद खान को पिछले साल अप्रैल में सत्ता से बेदखल कर दिया गया था, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि रूस, चीन और अफगानिस्तान पर उनकी स्वतंत्र विदेश नीति के फैसलों के कारण उन्हें निशाना बनाने वाली अमेरिकी नेतृत्व वाली साजिश का हिस्सा था।

अपने अपदस्थ होने के बाद से, खान प्रधान मंत्री शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली "आयातित सरकार" को हटाने के लिए तत्काल चुनावों के लिए संघर्ष कर रहे हैं। शरीफ ने कहा है कि संसद के पांच साल का कार्यकाल पूरा होने के बाद इस साल के अंत में चुनाव होंगे।

Monday, 6 March 2023

Holika Dahan 2023: Significance

Holika Dahan 2023: Significance, Rituals and Celebrations
होलिका दहन, जिसे छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है, भारत में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह होली के त्योहार से एक दिन पहले मनाया जाता है। 2023 में, होलिका दहन 7 मार्च को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाएगा। होलिका दहन फाल्गुन के महीने में पूर्णिमा की पूर्व संध्या पर फरवरी के अंत और मार्च की शुरुआत में होता है।

होलिका दहन का महत्व।
होलिका दहन एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाता है। यह त्योहार वसंत ऋतु की शुरुआत में मनाया जाता है।
होलिका दहन बहुत उत्साह और उत्साह के साथ मनाया जाता है। होली के पारंपरिक वसंत त्योहार के पहले दिन के रूप में इसका निशान

होलिका दहन मनाते हुए।

भारत के कई हिस्सों में, होलिका दहन क्षण भर के लिए अलाव जलाकर मनाया जाता है। लोग आग के चारों ओर इकट्ठा होते हैं, प्रार्थना करते हैं और गाते हैं। अग्नि को मिठाई, फल और अन्य प्रसाद चढ़ाया जाता है। आग बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। पूजा समाप्त होने के बाद प्रसाद वितरण किया जाता है।
2023 में होलिका दहन मनाने वालों के लिए यहां कुछ सुझाव दिए गए हैं:

1. अलाव के लिए लकड़ी और टहनियाँ इकट्ठा करें।

2. कुछ पारंपरिक खाद्य पदार्थ जैसे गुजिया, मठरी, मालपुए और लड्डू तैयार करें।

3. देवताओं को प्रार्थना और प्रसाद चढ़ाएं।

3. अलाव के चारों ओर गाओ और नाचो।

4. अपने समुदाय में शांति, सद्भाव और एकता को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता बनाएं।

Sunday, 5 March 2023

एक दीन गंगा रे तीरे मिलग्या दो बिछड्‌या प्राणी

एक दीन गंगा रे तीरे मिलग्या दो बिछड्‌या प्राणी 

दोहा – सूरज टले चंदो टले,
और टले जगत व्यवहार,
पण व्रत हरिशचंद्र रो ना टले,
ना टले रे सत्य विचार।

गुंजे धरती रे चारो धाम रे,
गुंजे धरती रे चारो धाम रे,
हरिशचंद्र राजा,
अमर रवैगो थारो नाम रे,
हरिशचंद्र राजा,
अमर रवैगो थारो नाम रे,
उगते प्रभाते ढळती शाम रे,
उगते प्रभाते ढळती शाम रे,
सतवादी राजा,
घर घर पुजीजे थारो नाम रे,
सतवादी राजा,
घर घर पुजीजे थारो नाम रे।।

तरवर दे ठंडी छैया,
सरवर दे मीठो पाणी,
परहीत परमारथ पंथी,
जीवण ने है जिंदगाणी,
जुनी रो मरम पिछाण्यो,
बणगो गुण सागर ज्ञानी,
दुर्बल दुखिया रो दाता,
मानी जो बनकर दानी,
मनड़े पर कसदी नी लगाम रे,
मनड़े पर कसदी नी लगाम रे,
जय जय जुग बाला,
अमर रवैगो थारो नाम रे,
जय जय जुग बाला,
अमर रवैगो थारो नाम रे।।

दोहा – सत री सोरम छाएगी,
तीन लोक के माय,
पारख हरिशचंद री करी,
सपने में मुनी आय।
दे दीनो सब दान में,
सुर्यवंश सिरमौर,
जावे है सब त्याग के,
राज वस्त्र तक छोड़।

कुपल सी कवली काया,
सुंदर तारामती राणी,
फुला पर चालण वाली,
काटा में बहे गुलबाणी,
झुलसे रोहीतास जो बालो,
तपते तावड़ीए माई,
भुखा तीरसा या भटके,
सत रे मारगीये माई,
सत पर जीवतडा बाले चाम रे,
सत पर जीवतडा बाले चाम रे,
हरीशचन्द्र राजा,
छाला पड गया रे थारे पाव रे,
हरीशचन्द्र राजा,
छाला पड गया रे थारे पाव रे।।

सत रे पथ बीक ग्यो सीमरत,
सत पर बीक गी महाराणी,
अवधपुरी रो राजा,
भरसी शुदर घर पाणी,
मंगसो चांदडलों पडगो,
धरती माँ भी लचकाणी,
बहतो वायरियो रुकगो,
गंगा को थमगो पाणी,
कर दीनो भुपत सब लीलाम रे,
कर दीनो भुपत सब लीलाम रे,
वचना रा बारु,
अमर रहेगो थारा नाम रे,
वचना रा बारु,
अमर रहेगो थारा नाम रे।।

एक दीन गंगा रे तीरे,
मिलग्या दो बिछड्‌या प्राणी,
घड़ीयो ऊंचादे म्हाने,
बोली तारामती राणी,
सैंधी सी बोली सुणके,
संभळयो सतवादी दानी,
पण अपनो धर्म निभावण,
करगो वो आनाकानी,
झुकगा वे नैना कर सीलाम रे,
झुकगा वे नैना कर सीलाम रे,
जन्मा रा भिडू,
रैगा हिवडे ने दोनो थाम रे,
जन्मा रा भिडू,
रैगा हिवडे ने दोनो थाम रे।।

दोहा – सोनो तप कंचन बणे,
अरे मत वे जिव हतास,
साँच रे मारगिये सदा,
त्याग तपस्या त्रास।

सोभे हो राज सिंहासन,
झिलमिलता हिरा मोती,
नगरी में प्राण सु प्यारो,
सबरे नैणा री ज्योती,
झुला रे समरा झुलतो,
धूलता हा चवर पछाड़ी,
मरघट पर लकड़ा फाडे,
हरिशचंद रे हाथ कुल्हाड़ी,
तड़पे दिन रात न ले विसराम रे,
तड़पे दिन रात न ले विसराम रे,
मेहनतीया मारू,
अमर रवैगो थारो नाम‌ रे,
मेहनतीया मारू,
अमर रवैगो थारो नाम‌ रे।।

मिनखा पण दो दिन मेलो,
दो दिन है अंजळ दाणो,
कुण जाणे कितरी सांसा,
कद जाणे किण ने जाणो,
बीते है वगत सुहाणी,
छोड़ो की याद निशाणी,
जय जय सतवादी राजा,
जय जय हरिशचंद्र दानी,
जुग जुग झुकेला कर प्रणाम रे,
जुग जुग झुकेला कर प्रणाम रे,
जियो जुग बाला,
अमर रवेगो थारो नाम रे,
जियो जुग बाला,
अमर रवेगो थारो नाम रे।।

गुंजे धरती रे चारो धाम रे,
गुंजे धरती रे चारो धाम रे,
हरिशचंद्र राजा,
अमर रवैगो थारो नाम रे,
हरिशचंद्र राजा,
अमर रवैगो थारो नाम रे,
उगते प्रभाते ढळती शाम रे,
उगते प्रभाते ढळती शाम रे,
सतवादी राजा,
घर घर पुजीजे थारो नाम रे,
सतवादी राजा,
घर घर पुजीजे थारो नाम रे।।

गायक – सुरेश वाडकर जी।
प्रेषक – रोशन कुमावत (भेरुखेड़ा)
8770943301



Saturday, 4 March 2023

G20 India 2023 New Delhi Summit

जी20 इंडिया 2023
नई दिल्ली शिखर सम्मेलन
18वां G20 राष्ट्राध्यक्षों और सरकार का शिखर सम्मेलन 9-10 सितंबर 2023 को नई दिल्ली में होगा। शिखर सम्मेलन मंत्रियों, वरिष्ठ अधिकारियों और नागरिक समाजों के बीच साल भर आयोजित सभी जी20 प्रक्रियाओं और बैठकों का समापन होगा। नई दिल्ली शिखर सम्मेलन के समापन पर एक G20 नेताओं की घोषणा को अपनाया जाएगा, जिसमें संबंधित मंत्रिस्तरीय और कार्य समूह की बैठकों के दौरान चर्चा की गई प्राथमिकताओं के प्रति नेताओं की प्रतिबद्धता और सहमति व्यक्त की जाएगी।

#g20summit
#G20IndiaNewDelhiSummit

नागरिकों के सुझाव
04 मार्च 2023
12:46 बजे


G20 लोगो भारत के राष्ट्रीय ध्वज के जीवंत रंगों - केसरिया, सफेद और हरा और नीला से प्रेरणा लेता है। यह भारत के राष्ट्रीय फूल कमल के साथ पृथ्वी ग्रह को जोड़ता है जो चुनौतियों के बीच विकास को दर्शाता है। पृथ्वी जीवन के प्रति भारत के ग्रह-समर्थक दृष्टिकोण को दर्शाती है, जो प्रकृति के साथ पूर्ण सामंजस्य में है। G20 लोगो के नीचे देवनागरी लिपि में "भारत" लिखा हुआ है।

भारत के G20 प्रेसीडेंसी का विषय - "वसुधैव कुटुम्बकम" या "एक पृथ्वी · एक परिवार · एक भविष्य" - महा उपनिषद के प्राचीन संस्कृत पाठ से लिया गया है। अनिवार्य रूप से, विषय सभी जीवन के मूल्य की पुष्टि करता है - मानव, पशु, पौधे और सूक्ष्मजीव - और ग्रह पृथ्वी पर और व्यापक ब्रह्मांड में उनकी परस्पर संबद्धता।

विषय व्यक्तिगत जीवन शैली के साथ-साथ राष्ट्रीय विकास दोनों के स्तर पर इसके संबद्ध, पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ और जिम्मेदार विकल्पों के साथ LiFE (पर्यावरण के लिए जीवन शैली) को भी उजागर करता है, जिससे विश्व स्तर पर परिवर्तनकारी कार्रवाइयां होती हैं, जिसके परिणामस्वरूप एक स्वच्छ, हरित और धुंधला भविष्य होता है।
Logo और Theme मिलकर भारत के G20 प्रेसीडेंसी का एक शक्तिशाली संदेश देते हैं, जो दुनिया में सभी के लिए न्यायसंगत और समान विकास के लिए प्रयासरत है, क्योंकि हम इस अशांत समय के माध्यम से एक स्थायी, समग्र, जिम्मेदार और समावेशी तरीके से नेविगेट करते हैं। वे आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र के साथ सद्भाव में रहने के हमारे G20 प्रेसीडेंसी के लिए एक विशिष्ट भारतीय दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करते हैं।

भारत के लिए, G20 प्रेसीडेंसी "अमृतकाल" की शुरुआत का भी प्रतीक है, 15 अगस्त 2022 को इसकी स्वतंत्रता की 75 वीं वर्षगांठ से शुरू होने वाली 25 साल की अवधि, इसकी स्वतंत्रता की शताब्दी तक, एक भविष्यवादी, समृद्ध, समावेशी और विकसित समाज, जिसके मूल में मानव-केंद्रित दृष्टिकोण है।

G20 India 2023  
New Delhi Summit

The 18th G20 Heads of State and Government Summit will take place on 9th-10th September 2023 in New Delhi. The Summit will be a culmination of all the G20 processes and meetings held throughout the year among ministers, senior officials, and civil societies. A G20 Leaders’ Declaration will be adopted at the conclusion of the New Delhi Summit, stating Leaders’ commitment towards the priorities discussed and agreed upon during the respective ministerial and working group meetings. 

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Suggestions from Citizens
04 March 2023
12:46 hrs


The G20 Logo draws inspiration from the vibrant colours of India’s national flag – saffron, white and green, and blue. It juxtaposes planet Earth with the lotus, India’s national flower that reflects growth amid challenges. The Earth reflects India’s pro-planet approach to life, one in perfect harmony with nature. Below the G20 logo is “Bharat”, written in the Devanagari script.

The theme of India’s G20 Presidency - “Vasudhaiva Kutumbakam” or “One Earth · One Family · One Future” - is drawn from the ancient Sanskrit text of the Maha Upanishad. Essentially, the theme affirms the value of all life – human, animal, plant, and microorganisms – and their interconnectedness on the planet Earth and in the wider universe.

The theme also spotlights LiFE (Lifestyle for Environment), with its associated, environmentally sustainable and responsible choices, both at the level of individual lifestyles as well as national development, leading to globally transformative actions resulting in a cleaner, greener and bluer future.

The logo and the theme together convey a powerful message of India’s G20 Presidency, which is of striving for just and equitable growth for all in the world, as we navigate through these turbulent times, in a sustainable, holistic, responsible, and inclusive manner. They represent a uniquely Indian approach to our G20 Presidency, of living in harmony with the surrounding ecosystem.

For India, the G20 Presidency also marks the beginning of “Amritkaal”, the 25-year period beginning from the 75th anniversary of its independence on 15 August 2022, leading up to the centenary of its independence, towards a futuristic, prosperous, inclusive and developed society, distinguished by a human-centric approach at its core.

Winners

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