Saturday, 27 May 2023

क्या आप जानते हैं किंग चार्ल्स की कुल संपत्ति 1.8 बिलियन पाउंड है

क्या आप जानते हैं किंग चार्ल्स की कुल संपत्ति 1.8 बिलियन पाउंड है?
ब्रिटेन का शाही परिवार किंग चार्ल्स III के 
शाही सम्पदा और अपने पूर्वजों द्वारा जमा किए गए धन की पूरी कहानी आगे है।

चार्ल्स III की संपत्ति £1.815 बिलियन दर्ज की गई

रिपोर्टों के अनुसार, किंग चार्ल्स III की संपत्ति आश्चर्यजनक रूप से बढ़कर 1.815 बिलियन पाउंड हो गई है।

इसके अलावा, महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने पिछले साल सितंबर में उनकी मृत्यु पर, उन्हें £360 मिलियन का वसीयत दी थी, जिसके बाद उनकी संपत्ति कथित तौर पर £600 मिलियन तक बढ़ गई थी।
रानी की कुल संपत्ति में बाल्मोरल कैसल और सैंड्रिंघम एस्टेट सहित गहने, कला, खेत, घोड़े, टिकटें और संपत्तियां भी शामिल थीं।

क्या क्या शामिल है? इनके पास 130,000 एकड़ भूमि में फैले 260 खेत हैं, साथ ही 345 मिलियन पाउंड मूल्य के पट्टे और संपत्तियां भी हैं।। जो हर साल £23 मिलियन की आय उत्पन्न करता है।

चार्ल्स III  शाही परिवार का एक कामकाजी सदस्य है, जो उसकी कुल संपत्ति में अच्छी आय जोड़ता है। जब चार्ल्स काम करता है तो उसकी स्थिर आय भी होती है, साथ ही वंशानुगत राज्य हर साल £10 मिलियन से अधिक! उन्हें भुगतान करते हैं।



Thursday, 25 May 2023

प्रेरक पंछी (बाज)

प्रेरक पक्षी
बाज हमेशा से ही भयंकर और क्रूर होने का आभास देते हैं, इन्हें आकाश में उड़ना और अपनी पैनी आंखों से अपना शिकार ढूंढना अच्छा लगता है। यह एक प्रेरक प्राणी है।

गरुड़ का आसमान पर आधिपत्य है और वह हमेशा से लोगों के मन में ताकत का पर्याय रहा है।

दुनिया में चील की सैकड़ों प्रजातियां हैं, तो आइए उनमें से कुछ पर एक संक्षिप्त नजर डालें।

1. सुनहरी चील
गोल्डन ईगल आमतौर पर अकेले या जोड़े में सक्रिय होते हैं, कभी-कभी सर्दियों में छोटे समूहों में, लेकिन कभी-कभी लगभग 20 के बड़े समूह देखे जा सकते हैं।

गोल्डन ईगल उड़ने और ग्लाइडिंग में अच्छे होते हैं, अक्सर एक सीधी रेखा में ग्लाइडिंग करते हैं या शिकार खोजने के लिए जमीन पर नीचे देखते हुए चक्कर लगाते हैं, दो पंखों के सूक्ष्म समायोजन के माध्यम से उड़ान की दिशा, ऊंचाई, गति और उड़ान मुद्रा को नियंत्रित करते हैं और पूँछ।

अपने लक्ष्य को खोजने के बाद, सुनहरी चील अपने पंखों को इकट्ठा करती है और बहुत तेज गति से गोता लगाती है, और आखिरी क्षण में अपने पंखों को धीमा करने के लिए फैलाती है, जबकि शिकार के सिर को मजबूती से पकड़ती है और अपने तेज पंजे को खोपड़ी में घुसा देती है, जिससे वह मर जाती है तुरंत।

यह शिकार की दर्जनों प्रजातियों का शिकार करता है, जैसे कि गीज़ और बत्तख, हिरण, लोमड़ी, ऊदबिलाव, खरगोश, और इसी तरह, और कभी-कभी कृन्तकों और अन्य छोटे जानवरों को भी खाता है।

जब यह बड़े शिकार को पकड़ता है, तो यह उन्हें जमीन पर गिरा देता है, अच्छे मांस और हृदय, यकृत, फेफड़े और अन्य आंतरिक भागों को खा जाता है, और फिर बाकी को दो हिस्सों में बांट देता है और बैचों में उन्हें वापस बसेरा स्थान पर ले आता है।

2. माउंटेन हॉक-ईगल
माउंटेन हॉक-ईगल अक्सर अकेला होता है, दो पंखों के साथ सपाट और धीमी गति से उड़ता है, कभी-कभी ऊंचाई पर मंडराता है, अक्सर घने जंगलों में मृत पेड़ों पर खड़ा होता है।

कॉल बहुत शोर है। यह मुख्य रूप से मकाक, खरगोश, तीतर, सांप, छिपकली और कृन्तकों को खिलाती है, लेकिन छोटे पक्षियों और बड़े कीड़ों और कभी-कभी मछलियों का भी शिकार करती है।
3. सींग वाला चील
सींग वाला चील दुनिया में सबसे बड़ा है, लेकिन यह लगभग अपनी तरह के अन्य लोगों के रूप में प्रसिद्ध नहीं है।

सींग वाले चील अपने शरीर के वजन से 1.5 गुना वजन वाले शिकार को उठा सकते हैं, जैसे कि बंदर, स्लॉथ (स्लॉथ), और अन्य पेड़ पर रहने वाले स्तनधारी, साथ ही मकाओ जैसे पक्षी।

उनकी दृष्टि अच्छी होती है और वे 200 गज से अधिक की दूरी पर केवल एक इंच आकार के लक्ष्य को पहचान सकते हैं।

4. बाघ के सिर वाले समुद्री चील
वे मुख्य रूप से तटीय और नदी घाटी क्षेत्रों में निवास करते हैं, और कभी-कभी समुद्र से दूर अंतर्देशीय क्षेत्रों में नदियों का अनुसरण करते हैं

कॉल गहरी और कर्कश है। उड़ान धीमी है, अक्सर ग्लाइडिंग और हवा में मँडराती है या चट्टानी तटों, पेड़ की शाखाओं, या किनारे के टीलों पर लंबे समय तक खड़ी रहती है।

सर्दियों में झुंड सक्रिय होते हैं। यह खाड़ी का सबसे बड़ा हवाई रैप्टर है। उनका मुख्य आहार मछली है लेकिन वे अन्य खाद्य पदार्थ भी खाते हैं। जापान, कोरिया, कोरिया और दक्षिण कोरिया में वितरित।

Saturday, 13 May 2023

Power of Reading

हमारे निरंतर विकासशील आधुनिक समाज में, पुस्तकें, मानव सभ्यता के एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में, लोगों के दैनिक जीवन और अध्ययन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
हालाँकि, यह निर्विवाद है कि विखंडन के इस युग में, जब हमारा मस्तिष्क क्षणभंगुर जानकारी प्राप्त करने का आदी हो गया है, पढ़ना एक कठिन कार्य लगता है। फिर भी, पढ़ने के लाभ हमारी संज्ञानात्मक क्षमताओं के लिए निर्विवाद और महत्वपूर्ण हैं।

आज के तेज गति वाले आधुनिक जीवन में, ऐसा लगता है कि पढ़ने के लिए समय का एक पूरा ब्लॉक लेना एक तेजी से शानदार चीज होती जा रही है, जो विभिन्न सूचनाओं के टुकड़ों की बमबारी के बीच है।

हालाँकि, शोध इस बात की पुष्टि करता है कि पढ़ना मस्तिष्क में सर्किट और संकेतों के जटिल नेटवर्क को उत्तेजित करता है। जैसे-जैसे हम अपने पढ़ने के कौशल में सुधार करते हैं, ये नेटवर्क मजबूत और अधिक जटिल होते जाते हैं।

एक अध्ययन में, प्रतिभागियों ने रॉबर्ट हैरिस के उपन्यास पढ़े, और जैसे ही कहानी में तनाव विकसित हुआ, मस्तिष्क के अधिक क्षेत्र सक्रिय हो गए। स्कैन ने पढ़ने के दौरान और उसके बाद के दिनों में मस्तिष्क की कनेक्टिविटी में वृद्धि दिखाई। यह हर दिन किताबें पढ़ने के महान लाभों का प्रमाण है।

पठन दो प्रकार के होते हैं, जिनमें से एक हमारे प्रदर्शन को तेजी से सुधार सकता है - टूल बुक्स। यहां तक कि अगर यह एक टूल बुक है, तो हमें इसमें शामिल सच्चे ज्ञान के बारे में सोचना और समझना चाहिए और अपने प्रदर्शन को बेहतर बनाने के लिए लचीले ढंग से उनका उपयोग करना चाहिए। दूसरी एक ऐसी किताब है जो सूक्ष्म रूप से हमारे संज्ञान और सोच में सुधार करती है।

इस तरह की किताब हमारे प्रदर्शन को जल्दी सुधारने में मदद नहीं कर सकती है, लेकिन यह हमारी समझ, सोच और व्यवहार को प्रभावित करती है। पढ़ने की प्रक्रिया में, धीरे-धीरे हमारा व्यवहार बदलता है, और अंत में, यह हमारे पूरे अस्तित्व को भी बदल सकता है।

पुस्तकें पढ़ने से हमारे ज्ञान का विस्तार होता है। वे न केवल विभिन्न विषयों और विषयों पर जानकारी प्रदान करते हैं बल्कि हमें गहन ज्ञान और अंतर्दृष्टि भी प्रदान करते हैं।

वे हमारे दिमाग और ज्ञान का विस्तार करते हैं, जिससे हम दुनिया को और अधिक पूरी तरह से समझ पाते हैं। किताबें पढ़कर हम इतिहास, संस्कृति, विज्ञान, दर्शन आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों को समझ सकते हैं और अधिक व्यापक और बुद्धिमान व्यक्ति बन सकते हैं।

किताबें ज्ञान का खजाना हैं, जो हमारी सोच को उत्तेजित करती हैं, हमारी दृष्टि को बढ़ाती हैं और हमारे मानवतावादी गुणों को विकसित करती हैं। वे न केवल सीखने के उपकरण हैं बल्कि मानवतावादी गुणवत्ता के कृषक भी हैं। पढ़ना एक व्यक्ति के ज्ञान की नींव है।

यह हमारी सोच को पोषित करता है, इसे और अधिक लचीला और नाजुक बनाता है। किताबों के इतिहास में भी बहुत ज्ञान है, जो हमारी बुद्धि को बढ़ा सकता है, समस्याओं का बेहतर विश्लेषण कर सकता है, उन्हें हल कर सकता है और हमारी समस्या सुलझाने की क्षमताओं में सुधार कर सकता है।

इसके अलावा, किताबें पढ़ना हमारी कल्पना और रचनात्मकता को उत्तेजित कर सकता है। अच्छी किताबें हमारी कल्पना को उत्तेजित कर सकती हैं, जिससे हम हर तरह के दिलचस्प और आश्चर्यजनक भूखंडों और दृश्यों की कल्पना कर सकते हैं।

Monday, 8 May 2023

नौशाद अली के संगीत की बात ही अलग थी.

पहली फ़िल्म में संगीत देने के 64 साल बाद तक अपने साज का जादू बिखेरते रहने के बावजूद नौशाद ने केवल 67 फ़िल्मों में ही संगीत दिया, लेकिन उनका कौशल इस बात की जीती जागती मिसाल है कि गुणवत्ता संख्याबल से कहीं आगे होती है. भारतीय सिनेमा को समृद्ध बनाने वाले संगीतकारों की कमी नहीं है लेकिन नौशाद अली के संगीत की बात ही अलग थी. नौशाद ने फ़िल्मों की संख्या को कभी तरजीह नहीं देते हुए केवल संगीत को ही परिष्कृत करने का काम किया.
नौशाद हिंदी सिनेमा के फैन तब से थे जब मूक फिल्में बना करती थीं. 1931 में भारतीय सिनेमा में आवाज आई उस समय नौशाद 13 साल के थे. नौशाद मुस्लिम परिवार से थे इसलिए उनके संगीत सीखने पर पाबंदी थी. नौशाद का घर लखनऊ के अकबरी गेट के कांधारी बाज़ार, झंवाई टोला में था. वे लाटूस रोड पर अपने उस्ताद उमर अंसारी से संगीत सीखने लगे, इस बात से उनके वालिद नाराज़ रहते थे. नौशाद के पिता ने उन्हें सख्त हिदायत दी कि अगर घर में रहना है तो तुम्हें संगीत छोड़ना पड़ेगा. 
मैट्रिक पास करने के बाद वे लखनऊ के 'विंडसर एंटरटेनर म्यूज़िकल ग्रुप' के साथ दिल्ली, मुरादाबाद, जयपुर, जोधपुर और सिरोही की यात्रा पर निकले. जब कुछ समय बाद वह म्यूज़िकल ग्रुप बिखर गया तो नौशाद ने लखनऊ लौटने के बजाए मुंबई का रुख़ किया और 16 वर्ष की किशोर उम्र में यानी 1935 में वे मुंबई आ गए. नौशाद के लिए मुंबई उम्मीदों का शहर था। यहां उन्हें पहला ठिकाना के रूप में दादर के ब्रॉडवे सिनेमाघर के सामने का फुटपाथ मिला. तब नौशाद ने सपना देखा था कि कभी इस सिनेमाघर में उनकी कोई फ़िल्म लगेगी. उस किशोर कल्पना को साकार होने में काफ़ी वक़्त लगा. 'बैजू बावरा' जब उसी हॉल में रिलीज़ हुई, तो वहां रिलीज़ के समय नौशाद ने कहा, इस सड़क को पार करने में मुझे सत्रह साल लग गए.
नौशाद ने अपने शुरुआती दिनों में एक पियानो वादक के रूप में भी काम किया. नौशाद संगीतकार उस्ताद झंडे खान के साथ 40 रुपये महीने की पगार पर काम किया करते थे. इसके बाद कंपोजर खेमचंद प्रकाश ने उन्हें फिल्म कंचन में असिस्टेंट के रूप में रख लिया. तब नौशाद को महीने के 60 रुपये मिलते थे. नौशाद खेमचंद को अपना गुरु मानते थे. उन्हें पहली बार 1940 में एक संगीतकार के रूप में काम करने का मौका फिल्म ‘प्रेम नगर’ में मिला लेकिन यह फिल्म रिलीज नहीं हुई. उनकी अपनी पहचान बनी 1944 में प्रदर्शित हुई 'रतन' से जिसमें जोहरा बाई अम्बाले वाली, अमीर बाई कर्नाटकी, करन दीवान और श्याम के गाए गीत बहुत लोकप्रिय हुए और यहीं से शुरू हुआ कामयाबी का ऐसा सफर जो कम लोगों के हिस्से ही आता है.
उन्होंने छोटे पर्दे के लिए 'द सोर्ड ऑफ टीपू सुल्तान' और 'अकबर द ग्रेट' जैसे धारावाहिक में भी संगीत दिया. बहरहाल नौशाद साहब को अपनी आखिरी फिल्म के सुपर फ्लाप होने का बेहद अफसोस रहा. यह फिल्म थी सौ करोड़ की लागत से बनने वाली अकबर खां की "ताजमहल" जो रिलीज होते ही औंधे मुंह गिर गई. मुगले आजम को जब रंगीन किया गया तो उन्हें बेहद खुशी हुई.
यह नौशाद के संगीत का ही जादू था कि 'मुग़ल-ए-आजम', 'बैजू बावरा', 'अनमोल घड़ी', 'शारदा', 'आन', 'संजोग' आदि कई फ़िल्मों को न केवल हिट बनाया बल्कि कालजयी भी बना दिया. 'दीदार' के गीत- 'बचपन के दिन भुला न देना...', 'हुए हम जिनके लिए बरबाद...', 'ले जा मेरी दुआएँ ले जा परदेश जाने वाले...' आदि की बदौलत इस फ़िल्म ने लंबे समय तक चलने का रिकॉर्ड क़ायम किया. इसके बाद तो नौशाद की लोकप्रियता में ख़ासा इजाफा हुआ. 'बैजू बावरा' की सफलता से नौशाद को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का पहला फ़िल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला. संगीत में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए 1982 में दादा साहेब फालके अवॉर्ड, 1984 में लता अलंकरण तथा 1992 में पद्म भूषण से उन्हें नवाजा गया.

नौशाद को सुरैया, अमीरबाई कर्नाटकी, निर्मलादेवी, उमा देवी आदि को प्रोत्साहित कर आगे लाने का श्रेय जाता है. 13 वर्षीय सुरैया को पहली बार उन्होंने 'नई दुनिया' में गाने का मौका दिया. इसके बाद 'शारदा' व 'संजोग' में भी गाने गवाए. सुरैया के अलावा अभिनेता गोविंदा की माताजी निर्मलादेवी से सबसे पहले 'शारदा' में तथा उमा देवी यानी टुनटुन की आवाज का इस्तेमाल 'दर्द' में 'अफ़साना लिख रही हूँ...' के लिए नौशाद ने किया. नौशाद ने ही मुकेश की दर्दभरी आवाज का इस्तेमाल 'अनोखी अदा' और 'अंदाज' में किया. 'अंदाज' में नौशाद ने दिलीप कुमार के लिए मुकेश और राज कपूर के लिए मो. रफी की आवाज का उपयोग किया. 1944 में युवा प्रेम पर आधारित 'रतन' के गाने उस समय के दौर में सुपरहिट हुए थे.
नौशाद और सहगल का एक वाकया - 'शाहजहाँ' में हीरो कुंदनलाल सहगल से नौशाद ने गीत गवाए. उस समय ऐसा माना जाता था कि सहगल बगैर शराब पिए गाने नहीं गा सकते. नौशाद ने सहगल से बगैर शराब पिए एक गाना गाने के लिए कहा तो सहगल ने कहा, 'बगैर पिए मैं सही नहीं गा पाऊँगा.' इसके बाद नौशाद ने सहगल से एक गाना शराब पिए हुए गवाया और उसी गाने को बाद में बगैर शराब पिए गवाया. जब सहगल ने अपने गाए दोनों गाने सुने तब नौशाद से बोले, 'काश! मुझसे तुम पहले मिले होते?' यह गीत कौन-सा था, इसका तो पता नहीं चला लेकिन 'शाहजहाँ' के गीत 'जब दिल ही टूट गया, हम जी के क्या करेंगे...' तथा 'गम दिए मुस्तकिल, कितना नाज़ुक है दिल... कालजयी सिद्ध हुवे.
तुम महान गायक बनोगे' - 'पहले आप' के निर्देशक अब्दुल रशीद कारदार के पास एक बार सिफारिशी पत्र लेकर एक लड़का पहुँचा. तब उन्होंने नौशाद से कहा कि भाई, इस लड़के के लिए कोई गुंजाइश निकल सकती है क्या? नौशाद ने सहज भाव से कहा, 'फिलहाल तो कोई गुंजाइश नहीं है. हाँ, अलबत्ता इतना ज़रूर है कि मैं इनको कोई समूह (कोरस) में गवा सकता हूँ', लड़के ने हाँ कर दी. गीत के बोल थे - 'हिन्दू हैं हम हिन्दुस्तां हमारा, हिन्दू-मुस्लिम की आँखों का तारा...'. इसमें सभी गायकों को लोहे के जूते पहनाए गए, क्योंकि गाते समय पैर पटक-पटककर गाना था ताकि जूतों की आवाज का इफेक्ट आ सके. उस लड़के के जूते टाइट थे. गाने की समाप्ति पर लड़के ने जूते उतारे तो उसके पैरों में छाले पड़ गए थे. यह सब देख रहे नौशाद ने उस लड़के के कंधे पर हाथ रखकर कहा, 'जब जूते टाइट थे तो तुम्हें बता देना था.' इस पर उस लड़के ने कहा, 'आपने मुझे काम दिया, यही मेरे लिए बड़ी बात है.' तब नौशाद ने कहा था, 'एक दिन तुम महान गायक बनोगे.' यह लड़का आगे चलकर मोहम्मद रफ़ी के नाम से जाना गया.
अंदाज, आन, मदर इंडिया, अनमोल घड़ी, बैजू बावरा, अमर, स्टेशन मास्टर, शारदा, कोहिनूर, उड़न खटोला, दीवाना, दिल्लगी, दर्द, दास्तान, शबाब, बाबुल, मुग़ल-ए-आज़म, दुलारी, शाहजहां, लीडर, संघर्ष, मेरे महबूब, साज और आवाज, दिल दिया दर्द लिया, राम और श्याम, गंगा जमुना, आदमी, गंवार, साथी, तांगेवाला, पालकी, आईना, धर्म कांटा, पाक़ीज़ा (गुलाम मोहम्मद के साथ संयुक्त रूप से), सन ऑफ इंडिया, लव एंड गाड सहित अन्य कई फिल्मों में उन्होंने अपने संगीत से लोगों को झूमने पर मजबूर किया.

मारफ्तुन नगमात जैसी संगीत की अप्रतिम पुस्तक के लेखक ठाकुर नवाब अली खां और नवाब संझू साहब से प्रभावित रहे नौशाद ने मुंबई में मिली बेपनाह कामयाबियों के बावजूद लखनऊ से अपना रिश्ता कायम रखा. मुम्बई में भी नौशाद साहब ने एक छोटा सा लखनऊ बसा रखा था, जिसमें उनके हम प्याला हम निवाला थे - मशहूर पटकथा और संवाद लेखक वजाहत मिर्जा चंगेजी, अली रजा और आगा जानी कश्मीरी (बेदिल लखनवी), मशहूर फिल्म निर्माता सुलतान अहमद और मुगले आजम में संगतराश की भूमिका निभाने वाले हसन अली 'कुमार'.

यह बात कम लोगों को ही मालूम है कि नौशाद साहब शायर भी थे और उनका दीवान 'आठवां सुर' नाम से प्रकाशित हुआ. 
नौशाद की दिलचस्प संगीत शैली -.नौशाद ने फिल्मी गीतों के लिए शास्त्रीय संगीत के साथ कुछ इस तरह का ताना-बाना बुना कि यह नया स्टाइल हर किसी को बहुत पसंद आया. “बैजू बावरा” जैसी कुछ ऐसी फिल्मों रही, जिनके लिए उन्होंने शास्त्रीय संगीत की सभी राग-विधाओं को संगीतबद्ध किया. “बैजू बावरा” के लिए उन्होंने जाने-माने गायक आमिर खान को इस फिल्म के संगीत सलाहकार के रूप में नियुक्त किया. नौशाद शहनाई से लेकर मेंडोलिन और अन्य पश्चिमी वाद्य यंत्रों की भी अच्छी समझ रखते थे. वे अपनी रचनाओं में पश्चिमी संगीत के मुहावरों को शामिल करते थे. यहां तक कि उन्हें पश्चिमी शैली के आर्केस्ट्रा की रचना तक करना आता था. उनके संगीत में एक नयापन था, जो उस समय के बाकी संगीतकारों के संगीत में देखने को नहीं मिलता था.

1940 दशक की शुरुआत में, आधी रात को शांत पार्कों और उद्यानों में रिकॉर्डिंग की जाती थी, क्योंकि उन दिनों स्टूडियो साउंडप्रूफ रिकॉर्डिंग रूम जैसे नहीं होते थे. बगीचों में, टिन की छतों वाले स्टूडियो में गूंजती आवाज़ जैसी कोई प्रतिध्वनि और गड़बड़ी नहीं होती थी.

कुछ फिल्में जैसे कि “उड़न खटोला” और “अमर” के लिए, उन्होंने एक विशेष प्रकार से कलाकार की आवाज को रिकॉर्ड किया. इसके लिए उन्होंने पहले कलाकार की आवाज को 90 के पैमाने पर रिकॉर्ड किया, फिर इसे 70 पर, फिर 50 पर और इसी तरह आगे रिकॉर्डिंग जारी रखीं. पूरी रिकॉर्डिंग के बाद, जब इसके गीतों को सुना गया, तो जो प्रभाव हुआ वह बहुत जबरदस्त था.

नौशाद पहले व्यक्ति थे जिन्होंने साउंड मिक्सिंग को फिल्मों में जगह दिलवाई साथ ही उन्होंने आवाज को पहले अलग से रिकॉर्ड किया और बाद में म्यूजिक ट्रैक के साथ रिकॉर्डिंग करवाई ऐसे करवाने का प्रभाव काफी अलग और बेहतरीन साबित हुआ.

साथ ही नौशाद बांसुरी और शहनाई, तथा सितार और मैंडोलिन को संयोजित करने वाले भी पहले व्यक्ति थे.
उन्होंने अकॉर्डियन को हिंदी फिल्मों के संगीत में जगह दिलवाई.

फिल्म की कहानी के पात्र के मूड और संवाद के अनुसार बैकग्राउंड संगीत पर भी ध्यान केंद्रित हो सके, ऐसे संगीत की रचना की.
नौशाद के सबसे बड़े योगदान में भारतीय शास्त्रीय संगीत को फिल्मों में लाना माना जाता है. उनकी रचनाएं रागों से भी प्रेरित थीं, इसे लोगों के बीच लोकप्रिय बनाने के लिए, इन्होंने अपने संगीत के लिए कुछ प्रतिष्ठित शास्त्रीय कलाकारों को जैसे आमिर खान और डी. वी. पलुस्कर को “बैजू बावरा” और बड़े गुलाम अली खान को “मुग़ल-ए-आज़म” (1960) के लिए चुनाव किया.

“बैजू बावरा” (1952), ने नौशाद की शास्त्रीय संगीत की समझ और उनकी क्षमता का प्रदर्शन सभी के सामने प्रदर्शित किया, जिसके लिए उन्होंने 1954 में पहला फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक का पुरस्कार जीता. नौशाद ने “बैजू बावरा” के बारे में रिलीज से पहले मीडिया के साथ बैठक में एक टिप्पणी की, कि “जब लोगों ने सुना कि फिल्म शास्त्रीय संगीत और रागों से भरी होगी, तो उन्होंने विरोध किया, ‘लोगों को सिरदर्द होगा’ और ‘वे भाग जाएंगे.’ परंतु मैं अपने निश्चय पर अडिग था. मैं लोगों का शास्त्रीय संगीत के प्रति रवैया और सोच बदलना चाहता था, कुछ ऐसा फिल्मों में लाना चाहता था जो लोगों को पसंद भी आए और हमारी संस्कृति के संगीत के साथ जुड़ा हुआ भी हो, इसीलिए हमने उन्हें अपनी संस्कृति के संगीत के साथ इसे प्रस्तुत किया और लोगों ने इस काम को पसंद भी किया.”

फिल्म आन (1952) के लिए वह पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने 100 ऑर्केस्ट्रा का इस्तेमाल किया. वह भारत में, पश्चिमी अंकन की प्रणाली को विकसित करने वाले पहले संगीतकार थे. फिल्म “आन” के संगीत का अंकन लंदन में एक पुस्तक के रूप में भी प्रकाशित किया गया.

फिल्म “उड़न खटोला” (1955) में, उन्होंने ऑर्केस्ट्रा के उपयोग के बिना ही एक पूरे गाने को रिकॉर्ड किया, उन्होंने संगीत वाद्य यंत्रों की जगह गुनगुनाने की ध्वनि को इस्तेमाल किया.

फिल्म “मुग़ल-ए-आज़म” (1960) का गीत “ऐ मोहब्बत जिंदाबाद...”, के लिए उन्होंने 100 व्यक्तियों की कोरस में इस्तेमाल किया. फिल्म केेे एक अन्य गीत “प्यार किया तो डरना क्या...” के लिए उन्होंने लता मंगेशकर को बाथरूूम में बंद किया और गीत के एक हिस्से को प्रस्तुत करने के लिए कहा, सब कुछ उन्होंने गूंज के प्रभाव को प्राप्त करने के लिए किया था.
फिल्म “गंगा जमुना” (1961) में उन्होंने पूरी तरह से भोजपुरी बोली में गीत का इस्तेमाल किया.

इसी प्रकार कुछ अलग करने की चाह में उन्होंने फिल्म “मेरे महबूब” (1963), के शीर्षक गीत में सिर्फ छह उपकरणों का इस्तेमाल किया.

2004 में, क्लासिक मुग़ल-ए-आज़म (1960) का एक रंगीन संस्करण जारी किया गया, जिसके लिए आज के संगीतकारों द्वारा, नौशाद के लिए एक बार फिर से एक ऑर्केस्ट्रा संगीत का इंतजाम किया गया, जो मूल रूप से डॉल्बी डिजिटल में था, जबकि मूल साउंडट्रैक से सभी एकल संगीत को बनाए रखा गया.

नौशाद ने 86 वर्ष की आयु में एक शाश्वत लव स्टोरी ताजमहल की धुनों की रचना की यह फिल्म 2005 में बनी थी.

निधन - सन 1940 से 2006 तक उन्होंने अपना संगीत का सफर जारी रखा. उन्होंने अंतिम बार 2006 में बनी 'ताजमहल - एक शाश्वत लव स्टोरी' के लिए संगीत दिया. अपने अंतिम दिनों तक वे कहते थे, 'मुझे आज भी ऐसा लगता है कि अभी तक न मेरी संगीत की तालीम पूरी हुई है और न ही मैं अच्छा संगीत दे सका.' और इसी मलाल के साथ वे 05 मई, 2006 को इस दुनिया से रुखसत हो गए.

नौशाद साहब को लखनऊ से बेहद लगाव था और इससे उनकी खुद की इन पंक्तियों से समझा जा सकता है -
रंग नया है लेकिन घर ये पुराना है
ये कूचा मेरा जाना पहचाना है
क्या जाने क्यूं उड़ गए पंक्षी पेड़ों से
भरी बहारों में गुलशन वीराना है.

5 May 2023
उनकी पुण्यतिथि भावभीनी श्रद्धांजलि🙏🏻💐

बुद्ध का जन्मदिन

बुद्ध पूर्णिमा एक बौद्ध त्योहार है। बुद्ध का जन्मदिन या "'बुद्ध दिवस'' (बुद्ध जयंती) से भी जाना जाता है। यह विशेष दिवस उनके ज्ञानोदय दिन के रूप में मनाया जाता है। जो पूर्वी एशिया और दक्षिण एशिया के अधिकांश हिस्सों में मनाया जाता है। राजकुमार सिद्धार्थ गौतम, बाद में गौतम बुद्ध, जो बौद्ध धर्म के संस्थापक थे। बौद्ध परंपरा के अनुसार, गौतम बुद्ध का जन्म 563-483 ईसा पूर्व लुंबिनी (नेपाल) में है हुआ था।  
आज 5 मई2023 को भगवान बुद्ध की 2585वीं जयंती मनाया जा रहा है। गौतम बुद्ध के अनुयायी बुद्ध पूर्णिमा को दुनिया भर में बड़े उत्साह और जोश के साथ मनाते हैं। बुद्ध पूर्णिमा वैशाख के महीने में पूर्णिमा के दिन आती है। साल 2023 में यह 5 मई 2023 को मनाया जा रहा है।

Saturday, 6 May 2023

Sofia the First The curse of Princess Ivy

Sofia the First The curse of Princess Ivy
PRINCESS AMBER: Ahhh. I can't wait to get a princess to appear for me. Now which princess do I want?
Watch Sofia the First The curse of Princess Ivy video feature Princesses Sofia and Amber, Princess Ivy, King Roland II, Queen Miranda, Prince James, Baileywick, Clover the rabbit Ariel, Cinderella, Belle... No! Rapunzel. Definitely Rapunzel.
Amulet, please, pretty-pretty please, bring me princess Rapunzel! Whoa. PRINCESS IVY: Where am I? PRINCESS AMBER: Wait. You're not Rapunzel. PRINCESS IVY: What is this place? PRINCESS AMBER: You're in Enchancia.
You're in Enchancia PRINCESS IVY: I am? PRINCESS AMBER: Who are you? PRINCESS IVY: I am Princess Ivy, perhaps you've heard of me.
I am Princess Ivy, perhaps you've heard of me PRINCESS AMBER: No. PRINCESS IVY: Good. And who are you, my sweet little awestruck darling?
PRINCESS AMBER: Princess Amber. Oh, I love your gown. It's so beautiful.
PRINCESS IVY: Not as beautiful as your gown. And your tiara and your hair. It's like a plume of golden stardust. 
PRINCESS AMBER: Oh! You're even better than Rapunzel.
You're even better than Rapunzel
PRINCESS IVY: No, you are. And I can't wait to learn absolutely everything about you and your blindingly colorful kingdom.
PRINCESS AMBER: Would you like a tour of the castle? 
PRINCESS IVY: I thought you'd never ask. 
PRINCESS AMBER: Just let me change into something more fashionable.

PRINCESS IVY: Of course, princess Amber. I can already tell that we are going to be best friends. 
PRINCESS AMBER: I was just thinking the same thing. 
KING ROLAND II: Happy anniversary, honey!
KING ROLAND II: Happy anniversary, honey 
QUEEN MIRANDA: Oh, Rollie! This is lovely.
KING ROLAND II: I did it all by myself. Well, I carried it up here all by myself. And we have all morning to enjoy it in peace, because I haven't told anyone where we are.
QUEEN MIRANDA: Not even Baileywick? KING ROLAND II: Not even Baileywick. 
QUEEN MIRANDA: We better eat quickly then before he sends the royal guard to find us. 
KING ROLAND II: Scone? 
CLOVER: Good morning, princess. Rise and shine. It's breakfast time! Hey! Wake up, Sofe. Come on, Sofe. What, you can't hear me? Your amulet is missing! Your amulet is missing You can't hear me! Sofia. 
SOFIA: Clover, what are you doing? What is it? I can't understand you. My amulet! But I didn't take it off! Ohh! Amber. I should have known. 

PRINCE JAMES: Come back! 
SOFIA: James, have you seen Amber?

PRINCE JAMES: Nope, but check out these butterflies. Everything they land on turns black and white. 

SOFIA: Where'd they come from? 

PRINCE JAMES: I don't know, but will you help me catch one? I want to get a closer look. SOFIA: I will, but first I need to find Amber.

SOFIA: I will, but first I need to find Amber 

BAILEYWICK: Oh! 
SOFIA: Sorry, Baileywick. BAILEYWICK: What are butterflies doing in the castle? How did they do that? 

PRINCE JAMES: Can you help me catch one of these butterflies?

Can you help me catch one of these butterflies 

BAILEYWICK: We have to catch all of them before they ruin the ball decorations! 

SOFIA: Amber!

PRINCESS AMBER: Uh-oh. SOFIA: You did take my amulet. 

PRINCESS AMBER: I just wanted a turn, Sofia. It's only fair. And look, it gave me a princess, too. SOFIA: It what? 

PRINCESS AMBER: Sofia, this is Princess Ivy. Ivy, this is my sister, Sofia.

PRINCESS IVY: Well, aren't you just a burst of lavender radiance. You two may be the most perfect pair of princesses I've ever met.
You two may be the most perfect pair of princesses I've ever met Please join us, princess Sofia. I am certain we will all be best friends. 

SOFIA: Amber? Are you in some kind of trouble? 

PRINCESS AMBER: No. Unless you tell daddy on me. 

SOFIA: That's not what I mean. The amulet only summons a princess when you're in real trouble. The amulet only summons a princess when you're in real trouble 

PRINCESS AMBER: Well, I just asked it for one. And it gave me the greatest princess ever. 

SOFIA: But that's not how the amulet works. It only summons princesses when you really need help and they don't stick around so you can be best friends. The amulet sends them right back where they came from.

PRINCESS IVY: Hmm. 

PRINCESS AMBER: Well, maybe it was being extra nice to me because I never had a turn before! 

SOFIA: I just want my amulet! Okay, Amber? Now. 

PRINCESS AMBER: All right, all right. You don't have to get so upset. SOFIA: Whoa! Hey! 

PRINCESS IVY: Come to Ivy. 
SOFIA: Give that back! 

PRINCESS IVY: I don't think so.

PRINCESS AMBER: Ivy, what are you doing? 

PRINCESS IVY: This amulet brought me here. So I need to make sure it never sends me back. 

PRINCESS AMBER: I don't understand. Back where? 

PRINCESS IVY: A dreadful little island where I was tragically imprisoned for ten terrible years.

Sunday, 30 April 2023

100वा मन की बात,

मन की बात, अप्रैल 2023
मेरे प्यारे देशवासियो, नमस्कार | आज ‘मन की बात’ का सौवां एपिसोड है | मुझे आप सबकी हजारों चिट्ठियाँ मिली हैं, लाखों सन्देश मिले हैं और मैंने कोशिश की है कि ज्यादा से ज्यादा चिट्ठियों को पढ़ पाऊँ, देख पाऊँ, संदेशों को जरा समझने की कोशिश करूँ | आपके पत्र पढ़ते हुए कई बार मैं भावुक हुआ, भावनाओं से भर गया, भावनाओं में बह गया और खुद को फिर सम्भाल भी लिया | आपने मुझे ‘मन की बात’ के सौवें एपिसोड पर बधाई दी है लेकिन मैं सच्चे दिल से कहता हूँ, दरअसल बधाई के पात्र तो आप सभी ‘मन की बात’ के श्रोता हैं, हमारे देशवासी हैं | ‘मन की बात’, कोटि-कोटि भारतीयों के ‘मन की बात’ है, उनकी भावनाओं का प्रकटीकरण है |
साथियो, 3 अक्टूबर, 2014, विजय दशमी का वो पर्व था और हम सबने मिलकर विजय दशमी के दिन ‘मन की बात’ की यात्रा शुरू की थी | विजय दशमी यानी बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व | ‘मन की बात’ भी देशवासियों की अच्छाइयों का, सकारात्मकता का, एक अनोखा पर्व बन गया है | एक ऐसा पर्व जो हर महीने आता है, जिसका इंतजार हम सभी को होता है | हम इसमें positivity को celebrate करते हैं | हम इसमें people’s participation को भी celebrate करते हैं | कई बार यकीन नहीं होता कि ‘मन की बात’ को इतने महीने और इतने साल गुजर गए | हर एपिसोड अपने आप में खास रहा | हर बार, नए उदाहरणों की नवीनता, हर बार देशवासियों की नई सफलताओं का विस्तार | ‘मन की बात’ में पूरे देश के कोने-कोने से लोग जुड़े, हर आयु-वर्ग के लोग जुड़े | बेटी-बचाओ बेटी-पढ़ाओ की बात हो, स्वच्छ भारत आन्दोलन हो, खादी के प्रति प्रेम हो या प्रकृति की बात, आजादी का अमृत महोत्सव हो या फिर अमृत सरोवर की बात, ‘मन की बात’ जिस विषय से जुड़ा, वो, जन-आंदोलन बन गया, और आप लोगों ने बना दिया | जब मैंने, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ साझा ‘मन की बात’ की थी, तो इसकी चर्चा पूरे विश्व में हुई थी |
साथियो, ‘मन की बात’ मेरे लिए तो दूसरों के गुणों की पूजा करने की तरह ही रहा है | मेरे एक मार्गदर्शक थे – श्री लक्ष्मणराव जी ईनामदार | हम उनको वकील साहब कहा करते थे | वो हमेशा कहते थे कि हमें दूसरों के गुणों की पूजा करनी चाहिए | सामने कोई भी हो, आपके साथ का हो, आपका विरोधी हो, हमें उसके अच्छे गुणों को जानने का, उनसे सीखने का, प्रयास करना चाहिए | उनकी इस बात ने मुझे हमेशा प्रेरणा दी है | ‘मन की बात’ दूसरों के गुणों से सीखने का बहुत बड़ा माध्यम बन गयी है |
मेरे प्यारे देशवासियो, इस कार्यक्रम ने मुझे कभी भी आपसे दूर नहीं होने दिया | मुझे याद है, जब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था, तो वहां सामान्य जन से मिलना-जुलना स्वाभाविक रूप से हो ही जाता था | मुख्यमंत्री का कामकाज और कार्यकाल ऐसा ही होता है, मिलने जुलने के अवसर बहुत मिलते ही रहते हैं | लेकिन 2014 में दिल्ली आने के बाद मैंने पाया कि यहाँ का जीवन तो बहुत ही अलग है | काम का स्वरूप अलग, दायित्व अलग, स्थितियाँ-परिस्तिथियों के बंधन, सुरक्षा का तामझाम, समय की सीमा | शुरुआती दिनों में, कुछ अलग महसूस करता था, खाली-खाली सा महसूस करता था | पचासों साल पहले मैंने अपना घर इसलिए नहीं छोड़ा था कि एक दिन अपने ही देश के लोगों से संपर्क ही मुश्किल हो जायेगा | जो देशवासी मेरा सब कुछ है, मैं उनसे ही कट करके जी नहीं सकता था | ‘मन की बात’ ने मुझे इस चुनौती का समाधान दिया, सामान्य मानवी से जुड़ने का रास्ता दिया | पदभार और प्रोटोकॉल, व्यवस्था तक ही सीमित रहा और जनभाव, कोटि-कोटि जनों के साथ, मेरे भाव, विश्व का अटूट अंग बन गया | हर महीने में देश के लोगों के हजारों संदेशों को पढता हूँ, हर महीने में देशवासियों के एक से एक अद्भुत स्वरूप के दर्शन करता हूँ | मैं देशवासियों के तप-त्याग की पराकाष्ठा को देखता हूँ, महसूस करता हूँ | मुझे लगता ही नहीं है, कि मैं, आपसे थोडा भी दूर हूँ | मेरे लिए ‘मन की बात’ ये एक कार्यक्रम नहीं है, मेरे लिए एक आस्था, पूजा, व्रत है | जैसे लोग, ईश्वर की पूजा करने जाते हैं, तो, प्रसाद की थाल लाते हैं | मेरे लिए ‘मन की बात’ ईश्वर रूपी जनता जनार्दन के चरणों में प्रसाद की थाल की तरह है | ‘मन की बात’ मेरे मन की आध्यात्मिक यात्रा बन गया है |

‘मन की बात’ स्व से समिष्टि की यात्रा है |
‘मन की बात’ अहम् से वयम् की यात्रा है |
यह तो मैं नहीं तू ही इसकी संस्कार साधना है |

आप कल्पना करिए, मेरा कोई देशवासी 40-40 साल से निर्जन पहाड़ी और बंजर जमीन पर पेड़ लगा रहा है, कितने ही लोग 30-30 साल से जल-संरक्षण के लिए बावड़ियां और तालाब बना रहे हैं, उसकी साफ़-सफाई कर रहे हैं | कोई 25-30 साल से निर्धन बच्चों को पढ़ा रहा है, कोई गरीबों की इलाज में मदद कर रहा है | कितनी ही बार ‘मन की बात’ में इनका जिक्र करते हुए मैं भावुक हो गया हूँ | आकाशवाणी के साथियों को कितनी ही बार इसे फिर से रिकॉर्ड करना पड़ा है | आज, पिछला कितना ही कुछ, आँखों के सामने आए जा रहा है | देशवासियों के इन प्रयासों ने मुझे लगातार खुद को खपाने की प्रेरणा दी है |

साथियो, ‘मन की बात’ में जिन लोगों का हम ज़िक्र करते हैं वे सब हमारे Heroes हैं जिन्होंने इस कार्यक्रम को जीवंत बनाया है | आज जब हम 100वें एपिसोड के पड़ाव पर पहुंचे हैं, तो मेरी ये भी इच्छा है कि हम एक बार फिर इन सारे Heroes के पास जाकर उनकी यात्रा के बारे में जानें | आज हम कुछ साथियों से बात भी करने की कोशिश करेंगे | मेरे साथ जुड़ रहे हैं हरियाणा के भाई सुनील जगलान जी | सुनील जगलान जी का मेरे मन पर इतना प्रभाव इसलिए पड़ा क्योंकि हरियाणा में Gender Ratio पर काफी चर्चा होती थी और मैंने भी ‘बेटी बचाओ-बेटी पढाओ’ का अभियान हरियाणा से ही शुरू किया था | और इसी बीच जब सुनील जी के ‘Selfie With Daughter’ Campaign पर मेरी नजर पडी, तो मुझे बहुत अच्छा लगा | मैंने भी उनसे सीखा और इसे ‘मन की बात’ में शामिल किया | देखते ही देखते ‘Selfie With Daughter’ एक Global Campaign में बदल गया | और इसमें मुद्दा Selfie नहीं थी, technology नहीं थी, इसमें Daughter को, बेटी को प्रमुखता दी गयी थी | जीवन में बेटी का स्थान कितना बड़ा होता है, इस अभियान से यह भी प्रकट हुआ | ऐसे ही अनेकों प्रयासों का परिणाम है कि आज हरियाणा में Gender Ratio में सुधार आया है | आईये आज सुनील जी से ही कुछ गप मार लेते हैं |

प्रधानमंत्री जी- नमस्कार सुनील जी,

सुनील- नमस्कार सर, मेरी खुशी बहुत बढ़ गई है सर आपकी आवाज़ सुन कर |

प्रधानमंत्री जी- सुनील जी ‘Selfie with Daughter’ हर किसी को याद है...अब जब इसकी फिर चर्चा हो रही है तो आपको कैसा लग रहा है |

सुनील - प्रधानमंत्री जी, ये असल में आपने जो हमारे प्रदेश हरियाणा से पानीपत की चौथी लड़ाई बेटियों के चेहरे पर मुस्कुराहट लाने के लिए शुरू की थी जिसे आपके नेतृत्व में पूरे देश ने जितने की कोशिश की है तो वाकई ये मेरे लिए और हर बेटी के पिता और बेटियों को चाहने वालों के लिए बहुत बड़ी बात है |

प्रधानमंत्री जी- सुनील जी अब आपकी बिटिया कैसी है, आज कल क्या कर रही है ?

सुनील- जी मेरी बेटियां नंदनी और याचिका है एक 7th Class में पढ़ रही है एक 4th Class में पढ़ रही है और आपकी बड़ी प्रशंसक है उन्होंने आपके लिए थैंक्यू प्राइम मिनिस्टर करके अपनी क्लासमेट्स जो हैं लैटर भी लिखवाए थे असल में |

प्रधानमंत्री जी- वाह वाह ! अच्छा बिटिया को आप मेरा और मन की बात के श्रोताओं का खूब सारा आशीर्वाद दीजिये |

सुनील- बहुत- बहुत शुक्रिया जी, आपकी वजह से देश की बेटियों के चेहरे पर लगातार मुस्कान बढ़ रही है |

प्रधानमंत्री जी- बहुत- बहुत धन्यवाद सुनील जी |

सुनील – जी शुक्रिया |

साथियो, मुझे इस बात का बहुत संतोष है कि ‘मन की बात’ में हमने देश की नारी शक्ति की सैकड़ों प्रेरणादायी गाथाओं का जिक्र किया है | चाहे हमारी सेना हो या फिर खेल जगत हो, मैंने जब भी महिलाओं की उपलब्धियों पर बात की है, उसकी खूब प्रशंसा हुई है | जैसे हमने छत्तीसगढ़ के देउर गाँव की महिलाओं की चर्चा की थी | ये महिलाएं स्वयं सहायता समूहों के जरिए गाँव के चौराहों, सड़कों और मंदिरों के सफाई के लिए अभियान चलाती हैं | ऐसे ही, तमिलनाडु की वो आदिवासी महिलाएं, जिन्होंने हज़ारों Eco-Friendly Terracotta Cups (टेराकोटा कप्स) निर्यात किए, उनसे भी देश ने खूब प्रेरणा ली | तमिलनाडु में ही 20 हजार महिलाओं ने साथ आकर वेल्लोर में नाग नदी को पुनर्जीवित किया था | ऐसे कितने ही अभियानों को हमारी नारी-शक्ति ने नेतृत्व दिया है और ‘मन की बात’ उनके प्रयासों को सामने लाने का मंच बना है |

साथियो, अब हमारे साथ Phone line पर एक और सज्जन मौजूद हैं | इनका नाम है, मंजूर अहमद | ‘मन की बात’ में, जम्मू-कश्मीर की Pencil Slates (पेन्सिल स्लेट्स) के बारे में बताते हुए मंजूर अहमद जी का जिक्र हुआ था |

प्रधानमंत्री जी- मंजूर जी, कैसे हैं आप ?

मंजूर जी- थैंक्यू सर...बड़े अच्छे से हैं सर |

प्रधानमंत्री जी- मन की बात के इस 100 वें एपिसोड में आपसे बात करके मुझे बहुत अच्छा लग रहा है |

मंजूर जी – थैंक्यू सर |

प्रधानमंत्री जी- अच्छा ये पेंसिल- स्लेट्स वाला काम कैसा चल रहा है?

मंजूर जी- बहुत अच्छे से चल रहा है सर बहुत अच्छे से, जब से सर आपने हमारी बात, ‘मन की बात’ में कही सर तब से बहुत काम बढ़ गया सर और दूसरों को भी रोज़गार यहाँ बहुत बढ़ा है इस काम में |

प्रधानमंत्री जी- कितने लोगों को अब रोज़गार मिलता होगा ?
मंजूर जी- अभी मेरे पास 200 प्लस है...

प्रधानमंत्री जी- अरे वाह! मुझे बहुत खुशी हुई |

मंजूर जी – जी सर..जी सर...अभी एक दो महीनें में इसको expand कर रहा हूँ और 200 लोगों को रोज़गार बढ़ जाएगा सर|

प्रधानमंत्री जी- वाह वाह! देखिये मंजूर जी...

मंजूर जी- जी सर...

प्रधानमंत्री जी- मुझे बराबर याद है और उस दिन आपने मुझे कहा था कि ये एक ऐसा काम है जिसकी न कोई पहचान है, न स्वयं की पहचान है, और आपको बड़ी पीड़ा भी थी और इस वजह से आपको बड़ी मुश्किलें होती थी वो भी आप कह रहे थे, लेकिन अब तो पहचान भी बन गई और 200 से ज़्यादा लोगों को रोज़गार दे रहे हैं|

मंजूर जी- जी सर... जी सर.

प्रधानमंत्री जी- और नए expansion करके और 200 लोगों को रोज़गार दे रहे हैं, ये तो बहुत खुशी की खबर दी आपने |

मंजूर जी- Even सर, यहाँ पर जो farmer हैं सर उनका भी बहुत बड़ा इसमें फायदा मिला सर तब से | 2000 का tree बेचते थे अभी वही tree 5000 तक पहुँच गया सर | इतनी demand बढ़ गई है इसमें तब से..और इसमें अपनी पहचान भी बन गई है इसमें बहुत से order हैं अपने पास सर, अभी मै आगे एक-दो महीनें में और expand करके और दो-ढाई, सौ दो-चार गांव में जितने भी लड़के-लड़कियां हैं इसमें adjust हो सकते हैं उनका भी रोज़ी-रोटी चल सकता है सर |

प्रधानमंत्री जी- देखिये मंजूर जी, Vocal for Local की ताकत कितनी जबरदस्त है आपने धरती पर उतार कर दिखा दिया है|

मंजूर जी- जी सर|

प्रधानमंत्री जी- मेरी तरफ से आपको और गांव के सभी किसानों को और आपके साथ काम कर रहे सभी साथियों को भी मेरी तरफ से बहुत-बहुत शुभकामनाएं, धन्यवाद भैया |

मंजूर जी- धन्यवाद सर |

साथियो, हमारे देश में ऐसे कितने ही प्रतिभाशाली लोग हैं, जो अपनी मेहनत के बलबूते ही सफलता के शिखर तक पहुंचे हैं | मुझे याद है, विशाखापट्नम के वेंकट मुरली प्रसाद जी ने एक आत्मनिर्भर भारत Chart Share किया था | उन्होंने बताया था कि वो कैसे ज्यादा से ज्यादा भारतीय products ही इस्तेमाल करेंगे | जब बेतिया के प्रमोद जी ने LED बल्ब बनाने की छोटी यूनिट लगाई या गढ़मुक्तेश्वर के संतोष जी ने mats बनाने का काम किया, ‘मन की बात’ ही उनके उत्पादों को सबके सामने लाने का माध्यम बना | हमने Make in India के अनेक उदाहरणों से लेकर Space Start-ups तक की चर्चा ‘मन की बात’ में की है |

साथियो, आपको याद होगा, कुछ एपिसोड पहले मैंने मणिपुर की बहन विजयशांति देवी जी का भी जिक्र किया था | विजयशांति जी कमल के रेशों से कपड़े बनाती हैं | ‘मन की बात’ में उनके इस अनोखे eco-friendly idea की बात हुई तो उनका काम और popular हो गया | आज विजयशांति जी फ़ोन पर हमारे साथ हैं |

प्रधानमंत्री जी :- नमस्ते विजयशांति जी ! How are you?

विजयशांति जी:- Sir, I am fine.

प्रधानमंत्री जी :- and how’s your work going on ?

विजयशांति जी:- sir, still working along with my 30 women

प्रधानमंत्री जी :- in such a short period you have reached 30 persons team !

विजयशांति जी:- Yes sir, this year also more expand with 100 women in my area

प्रधानमंत्री जी :- so your target is 100 women

विजयशांति जी:- yaa ! 100 women

प्रधानमंत्री जी :- and now people are familiar with this lotus stem fiber

विजयशांति जी :- yes sir, everyone’s know from ‘Mann Ki Baat’ Programme all over India.

प्रधानमंत्री जी :- so now it’s very popular

विजयशांति जी:- yes sir, from Prime Minister ‘Mann ki Baat’ programme everyone knows about lotus fibre

प्रधानमंत्री जी :- so now you got the market also ?

विजयशांति जी:- yes, I have got a market from USA also they want to buy in bulk, in lots quantities, but I want to give from this year to send the U.S also

प्रधानमंत्री जी :- So, now you are exporter ?

विजयशांति जी:- yes sir, from this year I export our product made in India Lotus fibre

प्रधानमंत्री जी :- so, when I say Vocal for Local and now Local for Global

विजयशांति जी:- yes sir, I want to reach my product all over the globe of all world

प्रधानमंत्री जी :- so congratulation and wish you best luck

विजयशांति जी:- Thank you sir

प्रधानमंत्री जी :- Thank you, Thank you Vijaya Shanti

विजयशांति जी:- Thank You sir

साथियो, ‘मन की बात’ के एक और विशेषता रही है | ‘मन की बात’ के जरिए कितने ही जन-आन्दोलन ने जन्म भी लिया है और गति भी पकड़ी है | जैसे हमारे खिलौने, हमारी Toy Industry को फिर से स्थापित करने का mission ‘मन की बात’ से ही तो शुरू हुआ था | भारतीय नस्ल के श्वान हमारे देशी डॉग्स उसको लेकर जागरूकता बढ़ाने की शुरुआत भी तो ‘मन की बात’ से ही की थी | हमने एक और मुहिम शुरू की थी कि हम ग़रीब छोटे दुकानदारों से मोलभाव नहीं करेंगे, झगड़ा नहीं करेंगे | जब ‘हर घर तिरंगा’ मुहिम शुरू हुई, तब भी ‘मन की बात’ ने देशवासियों को इस संकल्प से जोड़ने में खूब भूमिका निभाई | ऐसे हर उदाहरण, समाज में बदलाव का कारण बने हैं | समाज को प्रेरित करने का ऐसे ही बीड़ा प्रदीप सांगवान जी ने भी उठा रखा है | ‘मन की बात’ में हमने प्रदीप सांगवान जी के ‘हीलिंग हिमालयाज़’ अभियान की चर्चा की थी | वो फ़ोनलाइन पर हमारे साथ हैं |

मोदी जी – प्रदीप जी नमस्कार !

प्रदीप जी – सर जय हिन्द |

मोदी जी – जय हिन्द, जय हिन्द, भईया ! कैसे हैं आप ?

प्रदीप जी – सर बहुत बढ़िया | आपकी आवाज सुनकर और भी अच्छा|

मोदी जी – आपने हिमालय को Heal करने की सोची |

प्रदीप जी – हाँ जी सर |

मोदी जी – अभियान भी चलाया | आज कल आपका Campaign कैसा चल रहा है ?

प्रदीप जी – सर बहुत अच्छा चल रहा है | 2020 से ऐसा मानिये कि जितना काम हम पांच साल में करते थे अब वो एक साल में हो जाता है |

मोदी जी – अरे वाह !

प्रदीप जी – हाँ जी, हाँ जी, सर | शुरुआत बहुत nervous हुई थी बहुत डर था इस बात को लेके कि जिंदगी भर ये कर पाएँगे कि नहीं कर पाएँगे पर थोड़ा support मिला और 2020 तक हम बहुत struggle भी कर रहे थे honestly | लोग बहुत कम जुड़ रहे थे बहुत सारे ऐसे लोग थे जो कि support नहीं कर पा रहे थे | हमारी मुहिम को इतना तवज्जो भी नहीं दे रहे थे | But 2020 के बाद जब ‘मन की बात’ में जिक्र हुआ उसके बाद बहुत सारी चीज़े बदल गई | मतलब पहले हम, साल में 6-7 cleaning drive कर पाते थे, 10 cleaning drive कर पाते थे | आज की date में हम daily bases पे पाँच टन कचरा इक्कठा करते हैं | अलग-अलग location से |

मोदी जी – अरे वाह !

प्रदीप जी – ‘मन की बात’ में जिक्र होने के बाद आप सर believe करें मेरी बात को कि मैं almost give-up करने की stage पर था एक टाइम पे और उसके बाद फिर बहुत सारा बदलाव आया मेरे जीवन में और चीजें इतनी speed-up हो गई कि जो चीजें हमने सोची नहीं थी | So I’m really thankful कि पता नहीं कैसे हमारे जैसे लोगों को आप ढूंढ लेते हैं | कौन इतनी दूर-दराज area में काम करता है हिमालय के क्षेत्र में जाके बैठ के हम काम कर रहे हैं | इस altitude पे हम काम कर रहे हैं | वहाँ पे आपने ढूंढा हमें | हमारे काम को दुनिया के सामने ले के आये | तो मेरे लिए बहुत emotional moment था तब भी और आज भी कि मैं जो हमारे देश के जो प्रथम सेवक हैं उनसे मैं बातचीत कर पा रहा हूँ | मेरे लिए इससे बड़े सौभाग्य की बात नहीं हो सकती |

मोदी जी – प्रदीप जी ! आप तो हिमालय की चोटियों पर सच्चे अर्थ में साधना कर रहे हैं और मुझे पक्का विश्वास है अब आपका नाम सुनते ही लोगों को याद आ जाता है कि आप कैसे पहाड़ों की स्वच्छता अभियान में जुड़े हैं |

प्रदीप जी – हाँ जी सर |

मोदी जी – और जैसा आपने बताया कि अब तो बहुत बड़ी team बनती जा रही है और आप इतनी बड़ी मात्रा में daily काम कर रहे हैं|

प्रदीप जी – हाँ जी सर |

मोदी जी – और मुझे पूरा विश्वास है कि आपके इन प्रयासों से, उसकी चर्चा से, अब तो कितने ही पर्वतारोही स्वच्छता से जुड़े photo post करने लगे हैं |

प्रदीप जी – हाँ जी सर ! बहुत |

मोदी जी – ये अच्छी बात है, आप जैसे साथियों के प्रयास के कारण waste is also a wealth ये लोगों के दिमाग में अब स्थिर हो रहा है, और पर्यावरण की भी रक्षा अब हो रही है और हिमालय का जो हमारा गर्व है उसको संभालना, संवारना और सामान्य मानवी भी जुड़ रहा है | प्रदीप जी बहुत अच्छा लगा मुझे | बहुत-बहुत धन्यवाद भईया |

प्रदीप जी - Thank you Sir Thank you so much जय हिन्द |

साथियो, आज देश में Tourism बहुत तेजी से Grow कर रहा है | हमारे ये प्राकृतिक संसाधन हों, नदियाँ, पहाड़, तालाब या फिर हमारे तीर्थ स्थल हों, उन्हें साफ़ रखना बहुत ज़रूरी है | ये Tourism Industry की बहुत मदद करेगा | पर्यटन में स्वच्छता के साथ-साथ हमने Incredible India movement की भी कई बार चर्चा की है | इस movement से लोगों को पहली बार ऐसे कितनी ही जगहों के बारे में पता चला, जो उनके आस-पास ही थे | मैं हमेशा ही कहता हूँ कि हमें विदेशों में Tourism पर जाने से पहले हमारे देश के कम से कम 15 Tourist destination पर जरुर जाना चाहिए और यह Destination जिस राज्य में आप रहते हैं, वहां के नहीं होने चाहिए, आपके राज्य से बाहर किसी अन्य राज्य के होने चाहिए | ऐसे ही हमने स्वच्छ सियाचिन, single use plastic और e-waste जैसे गंभीर विषयों पर भी लगातार बात की है | आज पूरी दुनिया पर्यावरण के जिस issue को लेकर इतना परेशान है, उसके समाधान में ‘मन की बात’ का ये प्रयास बहुत अहम है |

साथियो, ‘मन की बात’ को लेकर मुझे इस बार एक और खास संदेश UNESCO की DG औद्रे ऑजुले (Audrey Azoulay) का आया है | उन्होंने सभी देशवासियों को सौ एपिसोड्स (100th Episodes) की इस शानदार journey के लिये शुभकामनायें दी हैं | साथ ही, उन्होनें कुछ सवाल भी पूछे हैं | आइये, पहले UNESCO की DG के मन की बात सुनते हैं |
#Audio (UNESCO DG)#

DG UNESCO: Namaste Excellency, Dear Prime Minister on behalf of UNESCO I thank you for this opportunity to be part of the 100th episode of the ‘Mann Ki Baat’ Radio broadcast. UNESCO and India have a long common history. We have very strong partnerships together in all areas of our mandate - education, science, culture and information and I would like to take this opportunity today to talk about the importance of education. UNESCO is working with its member states to ensure that everyone in the world has access to quality education by 2030. With the largest population in the world, could you please explain Indian way to achieving this objective. UNESCO also works to support culture and protect heritage and India is chairing the G-20 this year. World leaders would be coming to Delhi for this event. Excellency, how does India want to put culture and education at the top of the international agenda? I once again thank you for this opportunity and convey my very best wishes through you to the people of India....see you soon. Thank you very much.

PM Modi: Thank you, Excellency. I am happy to interact with you in the 100th ‘Mann ki Baat’ programme. I am also happy that you have raised the important issues of education and culture.

साथियो, UNESCO की DG ने Education और Cultural Preservation, यानी शिक्षा और संस्कृति संरक्षण को लेकर भारत के प्रयासों के बारे में जानना चाहा है | ये दोनों ही विषय ‘मन की बात’ के पसंदीदा विषय रहे हैं |
बात शिक्षा की हो या संस्कृति की, उसके संरक्षण की बात हो या संवर्धन की, भारत की यह प्राचीन परंपरा रही है | इस दिशा में आज देश जो काम कर रहा है, वो वाकई बहुत सराहनीय है | National Education Policy हो या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई का विकल्प हो, Education में Technology Integration हो, आपको ऐसे अनेक प्रयास देखने को मिलेंगे | वर्षों पहले गुजरात में बेहतर शिक्षा देने और Dropout Rates को कम करने के लिए ‘गुणोत्सव और शाला प्रवेशोत्सव’ जैसे कार्यक्रम जनभागीदारी की एक अद्भुत मिसाल बन गए थे | ‘मन की बात’ में हमने ऐसे कितने ही लोगों के प्रयासों को Highlight किया है, जो नि:स्वार्थ भाव से शिक्षा के लिए काम कर रहे हैं | आपको याद होगा, एक बार हमने ओडिशा में ठेले पर चाय बेचने वाले स्वर्गीय डी. प्रकाश राव जी के बारे में चर्चा की थी, जो गरीब बच्चों को पढ़ाने के मिशन में लगे हुए थे | झारखण्ड के गांवों में Digital Library चलाने वाले संजय कश्यप जी हों, Covid के दौरान E-learning के जरिये कई बच्चों की मदद करने वाली हेमलता N.K. जी हों, ऐसे अनेक शिक्षकों के उदाहरण हमने ‘मन की बात’ में लिये हैं | हमने Cultural Preservation के प्रयासों को भी ‘मन की बात’ में लगातार जगह दी है |
लक्षदीप का Kummel Brothers Challengers Club हो, या कर्नाटका के ‘क्वेमश्री’ जी ‘कला चेतना’ जैसे मंच हो, देश के कोने-कोने से लोगों ने मुझे चिट्ठी लिखकर ऐसे उदाहरण भेजे हैं | हमने उन तीन Competitions को लेकर भी बात की थी, जो देशभक्ति पर ‘गीत’ ‘लोरी’ और ‘रंगोली’ से जुड़े थे | आपको ध्यान होगा, एक बार हमने देश भर के Story Tellers से Story Telling के माध्यम से शिक्षा की भारतीय विधाओं पर चर्चा की थी | मेरा अटूट विश्वास है कि सामूहिक प्रयास से बड़े से बड़ा बदलाव लाया जा सकता है | इस साल हम जहाँ आजादी के अमृतकाल में आगे बढ़ रहे हैं, वहीं G-20 की अध्यक्षता भी कर रहे हैं | यह भी एक वजह है कि Education के साथ-साथ Diverse Global Cultures को समृद्ध करने के लिये हमारा संकल्प और मजबूत हुआ है |

मेरे प्यारे देशवासियो, हमारे उपनिषदों का एक मंत्र सदियों से हमारे मानस को प्रेरणा देता आया है |

चरैवेति चरैवेति चरैवेति |

चलते रहो-चलते रहो-चलते रहो |

आज हम इसी चरैवेति चरैवेति की भावना के साथ ‘मन की बात’ का 100वाँ एपिसोड पूरा कर रहे हैं | भारत के सामाजिक ताने-बाने को मजबूती देने में ‘मन की बात’, किसी भी माला के धागे की तरह है, जो हर मनके को जोड़े रखता है | हर एपिसोड में देशवासियों के सेवा और सामर्थ्य ने दूसरों को प्रेरणा दी है | इस कार्यक्रम में हर देशवासी दूसरे देशवासी की प्रेरणा बनता है | एक तरह से ‘मन की बात’ का हर एपिसोड अगले एपिसोड के लिए जमीन तैयार करता है | ‘मन की बात’ हमेशा सद्भावना, सेवा-भावना और कर्तव्य-भावना से ही आगे बढ़ा है | आज़ादी के अमृतकाल में यही Positivity देश को आगे ले जाएगी, नई ऊंचाई पर ले जाएगी और मुझे खुशी है कि ‘मन की बात’ से जो शुरुआत हुई, वो आज देश की नई परंपरा भी बन रही है | एक ऐसी परंपरा जिसमें हमें सबका प्रयास की भावना के दर्शन होते हैं |

साथियो, मैं आज आकाशवाणी के साथियों को भी धन्यवाद दूंगा जो बहुत धैर्य के साथ इस पूरे कार्यक्रम को रिकॉर्ड करते हैं | वो translators, जो बहुत ही कम समय में, बहुत तेज़ी के साथ ‘मन की बात’ का विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद करते हैं, मैं उनका भी आभारी हूँ | मैं दूरदर्शन के और MyGov के साथियों को भी धन्यवाद देता हूँ | देशभर के TV Channels, Electronic media के लोग, जो ‘मन की बात’ को बिना commercial break के दिखाते हैं, उन सभी का मैं आभार व्यक्त करता हूँ और आखिरी में, मैं उनका भी आभार व्यक्त करूँगा, जो ‘मन की बात’ की कमान संभाले हुए हैं -भारत के लोग, भारत में आस्था रखने वाले लोग | ये सब कुछ आपकी प्रेरणा और ताकत से ही संभव हो पाया है |

साथियो, वैसे तो मेरे मन में आज इतना कुछ कहने को है कि समय और शब्द दोनों कम पड़ रहे हैं | लेकिन मुझे विश्वास है कि आप सब मेरे भावों को समझेंगे, मेरी भावनाओं को समझेंगे | आपके परिवार के ही एक सदस्य के रूप में ‘मन की बात’ के सहारे आपके बीच में रहा हूँ, आपके बीच में रहूँगा | अगले महीने हम एक बार फिर मिलेंगे | फिर से नए विषयों और नई जानकारियों के साथ देशवासियों की सफलताओं को celebrate करेंगे तब तक के लिए मुझे विदा दीजिये और अपना और अपनों का खूब ख्याल रखिए | बहुत-बहुत धन्यवाद | नमस्कार |
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विज्ञान कहता है कि एक वयस्क स्वस्थ पुरुष एक बार संभोग के बाद जो वीर्य स्खलित करता है, उसमें 400 मिलियन शुक्राणु होते हैं...... ये 40 करोड़ श...