Friday, 7 March 2025

सुबह दौड़ने के सही तकनीक

सुबह दौड़ना (रनिंग) सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होता है, लेकिन सही तकनीक अपनाना जरूरी है ताकि चोट से बचा जा सके और अधिक फायदा मिले। यहाँ सही रनिंग तकनीक के कुछ महत्वपूर्ण बिंदु दिए गए हैं:

1. वार्म-अप (Warm-up) करें

दौड़ने से पहले 5-10 मिनट हल्की एक्सरसाइज़ करें, जैसे जॉगिंग, स्ट्रेचिंग, हाई नीज़, लेग स्विंग आदि।

इससे मांसपेशियाँ सक्रिय होती हैं और चोट लगने का खतरा कम होता है।


2. सही मुद्रा (Posture) बनाएँ

शरीर को सीधा रखें, हल्का झुका सकते हैं लेकिन ज्यादा नहीं।

सिर को सीधा रखें और आगे देखें, नीचे झुककर न दौड़ें।

कंधों को रिलैक्स रखें, ज्यादा टाइट न करें।


3. सही फुट स्ट्राइक (Foot Strike) अपनाएँ

पूरे पैर की बजाय पहले मध्य या अगले हिस्से (Midfoot या Forefoot) से ज़मीन पर कदम रखें।

एड़ी (Heel) से जमीन पर टकराने से घुटनों और जोड़ों पर दबाव बढ़ सकता है।


4. हाथों की सही मूवमेंट

हाथों को कोहनी से 90° कोण पर मोड़ें।

हाथ आगे-पीछे स्विंग करें लेकिन ज्यादा क्रॉस न करें।

मुट्ठियाँ हल्की बंद रखें, मुट्ठी टाइट करने से शरीर में तनाव आ सकता है।


5. सांस लेने की सही तकनीक

नाक और मुँह दोनों से सांस लें ताकि शरीर को पर्याप्त ऑक्सीजन मिले।

गहरी और नियंत्रित साँसें लें, उथली सांसें लेने से जल्दी थकावट महसूस होगी।


6. रनिंग स्पीड और स्ट्राइड लेंथ पर ध्यान दें

बहुत लंबे कदम (Stride) लेने से चोट लग सकती है, इसलिए नैचुरल मूवमेंट बनाए रखें।

गति धीरे-धीरे बढ़ाएँ, शुरुआत में तेज दौड़ने की कोशिश न करें।


7. सही रनिंग शूज़ पहनें

ऐसे जूते पहनें जो हल्के हों और पैरों को पर्याप्त सपोर्ट दें।

गलत जूते पहनने से पैरों और घुटनों पर असर पड़ सकता है।


8. ठंडा करने (Cool-down) का अभ्यास करें

दौड़ खत्म करने के बाद सीधे रुकें नहीं, बल्कि धीरे-धीरे स्पीड कम करें और हल्की जॉगिंग या वॉक करें।

बाद में 5-10 मिनट स्ट्रेचिंग करें ताकि मांसपेशियों में लचीलापन बना रहे।


9. हाइड्रेशन और खानपान पर ध्यान दें

दौड़ने से पहले और बाद में पर्याप्त पानी पिएँ।

हल्का नाश्ता करके दौड़ें, खाली पेट दौड़ने से चक्कर आ सकता है।

बाद में प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट युक्त खाना खाएँ ताकि शरीर जल्दी रिकवर कर सके।


अगर आप इन तकनीकों का पालन करेंगे, तो आपकी रनिंग ज्यादा प्रभावी और सुरक्षित होगी।


Sunday, 19 January 2025

अनुमान

 सुप्रभात जी 🌄 अच्छी कहानी है, एक बार जरूर पढ़ें..

शादीशुदा जोड़ा घूमने के लिए क्रूज टूर पर गया था। इस दौरान उन्होंने अपने बच्चों को घर पर ही छोड़ दिया। दुर्भाग्यपूर्ण और बहुत तूफानी मौसम के कारण क्रूज शिप डूबने लगी

बाकी सभी की तरह वे दोनों भी अपनी जान बचाने के लिए लाइफबोट एरिया की ओर भागे.. लेकिन वहां सिर्फ एक व्यक्ति के लिए जगह बची थी! लाइफबोट में बैठा आदमी अपनी पत्नी को डूबती नव पर छोड़ दिया।

पत्नी उसी डूबती नाव पर खड़ी अपने पति को जाते हुए देख रही थी.. उसने चिल्लाकर अपने पति से कहा..

इस कहानी को विराम देते हुए टीचर ने अपने सभी छात्रों से पूछा, "क्या कोई अनुमान लगा सकता है कि पत्नी अपने पति से क्या कहेगी?"

अधिकांश छात्रों का एक ही जवाब था, उसने कहा, "पत्नी ने कहा होगा कि मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ और तुम मुझे ऐसे छोड़कर जा रहे हो! मैं तुमसे नफरत करती हूँ।"

टीचर की नज़र एक शांत बैठे छात्र पर पड़ी। टीचर ने जाकर उससे यह सवाल पूछा। छात्र ने कहा, "मुझे लगता है कि उसने कहा होगा कि हमारे बच्चों का ख्याल रखना!"

शिक्षक ने आश्चर्यचकित होकर छात्र से पूछा, "क्या तुमने यह कहानी पहले सुनी है?"

छात्र ने अपना सिर हिलाया और कहा, "नहीं, लेकिन मेरी माँ ने बीमारी के कारण दम घुटने के दौरान आखिरकार मेरे पिता से यही शब्द कहा था!" शिक्षक ने सही उत्तर देने के लिए उस छात्र की सराहना की।

कहानी को आगे बढ़ाते हुए शिक्षक ने कहा, क्रूज जहाज डूब गया और पत्नी भी! पति घर लौट आया और अपने बच्चों को अकेले पाला।

कई सालों बाद उस पति की भी मृत्यु हो गई। एक दिन उसकी बेटी जो उसे अपनी माँ की मौत के लिए जिम्मेदार मानती थी, अपने पिता का सामान साफ करते हुए एक डायरी मिली, जिसे पढ़कर उसने सच्चाई का पता लगाया।

डायरी में लिखा था.. जब उसके माता-पिता उस क्रूज जहाज पर गए थे, तो उन्हें पहले से ही पता था कि उसकी माँ को तीसरे चरण का कैंसर है और इसलिए वे दोनों आखिरी बार एक साथ अधिक समय बिता सकते थे, इसलिए वे दोनों अकेले उस क्रूज जहाज पर गए।

जब वह उस भेड़ पर था, तो उसके पिता ने उस अकेली लाइफबोट की जगह पर बैठने से इनकार कर दिया।

उसने डायरी में लिखा था कि वह भी अपनी पत्नी के साथ उस डूबती हुई भेड़ में डूब जाना चाहता था! लेकिन अपने बच्चों के लिए अपनी पत्नी की कसम खाने के बाद, उन्हें उसे अकेला छोड़कर उस लाइफबोट में सवार होना पड़ा! "

इस डायरी को पढ़कर बेटी फूट-फूट कर रोने लगी।

शिक्षक ने यह कहानी यहीं समाप्त कर दी और पूरी कक्षा शांति में डूब गई।

यह शांति देखकर शिक्षिका को पता चला कि इस कहानी के माध्यम से वह जो सीख देना चाहती थी, वह पहुंच गई है।

इस दुनिया में अच्छे और बुरे सभी तरह के लोग हैं, लेकिन कभी-कभी परिस्थितियाँ इतनी कठिन हो जाती हैं कि आप बुरे या अच्छे का फैसला नहीं कर सकते।

इसलिए हमें कभी भी कोई निर्णय लेने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए। केवल बाहरी चीजों को जानकर लिया गया निर्णय कभी भी सही नहीं हो सकता। बिना जांच-पड़ताल और बिना जांच-पड़ताल के दूसरों के दृष्टिकोण का आकलन करना बंद करें।

जो लोग होटलों में आपके खाने का बिल इसलिए नहीं चुकाते कि उन्हें अपने पैसों पर गर्व है, बल्कि इसलिए कि वे आपको पैसों से ज्यादा महत्व देते हैं।

जो हमेशा आपकी मदद करने के लिए तैयार रहते हैं, इसलिए नहीं कि उन्हें आपसे कुछ चाहिए, बल्कि इसलिए कि उन्हें आपमें एक अच्छा दोस्त दिखता है।

जो हमेशा आपको मैसेज करते हैं, इसलिए नहीं कि उनके पास करने के लिए कुछ और नहीं है, बल्कि इसलिए कि उन्हें आपकी बहुत याद आती है।

और जो हर झगड़े के बाद सबसे पहले माफ़ी मांगते हैं, इसलिए नहीं कि वे गलत हैं, बल्कि इसलिए कि उन्हें आपकी बातों, अपने गुस्से या उनका अहंकार।



Saturday, 5 October 2024

लेन देन

जो भी देंगे लौट के जरूर मिलेगा... कुदरत का अपना नियम है...

      एक दौर था.. जब जावेद अख़्तर के दिन मुश्किल में गुज़र रहे थे। ऐसे में उन्होंने साहिर से मदद लेने का फैसला किया। फोन किया और वक्त लेकर उनसे मुलाकात के लिए पहुंचे।
उस दिन साहिर ने जावेद के चेहरे पर उदासी देखी और कहा, “आओ नौजवान, क्या हाल है, उदास हो?” 
जावेद ने बताया कि दिन मुश्किल चल रहे हैं, पैसे खत्म होने वाले हैं। 
उन्होंने साहिर से कहा कि अगर वो उन्हें कहीं काम दिला दें तो बहुत एहसान होगा।

जावेद अख़्तर बताते हैं कि साहिर साहब की एक अजीब आदत थी, वो जब परेशान होते थे तो पैंट की पिछली जेब से छोटी सी कंघी निकलकर बालों पर फिराने लगते थे। जब मन में कुछ उलझा होता था तो बाल सुलझाने लगते थे। उस वक्त भी उन्होंने वही किया। कुछ देर तक सोचते रहे फिर अपने उसी जाने-पहचाने अंदाज़ में बोले, “ज़रूर नौजवान, फ़कीर देखेगा क्या कर सकता है”

फिर पास रखी मेज़ की तरफ इशारा करके कहा, “हमने भी बुरे दिन देखें हैं नौजवान, फिलहाल ये ले लो, देखते हैं क्या हो सकता है”, जावेद अख्तर ने देखा तो मेज़ पर दो सौ रुपए रखे हुए थे।

वो चाहते तो पैसे मेरे हाथ पर भी रख सकते थे, लेकिन ये उस आदमी की सेंसिटिविटी थी कि उसे लगा कि कहीं मुझे बुरा न लग जाए। ये उस शख्स का मयार था कि पैसे देते वक्त भी वो मुझसे नज़र नहीं मिला रहा था।

साहिर के साथ अब उनका उठना बैठना बढ़ गया था क्योंकि त्रिशूल, दीवार और काला पत्थर जैसी फिल्मों में कहानी सलीम-जावेद की थी तो गाने साहिर साहब के। अक्सर वो लोग साथ बैठते और कहानी, गाने, डायलॉग्स वगैरह पर चर्चा करते। इस दौरान जावेद अक्सर शरारत में साहिर से कहते, “साहिर साब ! आपके वो दौ सौ रुपए मेरे पास हैं, दे भी सकता हूं लेकिन दूंगा नहीं” साहिर मुस्कुराते। साथ बैठे लोग जब उनसे पूछते कि कौन से दो सौ रुपए तो साहिर कहते, “इन्हीं से पूछिए”, ये सिलसिला लंबा चलता रहा। 
साहिर और जावेद अख़्तर की मुलाकातें होती रहीं, अदबी महफिलें होती रहीं, वक्त गुज़रता रहा।

और फिर एक लंबे अर्से के बाद तारीख आई 25अक्टूबर 1980की। वो देर शाम का वक्त था, जब जावेद साहब के पास साहिर के फैमिली डॉक्टर, डॉ कपूर का कॉल आया। उनकी आवाज़ में हड़बड़ाहट और दर्द दोनों था। उन्होंने बताया कि साहिर लुधियानवी नहीं रहे। हार्ट अटैक हुआ था। जावेद अख़्तर के लिए ये सुनना आसान नहीं था।

वो जितनी जल्दी हो सकता था, उनके घर पहुंचे तो देखा कि उर्दू शायरी का सबसे करिश्माई सितारा एक सफेद चादर में लिपटा हुआ था। वो बताते हैं कि ''वहां उनकी दोनों बहनों के अलावा बी. आर. चोपड़ा समेत फिल्म इंडस्ट्री के भी तमाम लोग मौजूद थे। मैं उनके करीब गया तो मेरे हाथ कांप रहे थे, मैंने चादर हटाई तो उनके दोनों हाथ उनके सीने पर रखे हुए थे, मेरी आंखों के सामने वो वक्त घूमने लगा जब मैं शुरुआती दिनों में उनसे मुलाकात करता था, मैंने उनकी हथेलियों को छुआ और महसूस किया कि ये वही हाथ हैं जिनसे इतने खूबसूरत गीत लिखे गए हैं लेकिन अब वो ठंडे पड़ चुके थे।''

जूहू कब्रिस्तान में साहिर को दफनाने का इंतज़ाम किया गया। वो सुबह-सुबह का वक्त था, रातभर के इंतज़ार के बाद साहिर को सुबह सुपर्द-ए-ख़ाक किया जाना था। ये वही कब्रिस्तान है जिसमें मोहम्मद रफी, मजरूह सुल्तानपुरी, मधुबाला और तलत महमूद की कब्रें हैं। साहिर को पूरे मुस्लिम रस्म-ओ-रवायत के साथ दफ़्न किया गया। साथ आए तमाम लोग कुछ देर के बाद वापस लौट गए लेकिन जावेद अख़्तर काफी देर तक कब्र के पास ही बैठे रहे।

काफी देर तक बैठने के बाद जावेद अख़्तर उठे और नम आंखों से वापस जाने लगे। वो जूहू कब्रिस्तान से बाहर निकले और सामने खड़ी अपनी कार में बैठने ही वाले थे कि उन्हें किसी ने आवाज़ दी। जावेद अख्तर ने पलट कर देखा तो साहिर साहब के एक दोस्त अशफाक साहब थे।

अशफ़ाक उस वक्त की एक बेहतरीन राइटर वाहिदा तबस्सुम के शौहर थे, जिन्हें साहिर से काफी लगाव था। अशफ़ाक हड़बड़ाए हुए चले आ रहे थे, उन्होंने नाइट सूट पहन रखा था, शायद उन्हें सुबह-सुबह ही ख़बर मिली थी और वो वैसे ही घर से निकल आए थे। 
   उन्होंने आते ही जावेद साहब से कहा, “आपके पास कुछ पैसे पड़ें हैं क्या? 
वो कब्र बनाने वाले को देने हैं, मैं तो जल्दबाज़ी में ऐसे ही आ गया”, 
जावेद साहब ने अपना बटुआ निकालते हुआ पूछा, ''हां-हां, कितने रुपए देने हैं'' उन्होंने कहा, “दो सौ रुपए".................. 🌹🌹 
     कुदरत के इतफ़ाक़ लेन देन ज़मीन पे ही हुआ... ज़नाब जावेद अख्तर साहिब पर क्या असर हुआ होगा... सोच से बाहर..

Tuesday, 24 September 2024

1.Why do massive objects distort space time?

Massive objects distort spacetime due to the nature of gravity as described by Einstein's theory of General Relativity. In this theory, gravity is not seen as a force between objects, but rather as a result of the curvature or warping of spacetime caused by mass and energy.
The basic idea is that spacetime is like a flexible fabric, and massive objects (like stars, planets, and black holes) cause a "dent" or "curve" in this fabric. Smaller objects (like planets or light) move along these curves, which we perceive as the effect of gravity.

This happens because spacetime tells matter how to move, and matter tells spacetime how to curve. The more massive an object, the greater the distortion of spacetime around it. This warping affects both the paths of objects moving through space and the passage of time near the massive object.

In summary, massive objects distort spacetime because their mass bends the geometry of spacetime itself, creating what we experience as gravitational attraction.

Saturday, 31 August 2024

आज के हिसाब से अपने आप को अपडेट रखना कितना जरूरी है?

आज के हिसाब से अपने आप को अपडेट रखना कितना जरूरी है?
आजकल के समय में अपडेट रहना ,स्वयं को अपडेट रखना जरूरी है। स्वयं को अपडेट रखेंगे तो नए ज़माने, नई पीढ़ी के साथ कदम मिलाकर आगे बढ़ सकते हैं । समय किसी का इंतज़ार नहीं करता….. जो अपडेट नहीं होता वो समय से पीछे रह जाता है।

एक साधारण सा उदाहरण के साथ अपनी बात बताने का प्रयास…..
यह तस्वीर लगभग 46 साल पुरानी चर्चित फिल्म "मुकद्दर का सिकंदर" के बहुत प्रसिद्ध गाने की है -

इस तस्वीर पर ध्यान दीजिए…

इसमें "तब" के 4 "नामी गिरामी" दिखेंगे

प्रीमियर पद्मिनी 🚗
चेतक स्कूटर🛵
राजदूत मोटरसाइकिल🏍 
और अमिताभ बच्चन 😎
आज इनमें से केवल एक अपनी पुरानी शान को बरकरार रख पाया है, बाकी तो लगभग गायब हैं...

सोचिए क्यों?

क्योंकि ..... अपडेशन जरूरी..

वर्ना जो समय के साथ खुद को अपडेट नहीं करता वो किनारे लगा दिया जाता है🤷‍♀️

अमिताभ ने वक्त को समझा, खुद को लगातार अपडेट करते रहे....आज भी रेस में बरकरार हैं👍

जबकि बाकी निर्जीव होकर भी मार्केट में सलामत नहीं रह पाए क्योंकि इनको अपडेट करने से परहेज़ रखा अर्थात उनको अपडेट नहीं किया गया।

तीन कहानियाँ और:

1. नोकिया ने एंड्रॉयड को नकार दिया
2. याहू ने गूगल को नकार दिया
3. कोडक ने डिजिटल कैमरों को नकार दिया

सबक:
1. जोखिम उठाएँ
2. बदलाव को अपनाएँ
3. अगर आप समय के साथ बदलाव करने से इनकार करते हैं, तो आप पुराने पड़ जाएँगे

दो और कहानियाँ:

1. फेसबुक ने व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम को अपने कब्जे में ले लिया
2. ग्रैब ने दक्षिण-पूर्व एशिया में उबर को अपने कब्जे में ले लिया

सबक:

1. इतना शक्तिशाली बनो कि तुम्हारे प्रतिस्पर्धी तुम्हारे सहयोगी बन जाएँ
2. शीर्ष पर पहुँचो और प्रतिस्पर्धा को खत्म करो।
3. नवाचार करते रहें

दो और कहानियाँ:
1. कर्नल सैंडर्स ने 65 साल की उम्र में KFC की स्थापना की
2. जैक मा, जिन्हें KFC में नौकरी नहीं मिली, ने अलीबाबा की स्थापना की और 55 साल की उम्र में सेवानिवृत्त हो गए।

सबक:
1. उम्र सिर्फ़ एक संख्या है
2. सिर्फ़ वही लोग सफल होंगे जो कोशिश करते रहेंगे

आखिरी लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात:
लेम्बोर्गिनी की स्थापना एक ट्रैक्टर निर्माता से बदला लेने के परिणामस्वरूप हुई थी, जिसका फेरारी के संस्थापक एन्ज़ो फेरारी ने अपमान किया था।

सबक:
कभी भी किसी को कम मत समझो!
✔️ बस कड़ी मेहनत करते रहो
✔️ अपना समय समझदारी से निवेश करो
✔️ असफल होने से मत डरो

इसलिए

…..Keep updating yourself.....🤓

इसलिए "हमारे जमाने में" .... बोलने वाले "भिड़े मास्टर" ना बनें…😅😅

Friday, 2 August 2024

गाँव गया था

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
रामराज का हाल देखकर
पंचायत की चाल देखकर
आँगन में दीवाल देखकर
सिर पर आती डाल देखकर
नदी का पानी लाल देखकर
और आँख में बाल देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
सरकारी स्कीम देखकर
बालू में से क्रीम देखकर
देह बनाती टीम देखकर
हवा में उड़ता भीम देखकर
सौ-सौ नीम हक़ीम देखकर
गिरवी राम-रहीम देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
जला हुआ खलिहान देखकर
नेता का दालान देखकर
मुस्काता शैतान देखकर
घिघियाता इंसान देखकर
कहीं नहीं ईमान देखकर
बोझ हुआ मेहमान देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
नए धनी का रंग देखकर
रंग हुआ बदरंग देखकर
बातचीत का ढंग देखकर
कुएँ-कुएँ में भंग देखकर
झूठी शान उमंग देखकर
पुलिस चोर के संग देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
बिना टिकट बारात देखकर
टाट देखकर भात देखकर
वही ढाक के पात देखकर
पोखर में नवजात देखकर
पड़ी पेट पर लात देखकर
मैं अपनी औकात देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
नए नए हथियार देखकर
लहू-लहू त्योहार देखकर
झूठ की जै-जैकार देखकर
सच पर पड़ती मार देखकर
भगतिन का शृंगार देखकर
गिरी व्यास की लार देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।

गाँव गया था
गाँव से भागा ।
मुठ्ठी में कानून देखकर
किचकिच दोनों जून देखकर
सिर पर चढ़ा ज़ुनून देखकर
गंजे को नाख़ून देखकर
उज़बक अफ़लातून देखकर
पंडित का सैलून देखकर
गाँव गया था
गाँव से भागा ।
---यह कविता कैलाश गौतम की है।

Thursday, 13 June 2024

हलधर नाग

साहब मेरे पास दिल्ली जाने के लिए पैसे नहीं है कृपया पुरस्कार डाक से भेज दीजिये'| ''यह शब्द है पद्यमश्री पुरस्कार विजेता हलधर नाग के | 
हलधर नाग के पास 3 जोड़ी कपड़े एक टूटी हुई रबर की चपल एक रिमलेश चश्मा और 732 रूपये की जमा राशि ,उन्हें पधमश्री से सम्मानित किया गया | हलधर नाग का जन्म 31 मार्च 19 50 में उड़ीसा के बाड़ गर जिले में हुआ था वे बहुत ही गरीब परिवार से थे तीसरी कक्षा में जब वे पढ़ रहे थे तो उनके पिता जी का देहांत हो गया ,पढ़ाई छोड़कर हलधर नाग होटल में बर्तन धोने का काम करने लगे दो साल के बाद एक सज्जन व्यक्ति उन्हें स्कूल में खाना बनाने का काम दिए 16 साल तक इस काम को करने के बाद उन्होंने एक बैंकर से मिलकर 1000 रूपये बैंक से लोन लिए और स्कूल के पास स्टेनरी का दुकान खोल दिए उसी से उनका गुजरा चलता रहा
इस दौरान वे कुछ न कुछ लिखते रहते थे ,उन्होंने अपने लिखने का शौक को मरने नहीं दिया ये बात थी उनकी माली हालत की | 1990 में उन्होंने अपनी पहली कविता कोसली भाषा में धोरो बरगज एक स्थानीय पत्रिका में छापने को दिए इसके साथ चार और कविताऐं दिए सभी कविताये छपी भी और सराहा भी गया लेकिन अभी भी जिस मुकाम तक पहुंचना था वो बाकी था कहा जाता है 
1995 में राम सवारी जैसे धार्मिक पुस्तके लिखकर लोगो को जागरूक किये पहले तो लोगो को जबरस्ती सुनाया अपनी कविताये। 2016 आते -आते इतने लोकप्रिय होगये ,की सरकार ने उन्हें पद्मश्री से नवाजा उनकी सभी कविताये प्रकृति ,समाज ,पौराणिक कथावो और धर्म पर आधारित रहते है वे अपनी कविताओं के माध्यम से समाजिक सुधार के लिए तत्प्र रहते है उड़ीसा में लोक कवि रत्न के नाम से मशहूर हलधर नाग सफेद धोती ,गमछा ,गंजी पहने पुरस्कार लेने नगें पाव राष्ट्रपति भवन पहुंचे तो सबकी आँखे फटी की फटी रह गई | 
आपको बतादे जिन्होंने मात्र तीसरी कक्षा तक पढ़ाई की उनके साहित्य पर कई छात्र p h d कर रहे है हमे गर्व ऐसे विभूति पर जिनका लक्ष्य पैसा कमाना नहीं रहा बल्कि ज्ञान अर्जन कर लोगो के बीच उसका प्रकाश फैलाना रहा हलधर नाग जी ने अपने काव्यों से साहित्य जगत को समृद्ध किया |

Winners

विज्ञान कहता है कि एक वयस्क स्वस्थ पुरुष एक बार संभोग के बाद जो वीर्य स्खलित करता है, उसमें 400 मिलियन शुक्राणु होते हैं...... ये 40 करोड़ श...