Life Goals

जवानी चढ़ते ही, सम्भोग की चाहत सर पर चढ़ने लगती है। जीवन के 20 साल हवा की तरह उड़ गए। फिर शुरू हुई नौकरी की खोज। यह नहीं, वह नहीं, दूर नहीं, पास नहीं। ऐसा करते-करते 2-3 नौकरियाँ छोड़ते हुए एक नौकरी तय हुई। स्थिरता की शुरुआत हुई।
पहली तनख्वाह का चेक हाथ में आया। उसे बैंक में जमा किया और शुरू हुआ शून्यों का अंतहीन खेल। 2-3 साल और निकल गए। बैंक में शून्यों की संख्या बढ़ गई।

विवाह और शुरूआत
उम्र 25 हो गई और विवाह हो गया। जीवन की नई कहानी शुरू हो गई। शुरू के एक-दो साल नर्म, गुलाबी, रसीले और सपनीले थे। हाथ में हाथ डालकर घूमना, रंग-बिरंगे सपने। लेकिन यह सब जल्दी ही खत्म हो गया।

फिर बच्चे के आने की आहट हुई। वर्ष भर में पालना झूलने लगा। अब सारा ध्यान बच्चे पर केंद्रित हो गया। उठना, बैठना, खाना-पीना, लाड़-दुलार। समय कैसे फटाफट निकल गया, पता ही नहीं चला।

बदलते रिश्ते
इस बीच कब मेरा हाथ उसके हाथ से निकल गया, बातें करना, घूमना-फिरना कब बंद हो गया, दोनों को पता ही न चला। बच्चा बड़ा होता गया। वह बच्चे में व्यस्त हो गई और मैं अपने काम में। घर, गाड़ी की किस्त, बच्चे की जिम्मेदारी, शिक्षा, भविष्य की चिंता, और बैंक में शून्यों की बढ़ती संख्या।

जीवन की असली सच्चाई
35 साल का हो गया। घर, गाड़ी, बैंक में शून्य, परिवार सब है, फिर भी कुछ कमी है? पर वह कमी क्या है, समझ नहीं आया। उसकी चिड़चिड़ाहट बढ़ती गई, मैं उदासीन होने लगा। दिन बीतते गए, समय गुजरता गया। बच्चा बड़ा होता गया और खुद का संसार तैयार होता गया। कब 10वीं आई और चली गई, पता ही नहीं चला। तब तक दोनों चालीस-बयालीस के हो गए। बैंक में शून्य बढ़ता ही गया।

एक नई शुरुआत की कोशिश
एक नितांत एकांत क्षण में, गुजरे दिनों की यादें ताज़ा हुईं और मैंने कहा, "अरे, जरा यहाँ आओ, पास बैठो। चलो हाथ में हाथ डालकर कहीं घूम के आते हैं।"

उसने अजीब नजरों से देखा और कहा, "तुम्हें कुछ भी सूझता है, यहाँ ढेर सारा काम पड़ा है। तुम्हें बातें सूझ रही हैं।"

कमर में पल्लू खोंस कर वह निकल गई। पैंतालीसवें साल में आकर, आँखों पर चश्मा लग गया, बाल काले रंग छोड़ने लगे, दिमाग में उलझनें शुरू हो गईं। बेटा कॉलेज में था, और बैंक में शून्य बढ़ते जा रहे थे। देखते ही देखते, उसका कॉलेज खत्म हो गया और वह परदेश चला गया।

वृद्धावस्था और भावनाएं
हम दोनों पचपन से साठ की ओर बढ़ने लगे। बैंक के शून्यों की कोई खबर नहीं। बाहर जाने-आने के कार्यक्रम बंद होने लगे। अब दवाइयों के दिन और समय निश्चित हो गए। बच्चे बड़े होंगे तब हम साथ रहेंगे सोचकर लिया गया घर अब बोझ लगने लगा। बच्चे कब वापस आएँगे, यही सोचते-सोचते दिन गुजरने लगे।

एक दिन, सोफे पर बैठा ठंडी हवा का आनंद ले रहा था। वह दिया-बाती कर रही थी। तभी फोन की घंटी बजी। लपक कर फोन उठाया। दूसरी तरफ बेटा था, जिसने कहा कि उसने शादी कर ली और अब परदेश में ही रहेगा। उसने यह भी कहा कि पिताजी, आपके बैंक के शून्यों को किसी वृद्धाश्रम में दे देना और आप भी वहीं रह लेना। कुछ और औपचारिक बातें कहकर बेटे ने फोन रख दिया।

अंतिम पल
मैं पुनः सोफे पर आकर बैठ गया। उसकी पूजा खत्म होने को आई थी। मैंने उसे आवाज दी, "चलो, आज फिर हाथ में हाथ लेकर बात करते हैं।"

वह तुरंत बोली, "अभी आई।" मुझे विश्वास नहीं हुआ। चेहरा खुशी से चमक उठा। आँखे भर आईं और आँसुओं से गाल भीग गए। अचानक आँखों की चमक फीकी पड़ गई और मैं निस्तेज हो गया, हमेशा के लिए।

उसने शेष पूजा की और मेरे पास आकर बैठ गई। "बोलो, क्या बोल रहे थे?"

लेकिन मैंने कुछ नहीं कहा। उसने मेरे शरीर को छूकर देखा। शरीर बिल्कुल ठंडा पड़ गया था। मैं उसकी ओर एकटक देख रहा था। क्षण भर के लिए वह शून्य हो गई।

"क्या करूँ?"

उसे कुछ समझ में नहीं आया। लेकिन एक-दो मिनट में ही वह चेतन्य हो गई। धीरे से उठी, पूजा घर में गई, एक अगरबत्ती लगाई, इश्वर को प्रणाम किया और फिर से आकर सोफे पर बैठ गई। मेरा ठंडा हाथ अपने हाथों में लिया और बोली, "चलो, कहाँ घूमने चलना है तुम्हें? क्या बातें करनी हैं तुम्हें?"

ऐसा कहते हुए उसकी आँखें भर आईं। वह एकटक मुझे देखती रही। आँसुओं की धारा बह निकली। मेरा सिर उसके कंधे पर गिर गया। ठंडी हवा का झोंका अब भी चल रहा था। क्या यही जीवन है?

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन को अपने तरीके से जीएं। धन और भौतिक सुख-सुविधाएँ महज एक भाग हैं, लेकिन सच्ची खुशी और संतोष प्रेम, समझदारी और एक-दूसरे के साथ बिताए समय में होता है।

Comments

Popular posts from this blog

Experiment to Verify Ohm's Law)

Determination of Focal Length of Concave Mirror and Convex Lens

Tracing Path of a Ray of Light Passing Through a Glass Slab